“जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है”… यह सिर्फ एक नारा नहीं है, बल्कि भारत के हर उस व्यक्ति की आत्मा की आवाज़ है जो इस राष्ट्र से प्रेम करता है.
जनसंघ के संस्थापक एवं भाजपा के पितृ पुरुष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 को हटाने की माँग करते हुए अपना बलिदान दिया था… यह बात सबको याद रखनी होगी… यह लौ अपने सीने में जलाए रखनी होगी.
उस वक्त उनमें सामर्थ्य नहीं था, उनका संगठन कमजोर था. पर आज वो स्थिति नहीं है… उनका रोपा हुआ बिरवाँ आज वृक्ष का रूप ले चुका है और निरंतर बढ़ता ही जा रहा है.
नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में पार्टी की शक्ति और विस्तार उम्मीद से भी ज्यादा तेजी से हो रहा है… पर कुछ प्रश्न हैं जो मेरे मन को कचोट रहे हैं…
ऐसा क्यों लग रहा है कि इस विस्तारवादी नीति तले डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दबता जा रहा है?
ऐसा क्यों लग रहा है कि जो मुद्दे इस राज्य से संबंधित थे, जिनको आपने देश भर में उठा कर देशवासियों की सहानुभूति प्राप्त की थी, वो अब आपको ज्यादा परेशान नहीं करते हैं?
केंद्र में आपकी बहुमत की सरकार है, राज्य में भी साझेदारी है, तो कम से कम कुछ तो इशारा कीजिए ताकि लोगों को लगे कि आप बाकियों से अलग हैं?
कश्मीर घाटी अशांत है, इस अशांति को सिर्फ मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी कहकर नहीं टाल सकते हैं. अब आप विपक्ष में भी नहीं हैं कि सेना को खुली छूट ना देने का इल्जाम सरकार पर लगाएँ…. केंद्र में सरकार आपकी है अब.
प्रधानमंत्री बनने के बाद जब आपने जम्मू आकर ये कहा कि धारा 370 पर बहस होनी चाहिए तो देशवासियों के मन में इस धारा के प्रति आपकी प्रतिबद्धता पर संदेह क्यों होता है?
कुछ दिनों पहले जम्मू मे एक पत्रकार जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से धारा 370 पर प्रश्न पूछता है तो वे कहते हैं कि – “शुक्रवार के मेनू के बारे में सोमवार को सवाल नहीं पूछना चाहिए”.
ऐसा क्यों लगता है जैसे वो कह रहे हों कि, “जो बीत गई सो बात गई”? क्या यह पार्टी की प्रतिबद्धता के विपरीत नहीं है?
राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का लक्ष्य रखा है आपने… अच्छी बात है, पर कश्मीर घाटी से कितनी सीटों की उम्मीद रखते हैं?… क्या उतनी जीत पाएँगे जितनी जम्मू के हिन्दू बहुल क्षेत्रों में गँवा देंगे?
2014 में मिली 25 सीटों से कितनी ज्यादा पाएँगे अगले चुनाव में? घाटी के मुस्लिम आपको वोट देकर जिता ही देंगे आपको ऐसा क्यों लगता है? घाटी के प्रति आपका एकतरफा प्रेम जम्मू के लोगों को खलता है ये बात आप कब समझेंगे?
धारा 370 के प्रति आपकी प्रतिबद्धता में आई कमी की वजह कहीं घाटी की सीटों का लालच तो नहीं?
मुझे हिना भट्ट की बातें अब भी याद है जब उसने कहा था कि यदि धारा 370 को हटाया गया तो वह बंदूक उठा लेगी… वो भाजपा की स्टार प्रचारक और उम्मीदवार भी थी घाटी में, जिसके जीतने की प्रबल संभावना थी, पर हार गई थी.
आपको घाटी के लोगों का मूड उस वक्त ही समझ जाना चाहिए था कि आप दो नावों पर पैर नहीं रख सकते हैं. बावजूद इसके आप घाटी प्रेम में मतवाले होकर वहाँ के हालात से नजरें फेर रहे हैं.
लॉ एंड ऑर्डर की समस्या को राजनीतिक समस्या मानने की भूल आप भी कर रहे हैं. कश्मीर एक समस्या है, इस बात को जेहन से निकाल दीजिए.
अलगाववादी नेताओं को इग्नोर करके कुछ हासिल नहीं होगा, उन्हें शिकंजे में लीजिए हुजूर. पाकिस्तानी शुभचिंतकों को पहचान कर उन्हें अंदर करें.
सिर्फ इसी वर्ष ईराक और सीरीया के ISIS हैडलरों से बात करने वाले सैकड़ों नौजवानों की कॉल लिस्ट निकलवाइए.
भारत में आ रहे नये पाकिस्तानी उच्चायुक्त पर नजर रखें, क्योंकि अब्दुल बासित पर नजर तो रख नहीं पाए… वो सालों से करोड़ों रुपये बाँटता रहा अलगाववादी नेताओं को और आपको पता भी नहीं चला.
अब ज्यादा क्या कहूँ, आपको पता है कब क्या करना है?
जम्मू कश्मीर में सत्ता पाने के लिए यदि समझौते करने पड़ते हैं तो छोड़ दीजिए इस राज्य की सत्ता वरना इसका असर पूरे देश पर पड़ेगा, आपकी और पार्टी की इमेज भी खराब होगी. बहुत सारे राज्य बचे हैं फतह करने के लिए… पर अपने एजेंडे से समझौता ना करें.
धारा 370 के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता को कमजोर ना होने दें, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान को जाया ना होने दें…