सुबह सुबह आँख खुले ना खुले, फेसबुक ज़रूर खुल जाता है. चाहे कोई भी हो नौकरीपेशा, व्यापारी, शिक्षक, छात्र, गृहणी, प्रेमी, प्रेमिका… सबको दूसरों के स्टेटस जानना है और अपना स्टेटस बनाना है…
जैसे फेसबुक ही आपका स्टेटस तय कर रहा हो, आप चाहे घर में फटी बनियान सीने तक ऊपर चढ़ाए सर पर ढुलूर ढुलूर हिलते पंखे के नीचे बैठ अपने वास्तविक स्टेटस से दो चार हो रहे हो, लेकिन फेसबुक पर समंदर किनारे खींची अपनी सबसे cool dude लगने वाली तस्वीर आपका आभासी स्टेटस तय करती है…
और जब एक दिन पता चले आपकी यह आभासी दुनिया रुक गयी है… फिर? आपकी पूरी आभासी दुनिया छिन्न भिन्न होकर ज़मीन पर बिखरी पड़ी होगी… आपका आभासी स्टेटस जिसको दुनिया के सामने प्रस्तुत करते हुए आप खुद कब एक आभासी जीवन जीने लगे थे आपको पता भी नहीं चला… पता तब चला जब हक़ीकत ने आकर एक झन्नाटेदार तमाचा आपके मुंह पर जड़ दिया…
आज कुछ मिनट्स के लिए जब फेसबुक बंद हुआ तो सबसे पहला ख़याल जो आया वो यही था कि फेसबुक के रुक जाने से अपने देश में तो क्या पूरी दुनिया में हलचल मच गयी होगी… चाहे हमारे देश के प्रधानमंत्री हो या देश का आम नागरिक सबके काम फेसबुक और सोशल मीडिया पर आधारित हो गए हैं. नए नए app, नई योजनाओं के प्रचार प्रसार से लेकर आम आदमी के व्यापार और जनसंपर्क के इस माध्यम के हम इतने मोहताज हो गए हैं कि इतनी मोहताजी तो मुझे प्रकृति की अवश्यम्भावी चीज़ों के लिए भी नज़र नहीं आती…
कल जब फेसबुक नहीं था तब भी जीवन चल रहा था, कल जब फेसबुक नहीं होगा तब भी जीवन चलेगा, बल्कि और उन्नत साधनों के साथ चलेगा… मोहताजी किसी भी वस्तु की ठीक नहीं… बहुत महत्वपूर्ण है फेसबुक और बहुत सारी वस्तु महत्वपूर्ण होगी जीवन में फेसबुक की तरह, लेकिन जीवन का वास्तविक रूप देखना हो तो खुद को हमेशा तैयार रखिये उन महत्वपूर्ण वस्तुओं से वंचित हो जाने के लिए…
जब आपको आपके जीवन के किसी बहुत महत्वपूर्ण वस्तु से वंचित किया जा रहा होगा तब आप पूरी तरह टूट जाएंगे, निराश हो जाएंगे… लेकिन इस निराशा से उबरते हुए पाएंगे कि उससे भी अधिक महत्वपूर्ण वस्तु आपको उपहार में देने के लिए ही आपको वंचित किया जा रहा है…
कल हो सकता है फेसबुक से अधिक सुविधापूर्ण एप्लीकेशन आपको मिलनेवाला हो लेकिन जीवन सुविधाओं के मोहताज हो जाने का नाम नहीं… जीवन का अर्थ है खतरनाक ढंग से जीना… नीत्शे तुम ठीक कहते हो जीवन का पर्यायवाची ही है “खतरनाक”.