पाकिस्तान के पीछे सारे इस्लामिक देश, हमारे पीछे कौन खड़ा!

पाकिस्तानी सेना का एक चीफ अभी हाल ही में रिटायर हुआ था, नाम था उसका राहेल शरीफ. याद है ना आपको? वही, जिसके रहते भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किया था… और तब उसने कहा था कि – कैसा सर्जिकल स्ट्राइक? झूठ है ये सब, भारत का प्रोपागेंडा है केवल.

यदि याद आ गया तो अच्छी बात है… पर क्या आप जानते हैं कि अब वो कहाँ है, क्या कर रहा है सेवानिवृत्त होकर?

तो सुन लीजिए, वो सउदी अरब में नौकरी कर रहा है.

पर आप यदि ये सोचते होंगे कि वह सेना की नौकरी छोड़ने के बाद किसी बैंक या दफ्तर का सिक्योरिटी गार्ड बना होगा तो आप फिर गलत सोच रहे हैं.

वो वहाँ एक मिलिट्री फोर्स का “कमांडर-इन-चीफ” बन गया है. इस फोर्स का पूरा नाम है “Islamic military alliance to fight terrorism”. यह एक नया अलायंस बना है जिसमें दुनिया के अधिकांश इस्लामिक देश शामिल हैं.

आपको तो पता ही होगा कि दुनिया के सारे मुस्लिम कंट्री मज़हब के आधार पर अपना एक संगठन पहले से ही बनाए हुए थे जिसका नाम है Organization of Islamic Countries (OIC)… वैसे अब C का मतलब cooperation हो चुका है.

यह आर्गेनाइजेशन सउदी अरब की अगुवाई में 1969 में बनाया गया था जिसका मकसद विश्व के तमाम मुस्लिम देशों को एक झंडे के तले लाकर ईसाइयों एवं यहूदियों के खिलाफ अपना एक अलग संगठन खड़ा करना था….

जब भी मजहब के नाम पर कोई कोई लफड़ा हो तो सारे मुस्लिम देश मिलकर इस्लाम को बचा सकें. इसमें 56+1 देश शामिल हैं (वे फिलिस्तीन को भी देश मानते हैं).

चूँकि पाकिस्तान और बांग्लादेश भी इस्लामिक देश हैं तो जाहिर है ये भी होंगे ही इस ग्रुप में.

तो पाकिस्तान चूँकि अमीरों की गिनती में नहीं आता था सो यह इस संगठन का बैक बेंचर ही था. लेकिन जब इसने एटम बम बनाया और उसे “इस्लामिक बम” का नाम दिया तब से यह क्लास का मॉनिटर बन गया.

इस संगठन को बनाने के पीछे वैसे तो कई छोटी-मोटी वजहें थी पर जो मेन मकसद था वो एक मस्जिद को लेकर था… एक मस्जिद है यरूशलम में जिसका नाम “अल-अक्सा मस्जिद” है. यह मस्जिद मुस्लिमों के लिए मक्का और मदीना के बाद तीसरी सबसे बड़ी पवित्र जगह है…

पर है यह इसराइल में… और इस मस्जिद पर यहूदी और ईसाई भी अपना दावा ठोकते हैं… वो कैसे, तो समझें….

मुस्लिम कहते हैं कि यह वही पवित्र स्थल है जहाँ पैगंबर मुहम्मद साहब जन्नत जाते वक्त अपना घोड़ा (इसके दो पंख भी लगे थे, नाम था बुराक) बाँधकर गए थे जब वो अल्लाह से कुरान हासिल करने गए थे. फिर लौटकर अपने अनुयायियों को कुरान की शिक्षा दी थी.

यहूदी कहते हैं कि यह स्थान हमारे पैगंबर इब्राहीम की जगह है और मोहम्मद साहब से सैकड़ों साल पहले से हमारा पवित्र स्थल रहा है जिसे वे “टेंपल माऊंट” कहते हैं.

ईसाई भी कहते हैं कि, यही वो स्थान है जहाँ यीशु मसीह मरने के बाद जी उठे थे तो नियमतः इस पर हमारा अधिकार बनता है. हमारा church of sepulchre भी यहीं है.

तो मुस्लिम देशों को लगता था कि यदि एकजुट ना हुए तो वे इस पवित्र स्थल को हासिल नहीं कर सकते हैं…. क्योंकि मुस्लिमों को यहूदी और ईसाई एक ही थैली के चट्टे बट्टे दिखते थे.

पर बाद में इस समस्या से भी एक बहुत बड़ी समस्या तब आ गई जब सउदी अरब से ही पैदा हुआ एक वहाबी सुन्नी कट्टरपंथी संगठन ISIS (पहले अलकायदा का हिस्सा था) के बगदादी ने यह एलान कर दिया कि – “मैं इस्लामिक साम्राज्य का खलीफा हूँ”.

और सभी इस्लामी मुल्कों को अपनी खिलाफत के तले लाने के लिए निर्ममता की सारी हदें लाँघने लगा. अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए वो उन मुस्लिमों का कत्लेआम करने लगा, निशाना बनाने लगा जो उसकी राह में रोड़ा बनता दिख रहे थे.

ISIS ने विशेषकर शियाओं को लक्ष्य बनाया क्योंकि शिया पहले भी उन खलीफाओं को नहीं मानते थे जो 1925 में खिलाफत साम्राज्य के खात्मे से पहले के खलीफा थे.

ISIS का यह भी मानना है कि बिना मक्का और मदीना को अपने साम्राज्य में शामिल किए खिलाफत साम्राज्य की कल्पना बेमानी है, तो उसके निशाने पर सउदी अरब भी है जहाँ ये दोनों पवित्र स्थल हैं.

ISIS की धमक पूरे विश्व में है, चाहे इस्लामी हो या गैरइस्लामी, लगभग 80 देशों में इसका प्रभाव हो चुका है. यह संगठन खालिस जेहाद के जरिए कुरान और इस्लामी शरीयत को अपने साम्राज्य का कानून बनाना चाहता है.

इसका साथ दे रहे हैं वो तमाम आतंकी संगठन जो इस्लामी जेहाद के रास्ते पर हैं. तालिबान, बोकोहरम, अलकायदा इन सबका लक्ष्य यही है और सभी कहीं न कहीं ISIS के लक्ष्यों को ही पूरा कर रहे हैं.

अब सउदी अरब सबसे ज्यादा डरा हुआ है… क्योंकि इस्लामिक दुनिया में उसका स्थान महत्वपूर्ण है क्योंकि वह इस्लामिक आस्था का केन्द्र है.

तो उसकी अपील पर 2015 में आतंकवाद से लड़ने के लिए एक अलायंस बनाया गया जिसके पास अपनी इस्लामिक फौज होगी, सारे संसाधन होंगे जो ISIS के खिलाफ लड़ेगी.

इस अलायंस का नाम दिया गया “Islamic military alliance to fight terrorism”. (इस अलायंस की परिभाषा भारत के परिप्रेक्ष्य में क्या होगी जो आतंकवाद से पीड़ित है, खुदा ही जाने).

चूँकि राहेल शरीफ ने अपने कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान में आतंकवाद के उपर काफी हद तक नकेल कसी थी और अनेक आतंकवादी संगठनों से लोहा लिया था, तो इस मिलिट्री अलाएंस के लिए उन्हें योग्य माना गया और कमांडर इन चीफ चुना गया है.

जब यहाँ तक पढ़ लिया हैं तो कुछ बात और भी कर लेते हैं.

मतावलंबियों की संझ्या के हिसाब से दुनिया के तीन बड़े धर्मों में हिन्दू तीसरे नंबर पर आता है . यानी, 220 करोड़ ईसाई, 160 करोड़ मुस्लिम और 100 करोड़ हिन्दू हैं पूरे विश्व में (2009 का आँकड़ा है).

मुस्लिमों ने अपनी एवं अपने धर्म की सुरक्षा के लिए जो कदम उठाए हैं वो तो पढ़ लिया आपने. ईसाई देश भी धर्म के नाम पर एकजुट दिखते हैं. लेकिन हिन्दू और हिन्दू धर्म कहाँ खड़ा है?

अपने पवित्र स्थलों को हासिल करने या सुरक्षित रखने के लिए दोनों धर्म कितने कन्सर्न्ड दिखते हैं पर हिन्दू क्यों नहीं?

एक अदद हिन्दू राष्ट्र नहीं बन पाया भारत, इतनी बड़ी आबादी होकर भी… हिन्दुओं ने कभी एकजुट होने का प्रयास नहीं किया, आजादी के बाद एक संभावना बनी थी पर हो नहीं पाया.

ईसाई आपके ऊपर लगातार हमले कर रहे हैं, रोज कितने हिन्दू ईसाई बन रहे हैं आपको पता भी नहीं चल रहा है.

मुस्लिम देशों के खिलाफ आप खड़े नहीं हो सकते हैं. पाकिस्तान के पीछे सारे इस्लामिक देश खड़े हैं पर आपके पीछे कोई नहीं खड़ा है.

जैसे किसी शिकारी जानवर के सामने उसका शिकार असहाय खड़ा रहता है वैसे ही आप खड़े हैं दोनों धर्मों के समक्ष, और आपका हर वक्त शिकार किया जा रहा है.

जरूरत इस बात की है कि आप दुनिया में अपनी स्थिति को समझें और जाति समुदाय से उपर उठकर एक सशक्त हिन्दू राष्ट्र का हिस्सा बनने के लिए कृतसंकल्प हों.

भारत हिन्दू राष्ट्र बने या ना बने पर आपकी एकता भी एक बड़ी शक्ति बन सकती है. आप अपनी जिंदगी जी चुके, अब अपनी आने वाली पीढ़ियों के बारे में भी कुछ सोचें.

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