दुनिया में ऐसे कई मामले हो चुके हैं जहाँ डाक्टरों ने मरीज को मरा हुआ घोषित कर दिया और बाद में मरीज जीवित हो उठा. कुछ लोग इसे डाक्टर की चूक मानते हैं जबकि कुछ लोग इसे चमत्कार कहते हैं.
अक्टूबर 2015 को बम्बई में ऐसे ही एक खानाबदोश की मौत हो गई. उसे डाक्टरों ने सर्टिफाईड़ करके शव गृह में जमा कर दिया.। लावारिस लाश को ठिकाने लगाने जब पुलिस आई तो लाश में साँसें चल रही थी. मरीज को तुरन्त ही फिर से भर्ती किया गया. मरीज इसके बाद कई महिने जिन्दा रहा.
इन्दौर में भी 16 साल पहले विजयनगर स्थित एक अस्पताल में नगर के एक बड़े नेता के स्वसुर बीमारी की हालत में भर्ती थे. उनकी मृत्यु हो गई. जैसे ही लाश को स्ट्रेचर पर रखकर एम्बुलेन्स में ले जाने के लिए रपट रास्ते से नीचे उतारा कि बुज़ुर्ग उठकर बैठ गए, कहने लगे मुझे कहाँ ले जा रहे हो. बाद में बुजुर्ग कई सालों तक जिन्दा रहे.
ऐसे मामलों में ज्यादातर लोग डाक्टरों की गल्ती मानते हैं. आदमी की मृत्यु होने की पहचान के लिये उसकी नब्ज देखी जाती है. वह चलना बन्द कर देती है. स्थेटेस्कोप से हृदय की धडकन देखते हैं, हार्ट का चलना बन्द हो जाता है. गले के पास दाहिनी तरफ ऊंगलियां रखकर दिमाग में खून ले जाने वाली रक्त वाहिनी को देखते हैं, कई बार नब्ज और हृदय की मन्द रफ़्तार से जब कुछ समझ में नहीं आता तो गले की आर्ट्रीज के मन्द मन्द कम्पन से पता चलता है कि मरीज अभी मरा नहीं है जिन्दा है.
कई बार ऐसा भी होता है कि जिस तरह से अचानक कम्प्युटर हैंग हो जाता है उसी तरह हृदय गति रूकने लगती है. दिल की धड़कन कम होते होते इतनी कमजोर होजाती है कि खून का बहना लगभग रुकने लगता है.
ऐसी हालत में मरीज में वह सब लक्षण आ जाते हैं जिसे मुर्दा कहा जाता है. उसके सभी रिप्लेक्सेज खतम होने लगते हैं. आदमी के मुर्दा होने का डाक्टर लोग पुख्ता प्रमाण उस समय मानते हैं जब उसकी पलकों को खोलकर टार्च की रोशनी डाल कर आँखों की पुतलियों को देखा जाता है. अगर आँखों की पुतलियों में मामूली हलचल होती है तो अभी जान बाकी है. पुतलियां निष्क्रिय हैं तो मरीज का ‘ राम नाम सत्य ‘ हो गया है.
पर, अब ताजा रिसर्च से पता चला है कि व्यक्ति के मरने के सब प्रमाण होने के बाद भी एक लम्बे समय तक उसके मष्तिष्क में हलचल रहती है. डेड बॉडी में मरीज की मृत्यु के बाद काफी समय तक ब्रेन की एक्टिविटी को एम आर आई में देखा गया है.
हालांकि यह सत्य है कि यदि दिमाग को तीन मिनिट तक ताजा खून नहीं मिले तो न्यूरॉन मरने लगते है. पर अब कुछ वैज्ञानिक यह भी मानने लगते हैं कि आदमी की मृत्यु के बाद भी उसकी “सेल डेथ” होने में कई घन्टे लगते है.
इस बीच अगर मरने वाले का मष्तिष्क मजबूत है तब यह समझा जाता है कि मनुष्य के शरीर में मौजूद ‘लिपिड’ में छुपी आक्सीजन दिमाग को मिलती रहती है और मरीज मेडीकल मृत्यु के बाद भी मृत अवस्था में अपने मस्तिष्क को जीवित बनाए रखता है. ऐसी खास स्थिति में संयोगवश दिमाग की हैंगिग अवस्था हट जाती है तब मरा हुआ इन्सान जीवित हो जाता है. ऐसा यद्यपि लाखों में एक मरीज के साथ होता है. इसी कारण लोग इसे ईश्वरीय चम्त्कार भी कहते हैं.
ऐसा ही एक चमत्कार 26 अप्रेल 2017 के पेरिस में हो गया जब ऐम्बुलेन्स में आए डाक्टरों ने एक महिला को मृत घोषित कर दिया. और दो घण्टे बाद जब पुलिस वालों ने लिखा पढ़ी करने के लिए उसका कफन उठाकर देखा तो महिला को जिन्दा पाया.