दुनिया ने ‘माफिया’ का नाम सबसे पहले अमेरिका से सुना है, हालाँकि इसकी पैदाइश इटली के सिसली क्षेत्र में हुयी थी. माफिया एक अनौपचारिक आपराधिक संघठन का नाम है जो अमेरिका में रह रहे सिसली, इटैलियन प्रवासियों द्वारा संचालित था, बाद में जिसमें इटैलियन आपराधिक गिरोह जुड़ गए थे.
1920/ 30 के दशक में अमेरिका के आपराधिक जगत में सबसे बड़ा नाम शिकागो के अल कपोन का था. उस दशक में अल कपोन, की वही स्थिति थी जो मुम्बई के आपराधिक जगत में दाऊद की थी.
कपोन इतना कुख्यात था कि उस पर लगभग 10 फ़िल्में और टीवी सीरियल अमेरिका में बन चुकी हैं. जिसमें The Untouchables, Al Capone, Capone, Scarface, The St. Valentine’s Day Massacre, The Scarface Mob, Alcatraz Express, Frank Nitti: The Enforcer and Road to Perdition काफी प्रसिद्ध है.
कपोन, शुरू में न्यूयॉर्क के ‘फाइव पॉइंट्स’ गिरोह का सदस्य था, जो अपने बॉस, जॉनी टोरियो के बुलावे पर न्यूयॉर्क से शिकागो गया था.
टोरियो के परिवार के किसी सदस्य की शिकागो के एक कुख्यात अपराधी ‘ब्लैक हैंड’ से कहा-सुनी हो गयी थी और उसी को मारने उसे शिकागो बुलाया गया था.
अमेरिका में उस वक्त प्रोहिबिशन (निषेध) था जिससे अवैध शराब के धंधे में बड़ा फायदा देख कर कपोन शिकागो के अवैध धंधे में शामिल हो गया.
उस वक्त शिकागो के आपराधिक जगत में जेम्स “बिग जिम” कोलोसिमो का राज चलता था लेकिन जब उसने अवैध शराब के नए धंधे में आने से मना कर दिया तो कपोन के बॉस टोरियो के हाथ शिकागो के आपराधिक साम्राज्य की कमान आ गयी. बाद में कोलोसिमो की हत्या होने पर शिकागो के अपराध जगत में कपोन जाना माना नाम बन गया.
प्रोहिबिशन के दौरान शिकागो अंडरवर्ल्ड के बड़े हिस्से पर नियंत्रण के कारण कपोन का काफी दबदबा था और एक अनुमान के अनुसार उसके संगठन की सालाना आय 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी.
यह धन वेश्यावृत्ति, जुआघर, रंगदारी जैसे सभी प्रकार के अवैध तरीकों से जुटाया जाता था, हालांकि सबसे अधिक धन उस को शराब की अवैध बिक्री से मिलता था.
1930 आते-आते अल कपोन, अपराध जगत का बेताज बादशाह बन गया था. उस ने सभी का हफ्ता बाँध रखा था और उसकी पेरोल पर पुलिस और सारा सरकारी तंत्र था. उसने शिकागो के न्यायाधीशों से लेकर उसकी ज्यूरी व्यवस्था तक को खरीद लिया था. इसका परिणाम वही हुआ जो सरकार के तंत्रों के भ्रष्ट हो जाने पर होता है.
वह निडरता से अपने आपराधिक साम्राज्य को चलाता था. कपोन जहाँ अपराध जगत पर काबिज था वही राजनैतिक पार्टियां चुनाव में उसके समर्थन और धन से परहेज नहीं रखती थी. उसकी इटैलियन समुदाय और चर्च पर भी पूरी पकड़ थी, धर्मार्थ कार्यो में खुल कर धन देता था.
अल कपोन, जिसके ऊपर सैकड़ो, बलात्कार, हत्या, अवैध जुआघर चलाने, अवैध शराब की बिक्री और तस्करी के अपराध दर्ज थे, उसे मिल रहे समर्थन और भ्रष्ट पुलिस, नौकरशाही व न्यायिक व्यवस्था के कारण, अमेरिकी सरकार उसको गिरफ्तार और सज़ा दिला पाने में असमर्थ थी.
इन हालात में, कपोन को रोकने के लिए, 1929 में ब्यूरो के एक प्रोहिबिशन एजेंट, ‘एलियट नेस’ ने प्रोहिबिशन के उल्लंघन का दोष सिद्ध करने के लिए अल कपोन व उसके व्यवसाय की जांच शुरू की.
इस कार्य में उसके साथ देने के लिए एक ईमानदार पुलिस वाला मार्टी लाहार्ट था और आयकर के उल्लंघन की जाँच के लिये, आयकर अधिकारी फ्रैंक जे. विल्सन मिल गया था.
अमेरिका की सरकार का यह मत था कि आपराधिक मामलो में कपोन के विरुद्ध दोष सिद्ध करना मुश्किल होगा लेकिन इसकी संभावना आयकर की चोरी के मामले में ज्यादा है.
नेस, लाहार्ट और विल्सन की मेहनत का परिणाम यह हुआ कि, जिस शख्स को कभी भी बलात्कार, हत्या, अवैध जुआघर, अवैध शराब की बिक्री, तस्करी जैसे जघन्य अपराधों के लिए कभी कोई सजा नही मिली, उसे 1931 आयकर चोरी तथा वोल्सटीड एक्ट के कई उल्लंघनों का दोषी पाया गया.
कपोन के खिलाफ सबूतों की भरमार और उसकी पैरवी कर रहे बड़े वकीलों के कारण एक लंबे चले मुक़दमे के बाद, उसे आयकर चोरी के कुछ ही मामलों में दोषी पाया गया (वोल्सटीड एक्ट के उल्लंघनों को हटा लिया गया था).
जज ने उस पर न सिर्फ भारी जुर्माने लगाया बल्कि उसकी कई संपत्तियों का अधिकरण के साथ उसे 11 वर्ष की कैद भी सुनाई. इस निर्णय के खिलाफ कपोन ने सर्वोच्च न्यायलय में अपील की लेकिन उसके ठुकराये जाने के बाद उसे मई 1932 में अटलांटा यूएस के कठोर फेडरल कारावास में भेज दिया गया. जहाँ से उसे बाद में शेष सजा काटने के लिए एल्काट्राज़ की जेल में भेज दिया गया.
मैंने अल कपोन की इतनी लंबी कहानी इस लिए सुनाई है क्योंकि जब पुलिस, नौकरशाही और न्याय व्यवस्था भ्रष्ट होती है तब सज़ा दिलाने वाले गवाह गायब हो जाते है.
यदि सरकार वाकई किसी को दण्ड दिलाना चाहती है तो सज़ा तभी मिलती है, जब सरकार के माल में खयानत होती है और सबूत के तौर पर आदमी की गवाही नहीं बल्कि सरकारी दस्तावेज़ और धन की अवैधनिकता सामने होती है.
अब आप शिकागो को भारत की जगह रख लीजिए, जहाँ शासन के सभी तंत्र में भ्रष्ट लोगों का बोलबाला रहा है. जहाँ जमानत का कोई एकाकी नियम नहीं है, जहाँ मुकदमे बीसियों साल चलते है, जहाँ गवाह धरती से ही गायब हो जाते है और जहाँ खुद जनता का एक बड़ा वर्ग इस भ्रष्ट प्रणाली से संतुष्ट है, वहां आप कैसे किसी विपक्ष के राजनैतिज्ञ को जेल में रोके रख सकते है?
यहां, जहाँ मीडिया से लेकर समर्थक, ज़मानत मिलने को ही विजय के प्रतीक के रूप में मनाते है, जेल भेजने को बदले की कार्यवाही के रूप में जनता को बेचा जाता है और भावनात्मक रूप से सहानभूति उपजायी जाती है, वहां क्या लोग वाकई यही सोचते हैं कि मोदी सरकार, बिना तैयारी के इन पर हाथ डाल कर आत्महत्या कर ले?
मोदी जी ऐसी कोई गलती अपने विपक्षियों के साथ नहीं करने वाले है वह चाहे कितने भी भ्रष्ट हो, लेकिन अमानत में खयानत वह भी आयकर की परिधि में हो तो मामला दूसरा होता है.
अब आते है सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, नेशनल हेराल्ड और यंग इंडिया के मामले में जहाँ, वर्षो के अधक प्रयास के बाद हाईकोर्ट ने आयकर विभाग को ‘यंग इंडिया कंपनी’ जिसके ज्यादातर शेयर गाँधी परिवार के पास है और उसके निदेशक मंडल में सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, मोतीलाल वोरा, सुमन दुबे और सैम पित्रोदा हैं, की जांच करने के आदेश दिए है.
काले धन को सफेद करने के लिए बनाई गयी तमाम फर्जी कंपनियों के पीछे यह आयकर से लेकर बेनामी सम्पत्ति और हवाला का पूरा मामला है.
जिस तरह इटैलियन प्रवासी कपोन सभी जघन्य अपराधों में पकड़े और सज़ा न पाने में सफल रहा था वैसे ही इटली की प्रवासी सोनिया गाँधी भी अभी तक सारे घोटालों में खुद बचने में कामयाब रही है लेकिन अब कपोन की तरह सोनिया गाँधी और उसके परिवार का पराभव आयकर ही बनेगा.
मोदी जी अपने हाथ हमेशा साफ़ रखते हैं.