इस्लाम पूर्व अरब के ऊपर जो भी सामग्री मिलती है, सबकी सब विद्वेषपूर्ण हैं. इसे विद्वेषपूर्ण कहने का मतलब ये है कि इस्लाम पूर्व के इतिहास वालों ने इस्लाम को स्थापित करने और वहां इस्लाम की अनिवार्य आवश्यकता साबित करने के लिये अरब को पूर्णतया जाहिल साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
इसलिये दुनिया के तमाम अवगुण अरब के मत्थे मढ दिए गए. हर संभव कोशिश की गई कि अरब, वहां के लोग, वहां के रिवाज, वहां की संस्कृति, वहां के धर्म सबको इतना हेय साबित कर दो ताकि दुनिया को ये लगे कि वहां अगर इस्लाम नहीं आता तो कुछ होता ही नहीं.
इतिहास में शायद ही कुछ होंगे जिन्होने इस्लाम पूर्व अरब के गौरव पर कुछ सच लिखने का साहस दिखाया होगा. इस्लाम पूर्व के अरब जाहिल और वहां का कालखंड जाहिलीया युग था, इस नजरिये को लेकर जब कोई लिखने जाये तो वो चाहकर भी वहां अच्छाई नहीं खोज सकता.
अरब के प्राचीन लोगों के अंदर वो तमाम गुण थे जो मानवीय श्रेष्ठता के गुणों को उजागर करते थे. खाना-ए-काबा में दुनिया के तमाम धर्मों और पंथों को मानने वालों के आदर्श मूर्ति या प्रतीक रूप में सुशोभित थे.
किसी को भी अरब वालों से ये शिकायत नहीं थी कि वो धार्मिक रूप से संकीर्ण हैं. यही कारण था कि खाना-काबा में मन्नतें मांगने, वहां उपासना करने दुनिया के तमाम हिस्सों से लोग आते थे और अरब वालों के ह्रदय की विशालता इतनी थी कि उनके अंदर इस बात को लेकर प्रतिद्वंदिता रहती थी कि काबा आने वालों की मेहमाननवाजी कौन करेगा.
अरब भलेमानस इतने कि किसी और मुल्क पर उन्होंने भी हमला नहीं किया. वहां की महिलाओं की स्थिति इतनी बेहतर थी जितनी आज भी दुनिया के कई मुल्कों में नहीं है पर इस्लाम पूर्व हमें क्या बताया गया ये किसी से छिपा नहीं है.
अरबी कोई इस्लाम की भाषा नहीं है, ये तो तबसे है जब इस्लाम का उद्भव नहीं हुआ था बल्कि ये भाषा तो हजरत इब्राहीम से पूर्व भी वजूद में थी.
तथ्य कई हैं इस्लाम पूर्व अरब के बारे में और इस्लामी कालखंड के अरब के बारे में. इसलिये मेरी इच्छा है कि अपने अल्प-ज्ञान के आधार पर अरब का इतिहास सामान्य भाषा में सहज रूप में फेसबुक पर लिखा जाये. जाहिर है, फेसबुक पर लिखा जाना है तो इसमें कोई अकादमिक महत्त्व की बातें न खोजे पर लोगों को सत्य का ज्ञान तो अवश्य होना चाहिये.
यह आलेख-श्रृंखला अरब को एक नए नजरिये से देखने की कोशिश है जहाँ सिर्फ इस्लाम नहीं है. इस्लाम के अलावा भी अरब का अपना वजूद और अपनी पहचान है, मेरी कोशिश इसी सत्य को बताने की है. आलेख-श्रृंखला पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा.
Ibrahim alaihissalam ne Farmaya jo murti apni hifajat nahi kar sakti bhala hamari kya kare gee bhagwan ko manne wale zara socho ki bhagwan chor ho sakta hai shankar ne apne bete ganesh ki Gardan kaat di jab parwati ne usse kaha ki mujhe mera wapas do to usne hathi ka sar kaat kar uske jisme se jodh diya jab wo hathi ka sar jodh sakta tha to uska sar q nahi jodha sach to ye hai ki sari mann gadhat kahaniya hai jisse tumhare pandit tumhe gumraah kar rahe hai jo bhagwan apne bete ko nahi pahechan saka wo bhagwan apne manne wale ko kya pahechane ga be shak Islam se behetar koyi dharam nahi