सन 2006 में प्रमोशन में अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का एक जजमेंट आया था. सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट में कहा कि धारा 16 (4A) मैंडेटरी नहीं है. बल्कि राज्य सरकार को अपने प्रदेश में SC/ST कैटेगरी के पिछड़ेपन, प्रशासनिक क्षमता और नौकरियों में उनके प्रतिनिधित्व को देखकर आरक्षण की व्यवस्था करनी है.
सन 1955 से सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सुविधा दी जा रही है और ये आरक्षण प्रोमोशन में भी लागू है.
सन 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक जजमेंट में पदोन्नति में आरक्षण को ख़त्म कर दिया था, गैरजरूरी बताया था. लेकिन फिर सरकार ने 1995 में संविधान में एक नयी धारा 16(4A) जोड़कर पदोन्नति में आरक्षण को बहाल कर दिया.
इसके खिलाफ लोग सुप्रीम कोर्ट गए जिसने 2006 के फैसले में इस धारा की व्याख्या करते हुए कहा कि ये जरूरी नहीं है कि पदोन्नति में आरक्षण कम्पलसरी है बल्कि तीन शर्तो को ध्यान में रखते हुए ये रिजर्वेशन एक राज्य सरकार को लागू करना है.
अब मोदी सरकार जिस आरक्षण को लागू करने जा रही है वो कोई नया आरक्षण नहीं है.
केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय को सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करवाना है. उसने अपनी रिपोर्ट में महज ये कहा है कि अभी भी पदोन्नति में अनुसूचित जाति और जनजाति को 15% और 7.5 % रिप्रेजेंटेशन नहीं मिला है, इसलिए पदोन्नति में आरक्षण जारी रखा जा सकता है. रिपोर्ट ये कहती है कि इन्क्लूसिव ग्रोथ और सबकी बराबरी के लिए फिलहाल आरक्षण को जारी रखने की जरूरत है.
मोदी सरकार कैसी भी कोई भी नयी आरक्षण नीति या नया आरक्षण नहीं ला रही है.
अखबारों में छपी रिपोर्टे भ्रामक तरीके से छापी गयी हैं ताकि जनता भड़के.
बाकी जनता तो हमेशा से सरकार की आलोचना के लिए स्वतंत्र रही है.