एशिया महादेश के दक्षिण-पश्चिम में बसे जमीन के एक बड़े टुकड़े को हम अरब प्रायद्वीप नाम से जानतें हैं. अरब के नाम की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कई मान्यतायें हैं. एक मान्यता कहती है कि सीरिया की प्राचीन भाषा के एक शब्द ‘अरबत’ से यह नाम निःसृत है. ‘अरबत’ शब्द का मतलब होता था मरुभूमि. अरबी भाषा में यही शब्द ‘रबबत’ नाम से नाम आता है जिसका अर्थ है बलुआ भूमि.
[अरब का वो इतिहास जिसे हम सबको जानना चाहिये]
कुछ मान्यतायें ये भी कहतीं हैं कि संस्कृत के शब्द ‘अर्व’ से अपभ्रंश होकर यह शब्द बना है. एक मान्यता कहती है कि इसे ब्रह्मा जी के पुत्र भृगु के दूसरे पुत्र महर्षि च्यवन के पुत्र और्व मुनि ने बसाया था, जिनके नाम पर इसका नाम पड़ा. महाभारत के आदि-पर्व में और्व मुनि का कुछ आख्यान मिलता है.
यह भूमि भी हिन्द की तरह तीन तरफ से समंदर से घिरा है. पश्चिम की ओर लाल सागर है, जिसके उस तरफ मिस्र और सूडान बसे हुए हैं, पूरब की ओर से इसे फारस और अम्मान की खाड़ी ने घेर रखा है. इसके पूर्वी किनारे पर संयुक्त अरब अमीरात बसा है.
फारस की खाड़ी के उस तरफ ईरान हैं जहाँ से अफगानिस्तान के रास्ते भारतीय उपमहाद्वीप का सड़क मार्ग मिलता है. दक्षिण की ओर से हिन्द महासागर, यमन और ओमान ने इसे घेरा हुआ है, इसके उत्तर में ईराक और जॉर्डन की सीमा लगती है तथा उधर के काफी हिस्से को रेगिस्तान ने घेरा हुआ है. इजरायल और फिलीस्तीन इसके उत्तर में अवस्थित हैं.
तीन ओर से समुद्रों से घिरे होने के कारण इसे जजीरातुल-अरब कहते हैं. इस विश्व का सबसे बड़ा प्रायद्वीप है जिसकी कुल लंबाई लगभग डेढ़ हज़ार मील और चौड़ाई तेरह सौ मील है. पूरे अरब में नदी कहीं भी नहीं है, कई जगह छोटे-छोटे नाले हैं, जिनमें बरसात का पानी बहता है. कर्क रेखा अरब से होकर गुजरती है.
यह पूरा भूभाग लगभग रेगिस्तानी है, सिर्फ तायफ़ जैसे एकाध जगहों पर कुछ खेती हुआ करती है, दक्षिण अरब में कुछ नखलिस्तान मिलतें हैं. यमन की तरफ कहीं-कहीं गेहूँ की खेती होती है और जौ ऊपजाया जाता है. फल और सब्जियों के लिये पूरा अरब तायफ़ और लैय्या पर निर्भर है.
केवल खजूर है जो पूरे अरब में होती है. इसलिये खजूर को अरब की पहचान मानी जाती है, वहां के झंडे पर भी खजूर को स्थान दिया गया है. दुनिया में सबसे अधिक अलग-अलग किस्म की खजूरें अरब में पैदा होती हैं. वहां का भौगोलिक विभाजन अरब को आठ हिस्सों में तकसीम करता है. हिजाज, यमन, हज़रमूत, महरा, बहरीन, नज्द, अहकाफ और अम्मान.
अल-हिजाज अरब के पश्चिमी हिस्से में बसा है. मक्का, मदीना, तायफ़, खैबर, उहद, हुनैन, ग़दीरे-ख़ुम और तबूक जैसे इस्लामिक महत्त्व के कई शहर इसी हिस्से में बसे हैं. तायफ की आबोहवा बाकी अरब की तुलना में काफी पसंदीदा मानी जाती है.
यहाँ मेवे खूब मिलतें हैं, अरब में इसे जमीन पर स्वर्ग कहा जाता है. हिजाज की सीमायें लाल सागर से छूती हैं. जेद्दाह बंदरगाह भी अरब के इसी हिस्से में है. अरब की प्राचीन जातियों और उनके नगरों के अवशेष इसी हिस्से में मिलतें हैं.
कुछ लोगों का ये भी मत है कि दरअसल अरब का मूल नाम हिजाज ही है. अल्ताफ-हुसैन हाली की रचनाओं में ये दिखता भी है, जब वो इस्लाम को दीने-हिजाजी कहते हुए लिखते हैं, वो दीने-हिजाजी का बेबाक बेड़ा……
हिजाज से पूरब की ओर का हिस्सा नज्द कहलाता है जहाँ से इस्लाम का वहाबी मत आरम्भ हुआ था. नज्द का मतलब है ऊँचाई वाली जमीन.