HAMLET : बेटी के दूध से पिता के केन्सर का इलाज!

सुनने में एक दम अजीब लग रहा है, पर यह एक हकीकत है, जी हाँ 66 वर्ष की आयु के ‘फ्रेड़ व्हाईटला’ नामक एक अमेरिकन को 2015 में मल विसर्जन की नलिका में खतरनाक केन्सर हो गया था. उनका एलोपैथी में निर्देशित तौर तरीकों से आपरेशन और कीमो हुई. फिर भी केन्सर ठीक नहीं हुआ.

फ्रेड़ की 32 वर्षीय पुत्री ‘जिम टर्नर’ को स्वीडन के एक रिसर्च की जानकारी इन्टरनेट के माध्यम से मिली कि महिला के स्तन के दूध में एक प्रोटीन पाया जाता है जो केन्सर की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है. मनुष्य की स्वस्थ कोशिकाएं पूरी तरह सुरक्षित रहती हैं.

जिम टर्नर का दो माह को शिशु है जो उसकी माँ के स्तनपान पर आश्रित है. जिम टर्नर ने स्तन से दूध निकालने का पम्प खरीदा और अपने शिशु को दुग्धपान कराने के बाद बचा दूध संग्रहित करके केन्सर पीड़ित अपने पिता को पिलाया. आश्चर्य जनक परिवर्तन देखने को मिले, मल स्थान में दुबारा से फैली केन्सर की गाँठ चमत्कारी ढंग से सिकुड़ गई.

दरअसल “लुन्द विश्व विद्यालय -स्वीडन” की प्रोफेसर डा० केथारिना स्वोनवोर्ग पिछले बीस सालों से अपनी छोटी सी प्रयोगशाला में मानव स्तन से निकाले गए दूध का पराजीवियो, कीटाणु आदि पर हो रहे प्रभावों का अध्ययन कर रही थी. केथारिना के स्नात्तकोत्तर के छात्र ‘एण्ड़रस् हेकनसन’ के पी एच ड़ी के काम के लिए किये गये ड़िसर्टेशन में पाया कि माँ के दूध की खासियत होती है वह कई किस्म के जीवाणुओं को नष्ट कर देता है. केथारिना ने जब अपनी ‘ पेटी डिस ‘ में केन्सर की गठान से निकले जीव कोशों को रखा और माँ के स्तन दूध से अलग किये गए “अल्फा लेकटलबुमिन ” नामक प्रोटीन को भी केन्सर “सैल” के साथ रखा , तो पाया कि सिर्फ दो घंटे के भीतर केन्सर सेल मृत हो गया. जो सामान्य कोशिकाए हैं उन पर कोई असर नहीं हुआ.

केथारिना ने माँ के दूध से निकले अल्फा-लेकटलबुमिन को सेपेरेट करके जो एक नए कंपाउंड का अविष्कार किया उसका नाम “हेमलेट” HAMLET (Human Alpha Lactalbumin made lethal to tumour cells) रखा और इसका पेटेन्ट भी कराया. इस रिसर्च को नेशनल एकेडेमी ऑफ साईन्स के जनरल में 1995 में प्रकाशित भी कराया. 1999 में डेविड सेलोमन ने जब डिसकवरी नामक पत्रिका में इसका उल्लेख किया तब कुछ केन्सर विशेषज्ञों का ध्यान इस ओर गया. केथारिन की खोज दरअसल एक बहुत छोटी जगह की प्रयोगशाला में की गई थी इस कारण इस कार्य को अभी तक अनदेखा किया गया.

अब बीस साल बाद जब अमेरिका के रिसर्च केन्द्रों ने तथा आसिट्रिया की ग्रेज युनीवर्सिटी ने इन्टरनेशनल जनरल आफ ओनकोजिन में, मनुष्यों पर किये गए प्रयोगों को अभी अप्रेल 2017 में प्रकाशित किया तो केन्सर से पीड़ित मरीजों को अपने जीवन में नई आशा की किरण दिखाई देने लगी.

वैज्ञानिकों ने चालीस अलग अलग किस्म के केन्सर के टयूमरो पर जब माँ के दूध से बनाए “हेमलेट” को केथेटर की मदद से केन्सर की गाँठ तक पहुँचाया, तो एक सफ्ताह के महज पांच डोज में ही डाक्टरों ने पाया कि हेमलेट जाने के सिर्फ दो घण्टों में ही केन्सर की गठान के टुकड़े टुकड़े होकर पेशाब के जरिए बाहर आने लगे और गठान सिकुड़ने लगी. जबकि गठान के आसपास की किसी मांस पेशी को कोई क्षति नहीं पहुची.

केथारिना के द्वारा खोजी गई माँ के दूध से केन्सर रोग से मुक्ति के प्रयोगों की क्लिनिकल टेस्ट अब दुनिया के सैकड़ो अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में होने लगे है. निश्चित ही यह प्रयोग अगर सफल रहे तो चिकित्सा विज्ञान का नोबल पुरूस्कार केथारिना स्वानवोर्ग को अवश्य मिल जावेगा.

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