दोपाया से चौपाया बन कर क्यों कर रहे हैं गर्व!

हमारे मुहल्ले में एक प्रोफेसर साहब रहते थे. मुहल्ले में उनके परिवार की साफ-सुथरी छवि थी. प्रतिष्ठित और संस्कारी परिवार था.

पड़ोसी मुहल्ले में एक बदनाम परिवार था जिसके कुकर्मों के किस्से आधे शहर में तो जरूर मशहूर थे.

एक दिन पता चला कि बदनाम परिवार वाले ने प्रोफेसर साहब के लड़के से अपनी लड़की की शादी के लिए रिश्ता भेजा है.

अब तो जितने मुँह उतने किस्से… दो-चार दिनों में ही औरतों के बीच खबर फैल गयी कि प्रोफेसर साहब अपने लड़के की शादी कर रहे हैं उस बदनाम परिवार में.

अब क्या था…. शादी का टॉपिक टॉक ऑफ मुहल्ला बन गई…. लोग प्रोफेसर साहब को कोसने लगे…

कोई कहता कि प्रोफेसर साहब की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है… कोई कहता कि लड़का अपनी पसंद से शादी कर रहा है…

कुछ अतिउत्साही लोगों ने तो घोषणा करनी शुरू कर दी कि अब प्रोफेसर साहब का मुहल्ले में बॉयकॉट किया जाएगा… कुछ और लोग उनके समर्थन में भी आ गए.

उधर प्रोफेसर साहब को मुहल्ले की इस हलचल का कुछ पता ही नहीं था.

किसी काम से प्रोफेसर साहब हमारे घर आए तो दादी ने अपना बुजुर्ग वाला कर्तव्य निभाते हुए बिना माँगे ही सलाह देना शुरू कर दिया.

दादी के मायके के पड़ोस वाले गाँव की ही प्रोफेसर साहब की माँ थीं इसलिए दादी उनको अपनी बहन मानती थीं.

सो मौसी ने बेटे समान प्रोफेसर साहब को समझाना शुरू किया – ‘बेटा तुम क्यों इतनी बड़ी गलती कर रहे हो? ऐसे खराब परिवार में लड़के की शादी करोगे तो तुम्हारी आने वाली पीढ़ी खराब हो जाएगी.’

बेचारे प्रोफेसर साहब समझ ही नहीं पा रहे थे कि मौसी उपदेश दे क्यों रहीं हैं… थोड़ी देर तक दादी की बात सुनने के बाद उन्होंने पूछ लिया – ‘मौसी आप किस परिवार में शादी करने से मना कर रही हैं?’

उन्होंने कहा, ‘अभी तो हम लोगों ने अभय की शादी कहीं पक्की ही नहीं की है. वो एम टेक करना चाहता है उसके बाद नौकरी करेगा तब उसकी शादी करेंगे.’

इतना सुनते ही दादी ने माथा पकड़ कर कहा – ‘हे राम जी! इतने दिनों से मुहल्ले वाले जो कह रहे हैं वो क्या झूठ है?’

प्रोफेसर साहब खुद ही उलझन में थे क्योंकि उनको तो कुछ पता ही नहीं था जवाब क्या देते.

दादी को तो अलग झटका लगा था किसकी बात पर भरोसा करें… मुहल्ले वालों पर या प्रोफेसर साहब पर.

बड़े पापा ने प्रोफेसर साहब को पूरी बात जब बताई तब वो हंसने लगे… क्योंकि तिल का ताड़ वाले मुहावरे का प्रैक्टिकल अनुभव उनको हो गया था.

बात बस इतनी सी थी कि उस बदनाम परिवार से शादी का प्रस्ताव आया था जिसको इन लोगों ने मना कर दिया था.

पर किसी चुगलखोर ने इसमें नमक मिर्च लगा कर फैला दिया… बढ़ते क्रम में उसमें और मसाले मिलते गए… बात प्रस्ताव से शादी पक्की होने तक पहुँच गयी.

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है. रिपोर्ट में एससी और एसटी वर्ग के लिए प्रमोशन में आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था को जारी रखने की आवश्यकता बताई गई है.

रिपोर्ट बनाने वालों के अनुसार विकास के पैरामीटर पर एससी-एसटी समुदाय के लोग आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर अन्य समूहों से बहुत पीछे हैं…

इसलिए बराबर के मौके मुहैया कराने और समावेशी विकास के लिए प्रमोशन में आरक्षण जारी रखना जरूरी है.

बात अभी सिर्फ रिपोर्ट और प्रस्ताव तक ही है… मीडिया के ज्ञानी विश्लेषकों और सोशल मीडिया के वीर-बाँकुरों ने लाठी भांजनी शुरू कर दिया.

जरा ध्यान से भी पढ़ लिया करिये महानुभाव… प्रस्ताव में कुछ नया करने को नहीं कहा गया है…

प्रमोशन में आरक्षण तो आज भी मिल रहा है कुछ विभाग को छोड़कर लगभग सभी विभाग में… प्रस्ताव में उसको जारी रखने की सिफारिश की गई है.

यहाँ प्रचारित ऐसे किया जा रहा है जैसे मोदी सरकार कोई नई व्यवस्था लाने जा रही है.

अपने को जागरूक विचारक कहने वाले भी बिना विचारे दूसरों के सुर में सुर क्यों मिलाने लगते है… रिसर्च का ही विषय है.

ग्लोबल वार्मिंग का असर मनुष्य के मस्तिष्क पर भी पड़ रहा है इसलिए मनुष्य के रूप में जन्म लेने के बाद देव बनने का प्रयास करने की जगह पशु बनने की होड़ लगी हुई है.

विकास की परिभाषा ही उल्टी हो गयी है… आप जहाँ हैं उससे ऊपर की तरफ बढ़िये न… दोपाया से चौपाया बन कर गर्व क्यों कर रहे हैं.

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