शादी हुई, उसके अगले दिन से ही धड़ाधड़ संबंध बनाना शुरू.. समय की कोई सीमा नहीं.. कितनी बार कोई ठिकाना नहीं.. जब मन चाहा तब.. स्टोरीज और वीडियो क्लिप्स देखते हुए विभिन्न आसन का प्रयोग में लाना.. बोले तो खूब मस्ती.. और ये मस्ती लगातार चलते ही रहती है.. एक महीने.. दो महीने.. तीन महीने..
और ऐसा चलते-चलते जब पीरियड आना रुक जाता तो मुँह से अनायास ही ये शब्द निकलते.. “ओह शीट यार.. बच्चा ठहर गया.. अभी नहीं ठहरना चाहिए था यार.. अभी तो मस्ती के दिन थे.. अभी थोड़े और मस्ती करना था.. अभी तो शुरू ही किये थे कि बच्चा ठहर गया.. इतनी जल्दी बच्चा नहीं चाहिए था.. शीट मेन..”
बायोलॉजिकली बच्चा तो होगा ही.
वहीँ अब दूसरा पहलू देखिये…
एक दम्पति है… उसको बताया जाएगा कि आपके राशि के अनुसार और ग्रहों की स्तिथि के अनुसार अमुक दिन को संबंध बनाइएगा तो उत्तम और तेजस्वी संतान की प्राप्ति होगी.
मान लीजिये ये बात आपको एक हफ्ते पहले बता दी गई.. तो आपके और आपके जीवनसाथी में मन में क्या चल रहा होगा? .. आपके और आपके अर्धांगिनी के मन में बस एक तेजस्वी संतान की उत्पति को लिए उस क्षण का इंतज़ार होगा, जब हम मिलन करेंगे और तेजस्वी संतान की प्राप्ति होगी.
और इस हफ्ते भर के अंदर आपके मन में वासना और मस्ती का कोई भाव नहीं रह जाएगा.. भाव रहेगा तो बस एक उत्तम संतान की उत्पति का. और जब आप मिलेंगे तब वो मिलन पूर्णतः वासना रहित होगा और संतान प्राप्ति के भाव से ओत-प्रोत होगा. और इससे जो संतान होगी वो निश्चित रूप से तेजस्वी ही होगी.
बात है बीज और नींव की.. जब बीज ही सड़ेला हो तो उससे एक अच्छे वृक्ष की कामना नहीं कर सकते. जब नींव की कमजोर हो तो उसके ऊपर बड़े भवन नहीं बना सकते. उसी प्रकार जब संतान का बीज/आधार ही मस्ती और मनोरंजन हो तो फिर आप संस्कारवान और उत्तम संतान की कामना कैसे कर सकते हैं?
जो मिलन वासना से ओत-प्रोत और संतान प्राप्ति की भावना से बिल्कुल नगण्य हो, उससे उत्पन्न संतान से आप क्या अपेक्षा रखेंगे? जब आपके मन में पहले ही बीज में ‘संतान’ की भावना ही नहीं तो फिर वो आगे चलकर आपको माँ-बाप ही क्यों माने?
किसी को फटे कंडोम की पैदाइश बोल दो.. देखो फिर वो कैसा चिढ़ता है.. क्यों चिढ़ेगा भला वो? .. क्योंकि उसके माँ-बाप संतान चाहते ही नहीं थे.. मनोरंजन के लिए संबंध बना रहे थे.. अंतिम समय में कंडोम जवाब दे गया और उसके फलस्वरुप ये ठहर गया. यहाँ संतान प्राप्ति के कोई भाव नहीं.. मिलन केवल वासनापूर्ति के लिए किया जा रहा था.
जब तक पहले बीज से ही संतान का भाव न हो, तो आगे चलकर माँ-बाप का भी भाव खो दोगे.
अब समझ में आ रहा है कि इंडिया में वृद्धाश्रम ज्यादा क्यों खुल रहे हैं???
समझिये… विचारिये..