वो अंतिम निश्छल और निर्मल हंसी थी उसकी
जब तक उसे पता न था
कि उसे किसी की पीड़ा के लिए
निमित्त बनना है
वो बाद में बहुत दिनों तक रोती रही
कि काश उसका बालसुलभ रुदन
निमित्त बन सके किसी की खुशी के लिए भी
लेकिन समय अंतराल के पहाड़ की
दो जन्मों सी कठिन चढ़ाई को पारकर
उस खुशी को देख पाना उसके भाग्य में नहीं था
तो वो इस जन्म की अपनी पीड़ा की बाड़
लगा आई बची हुई हंसी के चारों ओर
कि नियति फिर किसी की हंसी का
ऐसा दुरूपयोग ना कर सके
ध्यानी लोग कहते हैं
ईश्वर की योजना को क्रियान्वित करने
उसके हाथ बन सकी आप
यह सौभाग्य हज़ारों जन्मों में
किसी एक को मिलता है
वो कल्पना करती है अब
उस ईश्वर की
कि कटे हाथ के साथ
वो इतना बदसूरत भी न लगता
जितना इस सूरत से उसकी सीरत छीनकर बना दिया..