अरब का इतिहास : भाग-5

अरब की दूसरी किस्म आरेबा (True Arabs) कहलातीं हैं. इन्हें कहतान की औलाद माना जाता है और कहतानी कहकर भी बुलाया जाता है.

[अरब का इतिहास : भाग-4]

इन आरेबा अरबों के बारे में कहा जाता है कि इनमें से कुछ लोग पूरब की ओर काबुल के पास (यानि तब के हिन्द) से भी आये. इनमें से एक का नाम था यारब था.

[अरब का इतिहास : भाग-3]

ये लोग कहतान के वंशज थे और सूर्य पूजक थे, इनके वंश में हुए एक शासक का नाम था अब्दुस शम्स (यानि सूर्य का दास). इन बायदा अरबों का काल प्राचीन अरब के लिये स्वर्ण-युग था क्योंकि ये लोग मक्के के दक्षिणी इलाके से निकलकर बेबीलोन, सीरिया और मिस्र तक गये और अपनी संस्कृति का विस्तार किया.

[अरब का इतिहास : भाग-2]

बाबिल से ही हम्बूराबी का नाम जुड़ा हुआ है जिसके न्याय-व्यवस्था के बारे में हम लोग इतिहास की किताबों में पढते हैं. हजरमौत के इलाके से लेकर खलीज-फारस के दरम्यानी इलाके समृद्ध अरब की गवाह थी.

[अरब का इतिहास : भाग-1]

ये लोग जलयात्रा में दक्षता रखते थे. इनका निवास यमन के इलाके में भी था. बायदा अरबों के विनाश के बाद इनके बारे में कहा जाता है कि ये मूल अरब थे. लाल सागर से लेकर फारस की खाड़ी के बीच आबाद कई अरबों का आज भी ये दावा है कि वो आरेबा अरब यानि मूल अरब हैं. यमन वगैरह में आज भी कहतान नाम आम है.

[अरब का वो इतिहास जिसे हम सबको जानना चाहिये]

इस्लामी किताबों के अध्ययन से भी मालूम होता है कि कहतान कबीले के लोग आज भी वजूद में हैं. कयामत से जुड़ी पेशीनगोईयों में कहतान का जिक्र कई दफा आता है.

हदीसें कहतीं हैं कि याजुज और माजुज के खातमे के बाद ईसा अपनी हुकूमत कायम करेंगे और फिर उनकी वफात हो जाएगी और मुसलमान उनकी नमाजे-जनाज़ा अदा करेंगे और उनको रसूल के पहलू में दफ़न करेंगे. फिर यमन के कबीले “कहतान” से एक शख्स जिसका नाम जहजाह होगा, खलीफा बनेगा और अद्ल-इन्साफ के साथ हुकूमत करेगा.

कहतान कबीले का जिक्र बुखारी और मुस्लिम शरीफ में भी आया है. हजरत अबू हुरैरा से रिवायत एक हदीस में आता है, नबी ने फरमाया कि क़यामत तब तक कायम नहीं हो सकती जब तक यमन के कबीले कहतान से ऐसा शख्स जाहिर न हो जो लोगों को अपने लकड़ी से हांकेगा. यमन का कबीला जुरहम इन्हीं लोगों में आता है.

आरेबा और मुस्तारेबा को सम्मिलित रूप से अरब-बाकिया भी कहा जाता है. अरब की इस तीसरी किस्म मुस्तारेबा और आरेबा में एक मूल अंतर ये है कि जहाँ आरेबा अरबों की मूल जुबान अरबी थी वहीँ मुआतारेबा वो थे जिन्होनें आरेबा लोगों से अरबी जुबान सीखी.

मुस्तारेबा मूल अरब नहीं थे. बल्कि ये बाहरी लोग थे जिन्होनें अरबियत की अपनाया था. रोचक बात ये है कि पैगम्बरे-इस्लाम भी इन्हीं मुस्तारेबा अरब में से हैं, यानि पूर्वज परंपरा से वो मूल अरब नहीं थे.

भारत में जो लोग मैकाले द्वारा गढ़े गये आर्य-द्रविड़ के झूठे सिद्धांत का आड़ लेकर यहाँ के हिन्दुओं पर हमले करते हुए उनका ये कहकर मजाक उड़ाते हैं कि तुम्हारा हिन्द से क्या ताअल्लुक? तुम सब तो बाहरी लोग हो, उन सब लोगों के लिये मुस्तारेबा-अरब का ये सत्य मुंहतोड़ जवाब है.

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