मैं बैठी हूँ एक ओपन जीप में
मेरा मन उड़ रहा है हवाओं संग
दुपट्टा लहरा लहरा जाता है
बाल माथे पे उचट उचट आते हैं
मेरे होठों पे है भीनी भीनी सी मुस्कुराहट
अंतर्मन है भीगा हुआ
आँखों की कोरों पे हैं आँसूँ
समरस्ता के, सामंजस्य के, तारतम्य के
एकाग्रता के, ध्यान के, समाधि के
बदन नहीं रूह हो गई हूँ मैं
शाश्वत
सड़क के किनारे खड़े पेड़ों के साथ खड़ी
योगी हैं जो ब्रह्माण्ड के
उड़ते पक्षियों के साथ उड़ती
संदेश वाहक हैं जो कायनात के
बादलों के साथ फ़्लोट करती
दृष्ट हैं जो इस ख़ूबसूरत साम्राज्य के
तुम चालक जो हो गाड़ी के
सम्भाले हुए स्टीरिंग व्हील
हर बात का ख़्याल रखते
ऊबड़ खाबड़ रास्तों से बचाते
मंज़िल की तरफ़ ले जाते
मुझे तो कुछ करना ही नहीं है
बस आनंद में रहना है
शांति शांति शांति
सब कितना ख़ूबसूरत है
कितना दिव्य …………………………
– साभार राजेश जोशी(Dedicated to Ma Jivan Shaifaly)