इस विप्लव काल में, मां भारती के किसी भी काम के नहीं तटस्थ और स्वयंभू ज्ञानी

किसी भी राष्ट्र के राजनैतिक परिवेश में सत्ता पक्ष के लक्ष्यों का नरेटिव बहुत महत्वपूर्ण होता है. अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैसे तो सत्ता स्वयं में तो समर्थ होती है लेकिन सत्ता पक्ष अपने लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध भी तभी रह पाती है जब तक उसके राष्ट्र की जनता उस लक्ष्य के नरेटिव से भटकती नहीं है.

इतिहास हमें बताता है कि जनता में यह भटकाव दो कारणों से होते है. एक तो विपक्ष अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए जनता को दिग्भ्रमित करती है और दूसरे सत्ता पक्ष के ही समर्थक अपनी भावनाओं के दास बन कर जब चिंतन को तिलांजलि दे देते हैं. भारत के परिप्रेक्ष्य में उसके राष्ट्रवादी अपने नरेटिव से भटक जाने में सबसे प्रवीण हैं.

मैं पिछले कुछ समय से एक से एक दार्शनिक, वैभवशाली, बुद्धिजीवी और राष्ट्रभक्त राष्ट्रवादियों को पाकिस्तान को लेकर मोदी जी के प्रति आक्रोशित देख रहा हूँ. अपने आक्रोश में वह न सिर्फ अपशब्दों का प्रयोग कर रहे हैं बल्कि अपनी स्वयं की हीनता और नकारात्मकता से लक्ष्य को ही भूल रहे है.

पाकिस्तान को लेकर भारत का लक्ष्य क्या है? युद्ध? वह तो पहले भी करते रहे हैं लेकिन परिणाम?

वैसे तो मेरा कोई इरादा नहीं था कि लक्ष्य से भटके दिग्भ्रमित मगजों पर अपना दिमाग लगाऊं लेकिन फिर भी, एक बार फिर से पाकिस्तान को लेकर लक्ष्य को याद करा देता हूँ. भारत की आज की सरकार जिसके प्रधान मोदी जी है, उसका एक ही लक्ष्य है और वह है पाकिस्तान का बलकाइज़ेशन यानि पाकिस्तान को कई टुकड़ो में बाँट देना.

मोदी जी की सरकार इस एक सत्य को स्वीकार करती है कि पाकिस्तान की तरफ से हो रही पिछले 7 दशकों से रक्त पात का एक ही समाधान है और वह है पाकिस्तान को तोड़ कर उससे बलूचिस्तान, सिंध और नार्थ वेस्ट फ्रंटियर को निकाल देना. यह लक्ष्य न सिर्फ बहुत बड़ा है बल्कि इसमें समयकाल भी लंबा लगना है.

भारत की जनता जितना अपने को शूरवीर और अजेय समझती है, वह है नहीं क्यूंकि 1000 वर्षो से गुलाम जनता से यह उम्मीद भी नहीं की जा सकती है. यह बात मोदी जी भी अच्छी तरह जानते है.

उन्हें मालूम है कि कोई भी विप्लव काल हो, भारत में एक बड़ा वर्ग है जो राष्ट्र हित को छोड़ अपनी-अपनी गठरी पहले संभालेगा. वैसे तो इसके प्रमाण पिछले 3 वर्षो में हर कुछ अंतराल पर मिलते रहे हैं लेकिन इसका सबसे बड़ा उदाहरण सरकार के विमुद्रीकरण के काल में मिला था.

मैंने स्वयं एक से एक अंतरंगो को, एक से एक सामर्थ्यवान लोगो को ब्लैक से वाइट कराते हुए देखा है. राष्ट्र की ऐसी हालत में सीधे युद्ध का मतलब है भारत की निश्चित हार, क्यूंकि यह युद्ध पिछले युद्ध की तरह से हफ्ते पंद्रह दिनों में खत्म होने वाला युद्ध नहीं होगा.

यहां पर आप भारत के कमजोर नेतृत्व और इच्छा शक्ति का हवाला देते हुए इजराइल, चीन आदि राष्ट्रों का नाम मत लीजियेगा क्यूंकि यह उन राष्ट्रों की जनता की बेइज्जती होगी. भारत की जनता उन राष्ट्रों की जनता नहीं है.

भारत पाकिस्तान से तब तक युद्ध नहीं करेगा जब तक वह आंतरिक रूप से टूटने के कगार पर नही होगा. भारत तब तक युद्ध नहीं करेगा जब तक वह अमेरिका और चीन को आमने सामने आते हुए नहीं देखेगा.

आज चीन का पाकिस्तान में बहुत कुछ लग चुका है और भारत चीन के खुले समर्थन वाले पाकिस्तान से लम्बा युद्ध नहीं कर पायेगा. ऐसे में भारत सिर्फ और सिर्फ इस बात का इंतज़ार करेगा कि चीन तटस्थ रहे और तब तक कश्मीर की घाटी में आतंकियों को एक कोने में समेट दे.

यह हमेशा याद रखिये कि कश्मीर वह जगह है जहाँ पर तृतीय विश्वयुद्ध की नींव का दूसरा चरण रक्खा जा चुका है. आप सबका यह मानना एक बड़ी भूल होगी कि कश्मीर सिर्फ भारत और पाकिस्तान का मामला है.

आज का कश्मीर चीन का भी मामला है, आइएसआइएस का भी मामला है, इस्लामिक ख्वाब गजवा ए हिन्द का भी मामला है, जो बिना भीषण रक्तपात के कभी भी नहीं सुलझेगा.

यह कोई छुपी हुयी बात नही है कि कश्मीर में युद्ध पिछले 25 वर्षो से चल रहा है, भले ही हम इसको कोई भी नाम दे. यह युद्ध है और युद्ध में सैनिक मारते है और मरते भी है. यह युद्ध की अनिवार्यता है.

अभी तक भारत की जनता भाग्यशाली रही है कि उससे राष्ट्र ने कीमत नहीं मांगी है लेकिन वह समय भी कुछ वर्षो में सामने आने वाला है जब हर भारतीय को इसकी कीमत देनी होगी.

लोगो के लिए मेरे पास एक ही परामर्श है कि ज्ञान और नारे लगाने के बजाय आप आगे आने वाले समय के लिए तैयार होइये. आपने जिस नेतृत्व को चुना है उस पर, अपने बौद्धिक अहंकार और शुचिता का त्याग करके विश्वास करिये.

आज आप जो है उससे बेहतर ईमानदार और वीर भारतीय बनने की कोशिश कीजिये क्यूंकि सीमा पर तो सैनिक बिना आपके नारों के लड़ भी लेगा, मार भी लेगा और मर भी लेगा लेकिन अंदर आपको लड़ना है, मारना है और मरना है.

एक बात समझ लीजिये, आज का समय भारत का विप्लवकाल है जिसमें तटस्थ और स्वज्ञानी माँ भारती के किसी काम के नहीं है, वह सिर्फ आपको राष्ट्र के लक्ष्य से दिग्भ्रमित करेंगे, जिसे आपको नहीं होना है.

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