डिजिटल पेमेंट व्यवस्था पनपने से पहले ही उससे मुनाफ़ा कमाने की होड़

बाहुबली-2 देखी. जब फिल्म के टिकट खरीदने बैठा, तो ऑनलाइन टिकट लेने में वेबसाइट 4 टिकटों के पीछे 101 रूपए अधिभार लगा रही थी.

मैंने झट से गाड़ी निकाली, थिएटर गया, और टिकट निकाल लिए, अधिभार के बगैर! 3 किमी दूर थिएटर है, आने-जाने में 30 रूपया लगा पेट्रौल का! एक-तिहाई से कम में काम बन गया!

अब अनाड़ी साइट यदि मुझसे 20 रूपया अधिभार लेती, तो उस का पैसा बन जाता. लेकिन उस ने 88 रूपए अधिभार और ऊपर 15% टैक्स जोड़ कर 101/- बना दिए.

भारतीय बंदा पाई-पाई का हिसाब लगाता है. सो वेबसाइट ने अपना एक ग्राहक ऐसे ही ख़त्म कर लिया! 101 रूपए मिलने से रहे, अब तेल लेने जाए!

डिजिटल इण्डिया में यही तो खोट है! नोटबंदी के जमाने में पेटीएम खूब चला! लेकिन जब व्यवसायियों ने अपना पैसा वापस अपने बैंक खाते में लेना चालू किया तब पेटीएम 1% काट रही थी, अब भी काटती है. अब परिस्थिति लगभग यह है कि कोई दुकानदार पेटीएम लेने के लिए तैयार नहीं.

भारत में क्रेडिट कार्ड ख़ास न चल पाने का कारण यही है कि जो 2% अधिभार क्रेडिट कार्ड कम्पनियाँ लगाती है, वह बहुत सारे व्यवसायों में, खास कर जो कम मुनाफे पर ज़्यादा कारोबार करते है, उनमें पड़ता नहीं खाता!

डिजिटल रूप से भुगतान करने पर बड़ी सारी पेमेंट कम्पनियाँ भी कुछ न कुछ अधिभार लगाती रहती है, उस से नुक्सान होता है, लोग कतराते है!

यहां तक, कि बैंकों ने भी ऑनलाइन भुगतान पर कुछ अधिभार लगाना चालू किया था, और लोगों ने फिर उस का प्रयोग बंद किया!

अंगरेजी में एक कहावत है – Counting the chicken before they are hatched – चूजे अंडे में से बाहर निकलने से पहले ही गिन लेना!

इस तरह डिजिटल पेमेंट पर्यावरण को पर्याप्त रूप से विकसित होने से पहले ही उस से जुड़े संस्थान उस से मुनाफ़ा कमाने के पीछे पड़ गए. इसी में कृपा पड़ी है.

इस में से बैंकों के अधिभारों का नियंत्रण, भले परोक्ष रूप से ही सही, सरकार के पास है. सरकार को चाहिए कि अधिभार तुरंत घटाकर न्यूनतम (जैसे शेयर बाजार में होते है) स्तर पर रखें.

इससे लोगों और व्यवसायों पर दबाव नहीं रहेगा, और वे खुल कर डिजिटल भुगतान पर्यायों का उपयोग करेंगे. मोदीजी का डिजिटल इंडिया का सपना तभी वास्तव में आ सकता है.

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