अब आइये इन विद्यालय की भी ज़रा परेशानी समझें. यह समझें कि आज स्कूल चलाने वाले प्रबंन्धन संस्थान का काम धन कमाना है इसीलिए उनका लाभांश मिलना आवश्यक है. आज के समय में यदि CBSE के मानकों को देखा जाए तो एक स्कूल के लिए न्यूनतम लगभग 2000 वर्ग मीटर की आवश्यकता है. जिसकी कीमत बड़े शहर (उदहारण नॉएडा ) में 5 करोड़ और छोटे शहर (उदहारण कुल्लू ) में 1 करोड़ के आसपास है. और 1 करोड़ के आसपास कमरे, प्रयोगशालाएं, पुस्तकालय, संगणक केंद्र (कंप्यूटर सेंटर ) इत्यादि का खर्चा है.
अब सीबीएसई ने अपने मानकों के अनुसार अध्यापक बनाने की कुछ नियम बनाए जिनके अनुसार शिक्षक का वेतन लगभग 30000 से 50000 प्रतिमाह होगा. यह भी कहा गया कि 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए.स्कूल में एक चिकित्सकीय कक्ष, जिसमें एक चिकित्सक और दवाएं भी रखी होनी चाहिए. इसके अतिरिक्त स्कूल को माली. सुरक्षा कर्मचारी, विभीन्न रूप से सेवकों की आवश्यकता है. यदि आप स्कूल के पूरे खर्चे का अनुमान लगाएं तो प्रति 10 बच्चों हो एक अध्यापक/व्यक्ति का खर्चा आता है.
सरकार तो अपने अधिकारियों और कर्मचारियों को छटा और सातवाँ वेतन आयोग बिठा कर वेतन वृद्धि करती रहती है तो निजी क्षेत्र में भी अच्छे कामगारों को रखने के लिए आपको उनको अधिक वेतन देना पड़ता है. यदि आप अपने कर्मचारी को स्थायी पद दे देते हैं तो 33% का खर्चा और स्कूल पर पड़ता है. कुल मिला कर यदि आर्थिक रूप से सोचें तो प्रति विद्यार्थी 5000 से अधिक तो वेतन का खर्चा ही आता है.
इसके साथ बिजली पानी एवं अन्य सुविधाओं का खर्चा भी प्रबंधन पर पड़ता है. फिर प्रबंधन ने करोड़ों रुपये लगा कर एक उपक्रम लगाया है तो इससे कम से कम लाखों में लाभ भी चाहिए.
अध्यापक की नियुक्ति पर भी सरकारी नियमों के अनुसार बहुत परेशानी है. पहले तो अध्यापक का बीएड होना था और अब सरकार के अनुसार उसको TET भी पास करना है. अब सरकार के पास अध्यापक TET पास किये हुए हैं ही नहीं अकेले सरकारी स्कूलों में आज भारत देश में 12,00,000 यानी 12 लाख शिक्षकों की कमी है. आज भी TET में से 60% लाकर पास होने वाले कुल लगभग 50% विद्यार्थी हैं.
अब आपने अपने वोट बैंक के चलते अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के लिए पास होने के लिए 33% कर दिया. आप कल्पना करें कि 33% स्वयं लेने वाले अध्यापक से हम उम्मीद करते हैं कि वह हमारे होनहार विद्यार्थी को 95% अंक दिलवाएगा. आप कहाँ और कैसे उम्मीद कर सकते हैं. यह तो है सरकारी स्कूल का हाल.
निजी स्कूल का बच्चा जब आता है तो अध्यापक जानता है कि उसके अभिभावक अपनी इच्छा से बाहर कोचिंग सेन्टर में धन लगाएगा, मतलब इसके पास धन है तो प्रबंधन क्यों नहीं ले. अब FIITJEE, AKASH इत्यादि लगभग 2 लाख रुपये प्रति वर्ष लेते हैं जिन पर अभिभावक का कोई भी अधिकार नहीं और न ही सरकार का.
यही कोचिंग संस्थान कक्षा 6 से अब शुरू ही गए हैं जिनकी फीस लगभग 85000 प्रति वर्ष है. यही सब सोच कर अब स्कूलों नें यहाँ पर बस किराए से, स्कूल की वर्दी के नाम पर और ऐसे ही अन्य खातों में मनमानी करनी शुरू कर दी.
अब स्थिति इतनी भयावह हो चुकी कि सरकार को अध्यादेश निकालने पढ़ रहे हैं. मेरी विनती है कि सरकार सभी पक्षों की सुने और शिक्षा नीति में और स्कूलों के नियमों से ले कर पाठ्यक्रम में बदलाव की प्रक्रिया प्रारम्भ करे. तभी शायद हम शिक्षा के असली स्वरूप को पहचान पायेंगे.