इसमें शक न करें कि 2019 में भी हिन्दू वोट मोदी जी को और उनके कारण ही भाजपा को मिलेगा. लेकिन आज देश का मूड 2014 से जरा अलग है.
हिंदुओं की स्थिति सुधारने के लिए कई लोग अपनी-अपनी विचारधाराओं का ज़ोरों से प्रचार कर रहे हैं. मेरा अपना नुस्खा इस मामले में बहुत सरल है.
जिस दिन हिन्दू नेता हिंदुओं के समर्थन में उतनी ही बेशर्मी से खड़े होंगे जितनी बेशर्मी से मुसलमानों के नेता मुसलमानों के समर्थन में होते हैं, झगड़ा बंद हो जाएगा.
और हिन्दू नेताओं को मुसलमान नेताओं जितना ढीठ होने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी, क्योंकि हिन्दू आम तौर पर देश के कानून को ही मानता है, किसी ग्रंथ को देश के कानून से ऊपर नहीं मानता.
1. आज हिंदुओं का कोई नेता नहीं है.
2. आज कोई नेता हिंदुओं का नहीं है.
दूसरा वाक्य आप के दिल को छूने की संभावना 99.9999999% है. देखिये, महज शब्दों के उलटफेर से पैमाने कितने बदल जाते हैं. आज हिन्दू जिन्हें अपना नेता मानते हैं, क्या वे खुद को हिंदुओं का नेता मानते हैं?
आज से लगभग सौ साल से यही परिस्थिति चली आ रही है. तिलक आखिरी हिन्दू नेता माने जा सकते हैं. सावरकर को हिंदुओं ने नेता माना नहीं और तन मन धन गांधी भजन में लगा दिया. तब से जन्मना हिन्दू नेता बेशर्मी से मुस्लिम अनुनय करते चले आए हैं.
निजी और पक्ष नेताओं के स्वार्थ से उबर कर इन्होने कभी मुसलमान मानस समझने की कोशिश या उस से टक्कर लेने की कोशिश नहीं की. कारण यह भी हो सकता है कि किसी भी जन्मना हिन्दू नेता को अपने संगठन के समर्थन न पाने की ही गारंटी थी. इसलिए मुसलमानों से समय आने पर शर्मनाक समझौते भी कर लिए और हिन्दू समुदाय को और अपमानित किया.
सरकार की ताक़त हमेशा हिन्दू दमन में लगा दी जब कि गलत पहल करने का सिलसिला कितना भी मुसलमानों की ओर से ही रहा हो. इनके हर ऐसे कदम को मुसलमानों ने अपनी जीत के रूप में ही भुनाया है और हिंदुओं को और अपमानित करने में ऐसे हर कदम का उपयोग किया है.
मुसलमान का मानस यही होता है कि कोई जीत छोटी नहीं, कोई हार बड़ी नहीं. जहां गैर मुसलमानों के साथ रहना है वहाँ हमेशा संघर्षरत रहना है. कोई न कोई छोटी-छोटी वारदातें कर के अपना इलाका कानून के लिए भी आमतौर पर एक प्रतिबंधित क्षेत्र बनाना है और अपना दायरा बढ़ाते रहना है. संख्या भी, प्रभाव भी और क्षेत्र भी.
बहुत ही बड़ा दंगा हो और फौज उतारनी पड़े तो बात अलग. बूढ़े से बूढ़े और ताजा-ताजा पुलिस वालों से यह सवाल पूछिए, जवाब में कोई फर्क नहीं होगा अगर off the record बोल रहे हैं.
अपना नाकारापन छुपाने के लिए आदमी हमेशा कुछ कारण गढ़ता है. यहाँ सब से बड़ा कारण यह है कि जात-पात, प्रांत से उठकर हिन्दू एक नहीं होता. संकुचित स्वार्थ की आग पर अपनी अपनी रोटियाँ सेंकनेवाले नेताओं ने इस बात को इतनी हवा दी है कि आज यह बात सब ने सत्य मान ली है और उसी के तहत व्यवहार भी करने लगे हैं.
आज साढ़े चार वर्ष बीत गए और हमें बालासाहेब ठाकरे का केवल नाम याद रह गया है. ये भूल गए कि इस व्यक्ति ने केवल हिन्दू सामर्थ्य की बात की थी. शिवसेना में जात का कोई मायने नहीं होता था.
और हाँ, मुसलमान शिवसैनिक भी थे भगवा ध्वज ले कर और उन्हें कोई शंका से नहीं देखता था. बालासाहेब के साथ मंच पर भी बैठे देखे जाते थे. उस वक़्त देशद्रोही रजाकार पार्टी की महाराष्ट्र में पाँव रखने की हिम्मत न थी. और कोई हमेशा के दंगे भी नहीं.
शिवसेना की शुरुवात कैसे हुई मुझे पता है. आगे की मार्गक्रमणा का भी पता है. मैं उस स्टेज के आगे की बात कर रहा हूँ जहां बालासाहेब ने विराट और प्रखर हिन्दुत्व को अपना लिया जिससे आज अखिल भारतीय स्तर पर हिन्दू उनको आदर समेत याद करता है.
आज के पक्ष नेतृत्व की बात नहीं कर रहा हूँ ना ही शिवसेना का कोई समर्थन. बस वे “हिन्दू हृदय सम्राट” कैसे हुए और आज भी माने जाते हैं – क्यूँ ? इसी बात का विश्लेषण किया है.
एक वाक्य उनके नाम से बोला जाता है जिसकी ना किसी ने कभी पुष्टि की है और ना ही किसी ने खंडन – तुम लड़ो, हम लफड़े संभालते हैं.
क्यूंकि आज के राजकीय पटल पर आज भी वही बड़ी जगह उपलब्ध है. हर हिन्दू आज ऐसा नेता चाहता है जो अपनी देहबोली से और अपनी कृतत्व से यही संदेश दे कि तुष्टीकरण या लांगूलचालन नहीं होगा, शांति से रहिए, आप को बराबरी के अधिकार मिलेंगे और कोई तकलीफ भी नहीं होगी.
तरक्की करिए, खूब कमाइए, और ईमानदारी से टैक्स भी भरिए, आप बराबरी के नागरिक होंगे, मुस्लिम राज में गैर मुस्लिम दोयम दर्जे का धिम्मी होता है वैसे आप से कोई सलूक नहीं होगा.
अजान दीजिये लेकिन फिर आरती पर दंगा बर्दाश्त नहीं होगा. सरकारी यंत्रणा निष्पक्ष रहेगी, जो दंगा करेगा या करवाएगा, बुरी तरह भुगतेगा. धर्म का भी, और मजहब का भी.
आप भारतीय हैं, भारतीय ही रहिए, जबर्दस्ती से कोई आप को हिन्दू नहीं बना रहा जैसे आप के पुरखे मुसलमान बनाए गए थे. लेकिन आप की सम्पूर्ण निष्ठा भारत से ही होनी चाहिए, इसमें कोई छूट नहीं. Is that too much to ask?
आज की स्थिति में, yes it is too much. इसलिए नेता कम से कम ऐसा हो जो हिन्दू को वही जमीनी और मीडिया सपोर्ट दे और दिलाये जो आज मुसलमान दंगाइयों को मिलता है. वे कुछ भी करें, मासूम.
बस एक बात याद रखिए, मुसलमान की बहादुरी का हिन्दू के डर से सीधा संबंध है. माकूल तल्ख जवाब मिलने पर वो भी “पति पत्नी और वो” वाले हीरो की तरह ठंडे पानी से नहा लेता है.
हिन्दू लड़ने से नहीं डरता, लड़ाई के बाद के परिणामों से डरता है क्योंकि अपने को पूरी तरह बेसहारा पाता है. परिवार की दुर्दशा होती है. नेता मुंह फेर लेते हैं. कड़ी सजा करवाकर खुद की निष्पक्षता की दुहाई देते हैं.
हिन्दू का यह डर उसके हाथ को रोकता है, प्रतिकार के लिए नहीं उठने देता. मुसलमान की इन सभी परिणामों के लिए पूरी तैयारी होती है.
बालासाहेब अवतार नहीं थे. मनुष्य ही थे. जो राजनैतिक जगह उन्होने बनाई, आज भी उपलब्ध है, प्रतीक्षा है तो ऐसे एक जिगरबाज़ नेता की.
और हाँ, यह लेख शिवसेना का समर्थन नहीं है.
जिनके पास देखने को आँखें हैं वे देखें, सुनने को कान हैं वे सुनें – येशु