अमेरिका के केलिफोर्निया विश्वविद्यालय ने इस वर्ष जून माह मे नये शैक्षणिक सत्र के प्रारंभ के लिये मुख्य अतिथि के तौर पर नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त दलाई लामा को आमंत्रित करने की घोषणा की है… दलाई लामा तिब्बत के बौद्ध धर्म गुरू है और निर्वासित तिब्बति सरकार के प्रमुख है.
विश्वविद्यालय प्रशासन की इस घोषणा के बाद वहां अध्ययनरत चीनी विद्यार्थियो और वामपंथ विचारधारा के छात्रों में हड़कम्प सा मच गया है… इन चीनी वामपंथी छात्रों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए घोषणा की है कि विश्वविद्यालय मे बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा को बोलने नहीं दिया जायेगा… दलाई लामा धर्म गुरू नहीं वरन् एक आंतकी और अलगाववादी नेता है जो तिब्बत की आजादी के आंदोलन के बहाने चीन का विभाजन करना चाहते हैं.
अब चीनी वामपंथी छात्रों की इस राष्ट्रवादी सोच एवं नीति की तुलना भारतीय वामपंथी छात्रों से करें… हमारे नकली, पाखंडी, राष्ट्रद्रोही देशी वामपंथी छात्र सदा भारत के विखंडन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित रहे हैं, चाहे आजादी के पहले पाकिस्तान के निर्माण की बात हो या दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय या जाधवपुर विश्वविद्यालय हो… वामपंथी छात्र हमेशा कश्मीर, बस्तर, बंगाल, केरल को भारत से अलग करने की मांग को सही ठहराते है… जबकि ये प्रदेश सदा से भारत के अभिन्न अंग रहे हैं.
जबकि तिब्बत की कहानी इसके ठीक उलट है… तिब्बत एक आजाद राष्ट्र था… अंग्रेजों के शासनकाल तक चीन तिब्बत को स्वतंत्र देश के रूप मे मान्यता देता रहा… लेकिन आजादी के बाद चाचा नेहरू को ‘पंचशील’ जैसे काल्पनिक अयथार्थवादी नीति के झांसे मे लेकर सैन्य शक्ति के बल पर चीन ने तिब्बत को हड़प लिया… बावजूद इसके चीनी वामपंथी छात्र आज तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग मानते है… वे हर मंच से तिब्बत की आजादी का विरोध करते हैं.
वहीं दूसरी ओर भारतीय वामपंथी छात्र कश्मीर, बस्तर और देश के अनेक भागों को आजाद कराने के लिये आधी रात को पागलो की तरह आजादी(?) के नारे लगाते रहते हैं… भारत के ये नकली/पाखंडी/राष्ट्रद्रोही/पाकपरस्त देशी वामपंथी छात्र कब चीनी छात्रों से देशभक्ति और राष्ट्रवाद का पाठ सीखेगें?
अतं मे एक बात जो महत्वपूर्ण है वह यह कि भारत मे वामपंथियों की इन्ही कारस्तानियों की वजह से देश में इनकी क्षमता कितनी बची है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव मे वामपंथी दलों को पूरे यूपी की 403 विधानसभा सीटो से मात्र 316 वोट मिले हैं.