हम हिन्दुस्तानियो की एक बहुत बड़ी problem है.
हमारी नज़रों में सिर्फ दो ही किस्म के लोग इंसान हैं.
सिर्फ दो ही कोर्स पढ़ने लायक हैं.
डाक्टर और इंजिनियर.
इस धरती पे बाकी जितने प्राणी हैं वो जो जीव जंतु हैं.
उनको तो खुस खुदी कर लेनी चाहिए.
हर हिन्दुस्तानी यही चाहता है कि उसका बच्चा डॉ इंजिनियर बन जाए.
पर उसमें भी झोल है ……….
इंजिनियर में भी IITian ………. IITian में भी या तो IIT मुम्बई या IIT दिल्ली …….. IIT रुड़की या खड़गपुर या रोपड़ को तो कुत्ता भी नहीं पूछता.
अलबत्ता डाक्टरी में ऐसा नहीं है. डाक्टर तो बेलारूस यूक्रेन और चीन यहां तक की झुमरी तलैया का भी चलेगा. न MBBS तो BDS नहीं तो BAMS या होमियोपैथी वाला भी चलेगा …….कुछ न हुआ तो घोड़ा छाप भी चलेगा …….
पर उसमे एक भयंकर लोचा है. 120 करोड़ के मुल्क में कितने डॉ इंजिनियर चाहिए. डॉ चाहिए तो गाँव कसबे में चाहिए. पर डॉ साहब लोग को सिर्फ और सिर्फ शहर चाहिए ….. वो भी बड़ा वाला ………
अब समस्या ये है कि कितने डॉ इंजिनियर बर्दाश्त कर सकता है एक मुल्क.
अच्छा फ़र्ज़ करो कि किसी दिन अपने शिव जी एकदम परसन्न हो जाएँ और पिनक में बोल दें हिन्दुस्तानियों को …….. तथास्तु …… जाओ तुम सब लोग के बच्चा लोग को dr इंजिनियर बनाया ……… तो क्या होगा इस मुल्क का ?
अबे कोई जूता गांठने के लिए भी तो चाहिए.
अबे कोई डाक्टरनी की चुन्नी रंगने वाला रंगरेज भी तो चाहिए.
अबे मैडम की कांजीवरम को फॉल कौन लगाएगा ? तुमरे अब्बू ?
अबे लैम्बोर्गिनी को पंचर कौन लगाएगा ?
और जब लैम्बोर्गिनी पंचर हो जाएंगी तो डाक् साब किसके रिक्शा में बैठ के घर आएँगी ?
और जब डाक् साब का चटखारे ले ले के पानी पतासा गोल गप्पे और दही भल्ले खाने का मन करेगा तो कौन खिलायेगा.
सोच के देखिये वो दिन जब दही भल्ले वाले के sign board पे लिखा होगा ……..
Dr हरगोपाल सिंह MD ( BHU ) वाले के मशहूर गोल गप्पे.
Dr रिक्शा वाला …….
मैं बनारस में एक MBBS dr को जानता हूँ जो एक pvt अस्पताल में 20,000 रु महीने की नौकरी करते हैं.
NIS पटियाला के गेट के सामने एक मोची बैठता है जिसकी दैनिक आमदनी 2- 3000 हज़ार रु रोज़ की है. वो Nike और Adidas का एक्सपर्ट है. फटी हुई जाली बदल देता है 2 – 400 रु में. केरल से atheletes उसके पास courier से अपने shoes भेजते हैं रिपेयर कराने के लिए. हमारा परिवार पिछले 10 साल से उसकी सेवाएं ले रहा है. 20 दिन की waiting रहती है उसके पास. कोई आदमी अगर cobbler बन के हर महीने 40 – 50000 रु कमा ले …….. तो क्या बुरा है.
बुरा है …….. बहुत बुरा है ……. क्योंकि भारतीय समाज Dr engineer के अलावा किसी को इज़्ज़त नहीं देता. भारत में ठेले पे icecream बेचने वाले , truck driver की या rickshaw puller की कोई इज़्ज़त नहीं ……..मैंने सुना है कि पश्चिमी देशों में ऐसा नहीं. blue collar job करने वालों को भी समाज में पूरा सम्मान मिलता है.
जबकि ढोंगी हिन्दुस्तानी सफेदपोश मेहनत कश blue collar वालों के साथ उठना बैठना खाना पीना तो दूर उनके नज़दीक से भी निकालना पसंद नहीं करते. मेरी बीवी को यदि Sleeper या general class में यात्रा करने को कह दिया जाए तो उनके प्राण निकल जाते हैं.
ऐ हिन्दुस्तानियों, तुम्हें ये समझ लेना चाहिए कि किसी भी मुल्क में 90 % जनसंख्या Blue Collar job यानी कि कपड़े काले करने वाली और पसीना बहाने वाले professions में होते ही हैं. White collar वाले साहब लोग 10 – 5 % लोग ही होते हैं.
blue collar jobs ही किसी mulk का पेट भरती हैं और मुल्क को चलाती हैं.
ऐ white collar वालों और white collar मानसिकता के गुलामों …….काले कपड़े पहनने वाले मेहनत कश लोगों की इज़्ज़त करना सीखो.
एक rickshaw puller और मोची को भी वही इज़्ज़त देना सीखो जो डॉ साब को देते हो.