प्रकृति ने हमें उपहार में अनगिनत चीजें सौंपी हैं. बनावट के हिसाब से सभी अलग एवं अपनी भीतर एक विशिष्ट गुण-धर्म सहेजे हुए हैं.
अब आप बेल को ही ले लीजिये…. बेहद सख्त खोपड़ी सा कड़ियल फल है. पेड़ पर से डायरेक्ट किसी के खोपड़ी पर गिर जाये तो यह पूरी संभावना है कि अमुक व्यक्ति ब्रेन हैमरेज का शिकार हो जाये. बेल को तोड़कर उसके अन्दर झांकने की प्रक्रिया श्रमसाध्य एवं निष्ठुर होती है.
आपको पता होगा कि बेल ऊपर से जितना पथरीला होता है, भीतर उतना ही लिबलिबा, अन्दर की बनावट विचित्र सी जालनुमा होती है. फाइबर के जालों में कड़वे बीजों की फौज एवं लासायुक्त चिपचिपा पदार्थ का ऐसा संमिश्रण होता है कि एक बार उसे छूने में मन हिचकता है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि बेल धरती पर गिरे और दुनिया बिना उनकी मरम्मत किये छोड़ दे. उनकी खोपड़ी की अकड़ तोड़ी जाती है और उनको यह बताया जाता है कि तुम अन्दर से लिबलिबे हो भले ऊपर से जो भी बनते या दीखते हो. उसको यह भी बताना पड़ता है कि अन्दर से भले तुम्हारे बीज कड़वे हों, भले तुम अपने लसलसे आचरण से मेरे हाथ को जकड़ लेना चाहते हो लेकिन हम तुम्हारी सारी हेकड़ी पानी में घुलाकर छुड़ा देंगे.
हम, तुम्हारे भीतर से वह सारी रुकावट और कड़वाहट को छननी से अलग करेंगे जो तुम्हारी मिठास को मेरी जिह्वा पर लाने का विरोध कर रही है. हम इतने पर भी नहीं मानते हम बेल की खोपड़ी से एक छोटा टुकड़ा (चम्मच के आकार का ) मूल संरचना से अलग करते हैं. उस छोटे से टुकड़े को पहले चूसते और चाटते हैं पुनः उस प्राकृतिक यंत्र द्वारा बेल के भीतर छिपी मलाई की परत को खुरच-खुरच कर अपने कब्ज़े में लेते हैं हम खुरचते-खुरचते उस स्तर तक पहुंच जाते हैं खुद अपना ही जमीर धिक्कारने लगे.
कुल मिलाकर अब आप यह समझें कि जब हमें लगता है कि कहीँ मिठास की गुंजाइश है तो हम हर मुश्किल और ज़लालत को सह करके भी मिठास ढूंढने और निकालने का प्रयास करते हैं और उसके सारे ऐबों को किनारे रखकर उसकी मिठास को गले लगाते हैं और उसके इस गुण की प्रशंसा भी करते हैं.
जी हाँ ! इसलिए जरूरी यह है कि आपके भीतर मिठास छुपी हो भले बाहर से आप पत्थर शक्ल या कड़ियल हों. आप यकीन करें ! हम आपको तोड़कर, फोड़कर, छुड़ाकर, लपेटकर, घुलाकर (थोड़ी चीनी भी मिलाकर) खुरचकर, चाटकर, चूसकर आपके गुण को दुनिया से रूबरू करायेंगे. लेकिन शर्त यह है कि आपके भीतर मिठास छुपी होनी चाहिए और आपको अपने टूटने के भय और अपने सख्त होने के अभिमान से मुक्त होना पड़ेगा.