मराठा लाइट इन्फैन्ट्री के एक अफसर को साठ किलो आरडीएक्स चुराकर मालेगाँव ब्लास्ट का दोषी बनाया जाता है जिसमें कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद छः सालों तक चार्जशीट दायर नहीं की जा सकी. अफसर का नाम है कर्नल श्रीकांत पुरोहित. नाम तो सबने सुना ही होगा.
एक और टर्म चला था यूपीए के शासनकाल में जब कर्नल पुरोहित को मकोका के अंतर्गत बंद किया गया था: सैफ्रन टेरर, यानि भगवा आतंकवाद. ये टर्म सिर्फ एक, वो भी कल्पनाशक्ति के आधार पर, हिन्दू संगठन द्वारा तथाकथित ब्लास्ट के नाम पर दे दिया गया. जबकि वही व्यक्ति हमेशा ये कहता रहा कि हालांकि हर आतंकी हमला मुसलमान नाम वाले लोग कर रहे हैं, फिर भी हम उसे इस्लामी आतंक नहीं कहेंगे. भगवा आतंक कहेंगे, हिन्दू आतंकी संगठन कहेंगे, लेकिन मुसलमानों वाले हमले में वही विवेचना नहीं होगी.
हिटलर ने कहा था कि एक झूठ बोलो, उसे सीधा रखो, उसे बार-बार बोलते रहो, और अंततः लोग उसे सच मान लेंगे. कर्नल पुरोहित और सैफ्रन टेरर का वही हुआ. चिदंबरम ने ये शब्द बोले, और फिर उसे चाटुकार पत्रकारों ने लगातार चलाया. और फिर वो समय भी आया कि भगवा आतंकवाद एक स्थापित वाक्याँश हो गया.
आपको शायद पता नहीं हो, लेकिन आज भी कर्नल पर कोई चार्ज नहीं लगा. कोर्ट को कोई सबूत नहीं मिला. इसके उलट महाराष्ट्र के एटीएस के ऊपर ये आरोप है कि उनके अफ़सर हेमंत करकरे (जो मुंबई हमले में शहीद हुए) ने कर्नल पुरोहित को फँसाने के लिए आरडीएक्स ख़ुद रखा था और फिर कर्नल को उसी आधार पर गिरफ़्तार किया गया.
कर्नल पुरोहित सेना के एक बेहतरीन अफ़सर माने जाते हैं. लेकिन उनकी ज़िंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा उन्हें देशद्रोही बनाने की कोशिश में तात्कालिक सरकार ने तबाह कर दिया. कभी समय मिले तो कर्नल पुरोहित की पत्नी अपर्णा जी का इंटरव्यू सुनिएगा कि करकरे ने किस-किस तरह की प्रताड़नाए दी जेल में. उनके चारों हाथ-पाँव को हर तरफ खींचा जाता था, बेतहाशा पीटा जाता था, और अंततः उनकी स्थिति ये बना दी गई कि उन्हें खड़े होने में परेशानी होती है. उन्हें लगातार धमकी दी जाती रही कि वो क़बूल करे कि वो गुनहगार है वरना उसकी माँ, बहन और पत्नी को उसके समाने नंगा करके परेड कराया जाएगा.
ये सब किस लिए? मुसलमानों का वोट लेने के लिए? ये साबित करने के लिए कि हिन्दुओं की एक तथाकथित संस्था मुसलमानों के सिमी की समकक्ष है? हिन्दुओं के ख़िलाफ़ एक साज़िश रचने के लिए और अपनी राजनैतिक पहचान बचाए रखने के लिए? तुष्टीकरण की राजनीति और पक्षपाती पत्रकारिता के दौर में याकूब मेमन के ख़िलाफ़ सबूत होने के बावजूद, 22 साल का ट्रायल चलने के बावजूद सुबह के चार बजे सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खुलवाया जाता है. लेख लिखे जाते हैं कि ये एक्स्ट्राजुडियशियल किलिंग है, और प्रबुद्ध वर्ग मान लेता है कि ऐसा ही है.
आज ये सारे दोगले पत्रकार, नंगे नेता, और छद्मबुद्धिजीवियों की पूरी जमात इस विषय पर कुछ नहीं बोल रही. आज सैफ्रन टेरर नामक परिभाषा को ढोते-ढोते पत्रकारिता चमकाने वाले, डिबेटों की महफ़िल लूटने वाले, प्राइम टाइम शो में बवाल काट देने वाले सब गायब हैं?
कर्नल पुरोहित और सैफ्रन टेरर दोनों ही इस बात के परिचायक हैं कि सत्ताधारी पार्टी वोट पाने के लिए किस हद तक गिर सकती है. आमतौर पर पार्टियाँ विपक्ष के नेताओं का अपना निशाना बनाती रही हैं, लेकिन कांग्रेस के नाम थोड़े अलग तरह की बातें हैं. ये पहली पार्टी होगी जिसने सेना के अफ़सर को, राजनैतिक महात्वाकांक्षा की बलि चढ़ाया. ये पहली पार्टी थी जिसने इस देश में दंगे किए, कराए और एक धर्म विशेष के लोगों की सामूहिक हत्याएँ की. दंगे दो समुदायों में होते हैं, यहाँ एक सत्ताधारी पार्टी ने किया था.
कर्नल पुरोहित को फँसाना, उसे चर्चा का विषय बनाकर, भगवा आतंक, हिन्दू टेरर जैसे शब्दों को बोलचाल में लाना, सिर्फ एकेडमिक एक्सरसाइज़ नहीं था. इस पूरे प्रक्रिया में सेना की छवि ख़राब हुई कि एक अफ़सर ही देश में आतंकवादी गतिविधि कर रहा है. इस पूरी प्रक्रिया में पूरे धर्म को, जिसका इतिहास और वर्तमान सहिष्णुता का पैमाना रहा है, आतंकवादी बताने की कोशिश की. जबकि सबको पता है कि आतंक का ठप्पा कहाँ लगा है, और क्यों.
कर्नल पुरोहित को याद रखिए. उन्हें इसलिए याद रखिए कि हमारे-आपके जीवन काल में ही फिर कोई सत्ताधारी पार्टी वोट के लिए नीचे गिरेगी. उन्हें इसलिए याद रखिए ताकि याद रहे कि इस देश की मीडिया, पूरी दुनिया की तरह ही, बिकी हुई है और सत्ता की गोद में पलती है. उन्हें इसलिए याद रखिए ताकि याद रहे कि प्राइम टाइम एंकरों के डिबेटों में कितनी खोखली बातें होती हैं. उन्हें याद रखिए क्योंकि वो फ़ौज के बेहतरीन अफ़सर हैं.
सैफ्रन टेरर को भी याद रखिएगा. वो इसलिए कि इन दो शब्दों से एक पार्टी उस धर्म को बदनाम कर रही थी जिसने हर क़िस्म के लुटेरों को, मंदिर गिराने वालों को, बलात्कारियों की औलादों को, राजा बन गए लुटेरों की सन्तानों और उनकी पीढ़ियों के आतंक को सहा है. सहिष्णुता अगर हिन्दुओं में नहीं है, और हिन्दुस्तानियों में नहीं है तो फिर वो धरती पर कहीं हो ही नहीं सकती. इसलिए हिन्दू टेरर, भगवा आतंकवाद को याद रखिएगा. ये शब्द सिर्फ अक्षरों के झुंड नहीं, ये पूरी राजनीति का वो गंदा चेहरा हैं जो हमारे नेता बार-बार दिखाते रहते हैं.
Excellent post.