आज नरसिंह चतुर्दशी हैं, हिंदुओं के लिए कितने महत्व का दिन. वैसे तो हम सभी जानते हैं भक्त प्रह्लाद और उसके पिता हिरण्यकशिपु की कहानी, यहाँ कुछ कम प्रचलित बातें लिखना चाहूँगी अपने स्मरण में बनाए रखने के लिये.
1. हिरण्यकशिपु (प्रह्लादके पिता) के दूसरे भाई का नाम हिरण्याक्ष था, और ये दोनो भाई कश्यप मुनि और दिति माता के संतान थे. हिरण्याक्ष को भगवान ने वराह अवतार लेकर मृत्यु को प्राप्त कराया था.
2. इस से क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने तपस्या की थी और वो सब वरदान माँगे थे जो हम सबको पता हैं ( ना दिन में मरूँ ना रात में, ना किसी अस्त्र- शस्त्र से, ना मनुष्य से ना ही किसी जीव जंतु, ब्रह्मा के बनाए किसी जीव से नहीं और ऐसे ही और वर…)
3. प्रह्लाद महाराज की माँ का नाम कायाधु था और जब हिरण्यकशिपु मंदरंचल पर्वत पे तपस्या करने गया था, इंद्र ने उसके यहाँ आक्रमण कर दिया. नारद मुनि ने गर्भस्थ कायाधु को अपने आश्रम में आश्रय दिया और गर्भ में पल रहे प्रह्लाद महाराज ने भक्तिशास्त्र की पारंगत शिक्षा यहीं उनकी देख रेख में प्राप्त की.
4. राक्षसों के गुरू शुक्राचार्य के दो पुत्रों संद और अमर्क की निगरानी में प्रह्लाद और बाक़ी राक्षस वालको की शिक्षा हुई थीं और यहीं पे प्रह्लाद ने इन बालकों को पहली बार श्री हरि की भक्ति में संलग्न होने का उपदेश दिया था.
उसके बाद की कहानी, कि कैसे हिरण्यकशिपु के सामने अपनी पढ़ाई का ब्योरा देते समय प्रह्लाद ने श्री हरि को ही सर्वस्व बताया और उनकी भक्ति करने को ही मानव जीवन की श्रेष्ठता, और फिर कैसे हिरण्यकशिपु की चुनौती पर भगवान प्रकट हुए, हम सबको पता हैं.
नरसिंह चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएँ.