पाप जलेगा महासमर में, सत्य जगत का त्राता है

मटके भर भर दूध पिलाओ, सर्प सदा विष दाता है |
गिरगिट पालो राजमहल में, तब भी रंग बदलता है ||

दुष्टों से संयम की बातें, मूरख हैं जो करते हैं |
भस्मासुर बन वो नर अपने, कर्मों से ही मरते हैं ||

हलवाई के मिष्ठानों का, श्वान नहीं रखवाला है |
अरे ततैया के छत्ते से, किसने शहद निकाला है ||

चौदह सदी पुराना विष जो, मानवता का पातक है |
कई सभ्यता लील चुका जो, आर्य वंश का घातक है ||

उस विष के प्रभाव को आहा! मिष्ठान्नों से रोकोगे |
धर्मराज ऐसी बातों से, निज कुल धर्म डुबो दोगे ||

धर्मराज शकुनि संग यदि, फिर से द्यूत रचाओगे |
राज, बन्धु, तनया, भार्या, निज सर्वस्व लुटाओगे ||

जिस महानाश से धरती को, केशव भी ना सके बचा |
उसे टालना चाह रहे तुम, अहा! छद्म इक द्यूत रचा ||

रण निश्चित है लड़ना होगा, केशव भाग्य विधाता है |
पाप जलेगा महासमर में, सत्य जगत का त्राता है ||

रण निश्चित है, अविनाशी है, तुम जब तक सत्य नकारोगे |
हे धर्मराज अनजाने में, लाखों अभिमन्यु मारोगे ||

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जन्म : 18 अगस्त 1979 , फैजाबाद , उत्त्तर प्रदेश योग्यता : बी. टेक. (इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग), आई. ई. टी. लखनऊ ; सात अमेरिकन पेटेंट और दो पेपर कार्य : प्रिन्सिपल इंजीनियर ( चिप आर्किटेक्ट ) माइक्रोसेमी – वैंकूवर, कनाडा काव्य विधा : वीर रस और समसामायिक व्यंग काव्य विषय : प्राचीन भारत के गौरवमयी इतिहास को काव्य के माध्यम से जनसाधारण तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत, साथ ही राजनीतिक और सामाजिक कुरीतियों पर व्यंग के माध्यम से कटाक्ष। प्रमुख कवितायेँ : हल्दीघाटी, हरि सिंह नलवा, मंगल पाण्डेय, शहीदों को सम्मान, धारा 370 और शहीद भगत सिंह कृतियाँ : माँ भारती की वेदना (प्रकाशनाधीन) और मंगल पाण्डेय (रचनारत खंड काव्य ) सम्पर्क : 001-604-889-2204 , 091-9945438904

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