ओसामा बिन लादेन कैसा पिता था, कैसा पति था इस पर इस देश की मीडिया आर्टिकल लिखती है. बुरहन वनी का बाप हेडमास्टर था, ये भी लिखा जाता है. और फिर जब आप इन आतंकियों के मेनस्ट्रीमिंग, विक्टिमाइजेशन वाली बात पर आवाज़ उठाएँगे तो आपको इस देश के छद्मबुद्धिजीवी ज्ञान देने लगेंगे.
रामदेव की कम्पनी, जिसमें सबको पता करना चाहिए कि उनका कितना स्टेक है, दस हज़ार करोड़ से ज़्यादा का व्यापार कर लेती है तो कइयों को तकलीफ होती है. लॉजिक? वो तो लाला है, वो तो ढोंगी है, बाबा के चोले में धंधा करता है. धंधा तो करता है, लेकिन इस देश के संविधान में कहाँ ऐसा लिखा है कि बाबा व्यापार नहीं कर सकता?
कुछ लोग ये भी कहते हैं कि उनके फलाने प्रोडक्ट में सरकारी एजेंसी ने ख़ामियाँ पाईं. लेकिन वो ये नहीं कहते कि वो प्रोडक्ट फिर बाज़ार से हटा भी दिया गया. यहाँ मानसिकता ऐसी हो गई है कि कोका कोला आपकी धरती का पानी निकाल कर, आपको बीस रुपए में वही पानी या कोल्ड ड्रिंक बेचकर, लाभ का एक बड़ा हिस्सा अपने देश ले जाता है, तो वो ठीक है. लेकिन एक भारतीय, यहीं की धरती से लिए गए संसाधन, कृषि उत्पाद आदि से यहीं कुछ बेहतर सामान बनाकर, कम दाम में बेचता है तो यहाँ के फेसबुकिया अर्थशास्त्रियों को दिक़्क़त हो जाती है.
कभी ये सुना कि रामदेव के नाम पर वेश्यालय चल रहे हैं? कभी ये सुना की रामदेव बच्चों की तस्करी करता है? कभी ये सुना कि रामदेव गाँजे के व्यापार का किंगपिन है? कभी ये सुना कि रामदेव आयुर्वेद की आड़ में ड्रग्स बनाने का काम करता है?
सुना हो तो बताईएगा, फिर मैं उस हिसाब से जवाब दूँगा.
दूसरी बात, उनके लिए जो कहते है ढोंगी बाबा है. पहले तो ढोंगी बाबा की परिभाषा दीजिए. क्या आपके हिसाब से उसने किसी महिला को आश्रम में बुलाया और बच्चे पैदा करने के बहाने यौन शोषण किया? या फिर योग सिखाने की जगह वो लोगों को बीमार कर रहा है, या उन्हें योग के बारे में कुछ भी मालूम नहीं?
ढोंगी तो वही होता है जो कहता कुछ है, करता कुछ और. आपने ख़ुद को आईने में देखा है? सबसे बड़े ढोंगी तो आप हैं जो एक हिन्दूफोबिक हैं, लेकिन आप स्वीकार नहीं रहे. आप सेकुलर होने की कोशिश में वही कर रहे हैं जो एक ख़ास वर्ग करता है: हिन्दुओं के सारे प्रतीक चिह्नों पर हमला और हर तरह के हिन्दू की भर्त्सना. ख़ासकर उसकी जो सत्ता के क़रीब हो. ये 2014 के हैंगओवर से बाहर आईए. दंगे अभी तक नहीं हुए हैं, जिसका आप विदेशी अख़बारों के कॉलम पढ़कर इंतज़ार कर रहे थे.
रामदेव ने स्वदेशी आंदोलन को ना सिर्फ हवा दी, बल्कि एक उदाहरण दिया है कि आप इसी देश के किसानों को रोजगार देते हुए, यहीं की मिट्टी से लिए उत्पादों की मदद से एक बेहतर गुणवत्ता का सामान कम मूल्य पर हर घर में पहुँचा सकते हैं. आपको इससे भी दिक़्क़त होती है कि वो अपने योग शिविरों में इसका प्रचार करते हैं. क्यों ना करें? अगर सामान घटिया होगा तो कोई नहीं लेगा. जनता पतंजलि के उत्पाद इसलिए नहीं ख़रीदती कि वो सस्ते हैं, बल्कि इसलिए कि वो बेहतर हैं.
अपनी घृणा, कुण्ठा और बुद्धिजीवी होने की चाह से ऊपर उठकर, तार्किक रूप से आकलन कीजिए तो शायद आपको समझ में आएगा कि रामदेव भारत का वो स्टार्टअप है जिससे सबको सीख लेनी चाहिए. इतने कम समय में, बिना किसी मार्केट रिसर्च के एफएमसीजी के बाज़ार में ऐसी पैठ बना लेना, कम्पनी के मालिक से ज़्यादा उत्पादों के गुणवत्ता के बारे में कहती है.
रामदेव के राजनैतिक विचारों से, उनके कई बयानों से आपको आपत्ति हो सकती है. मुझे भी होती है. लेकिन इन दो बातों का कोई लेना-देना नहीं है. हर आदमी की अपनी राय होती है, वो राजनैतिक विचार रख सकता है. इसका मतलब से नहीं कि मैं एक टूथपेस्ट बना रहा हूँ जो साल भर में 948 करोड़ का व्यापार कर लेती है, तो आप उसे इसलिए ख़राब कह देंगे क्योंकि मैं भाजपा का समर्थक हूँ! यहीं आपकी बुद्धि वक्र हो जाती है. आप शेर को बस इसलिए नहीं पसंद करते क्योंकि आप शाकाहारी हैं! ये किस तरह का लॉजिक है?
अपवादों को छोड़कर, क्योंकि आपको बाक़ियों में नब्बे प्रतिशत ख़ामी चलेगी पर रामदेव में एक प्रतिशत भी बर्दाश्त नहीं, पतंजलि के उत्पाद बेहतर हैं, और सस्ते भी. आपको सिर्फ इसलिए परेशानी है कि एक बाबा की कम्पनी, जिससे वो एक पैसा नहीं लेते, इतना लाभ कैसे कमा रही है, तो फिर आपको बाबा समाज से दिक़्क़त है, आपको हिन्दुओं से दिक़्क़त है. आप हिन्दूफोबिक हैं, इसको स्वीकार लीजिए.
आप अगर पतंजलि के सैकड़ों उत्पादों में से एक में बताई गई ख़राबी को पकड़ के बैठे हैं तो मुझे आपकी तार्किकता पर संदेह है. आप वही हैं जिसने मैगी वाले काण्ड पर सरकार को कोसा था कि मुझे तो खाने में अच्छी लगती है, फलाने देश की लैब ने तो ठीक माना है, सरकार कौन होती है मुझे बताने वाली कि मैं मैगी खाऊँ या नहीं. आपके मानदण्ड आपके विचारों के हिसाब से बदलते हैं, तर्क से नहीं. अपना इलाज करवाईए, वरना देर हो जाएगी.