“तीन तलाक” के मसले को लेकर इंदौर के बड़बाली चौकी और बम्बई बाजार जैसी सकरी गलियों से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक में गहमा गहमी फैली हुई है. अभी तक यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका है कि ‘तीन तलाक’ शरीयत का हुक्मनामा है या नहीं ? क्या इसे सामाजिक अपराध की संज्ञा में रखा जाए?
पर अभी अभी जैसे ही अमेरिका में भारत के मूल निवासी 53 वर्षीय डॉक्टर फकरुद्दीन अत्तर, उनकी 50 वर्षीय पत्नी फरीदा और उनके दूसरे साथी, भारत में ही जन्मे 44 वर्षीय डॉ जुमाना नागरवाला को 20 अप्रेल 2017 को अमेरिका में एफबीआई ने गिरफ्तार किया है, तब से पूरी दुनिया को पता चला कि मुस्लिम सम्प्रदाय के बहुत से तबकों में पांच से आठ साल उम्र की नन्हीं सी कन्याओं के माँ बाप बच्ची को लेकर किसी कसाई के पास जाते हैं, और बिना किसी तरह का ऐनस्थिया या सुन्न करने की दबा लगाए बिना कन्याओं के गुप्त अंगो पर कैंची, छुरी, ब्लेड़ या नेल कटर से स्त्री योनि के ऊपर के निकले भाग को (जिसे ‘क्लिटोरल हुड़ या ग्लेनस् ‘ कहते हैं,) जैसे तड़पते हुए बकरे को हलाल किया जाता है, ठीक उसी तरह कन्या के गुप्त अंगो के इस भाग को काट कर अलग कर दिया जाता है. इसे अंग्रेजी में “फीमेल जेनीटल म्युटिलेसन” या खतना करना कहा जाता है.
डॉ फकरुद्दीन ने अपनी मेडीकल की पढ़ाई 1988 में बड़ोदरा के मेडीकल कॉलेज गुजरात से पूरी की थी. उनका मिशिगन स्टेट के ‘लिवोना ‘ नामक स्थान पर ” बुरहानी मेडीकल क्लीनिक ” के नाम से निजी अस्पताल है. उनकी बीबी फरीदा इस अस्पताल में मेनेजर है. ड़ाक्टर नागरवाला इस क्लिनिक में आकर कभी कभी मरीजों का इलाज भी करते हैं.
जब से लेन्सेट नामक मेडीकल की प्रख्यात रिसर्च पत्रिका ने सन 2007 में इस रहस्य का पर्दाफाश किया है कि अनेकों अफ्रीकी देशो, अरब देशों, पाकिस्तान, इन्डोनेशिया जैसे मुस्लिम बहुल्य देशों में पांच से आठ साल आयु की कन्याओं को खतना करने का प्रचलन है.
इसके कारण इन लड़कियों को जानवर की तरह तड़पना छटपटाना पड़ता है. बच्चियों के हाथ पैर जबरजस्ती पकड़ कर गुप्त अंग के ऊपर लटके भाग को बेरहमी से काट दिया जाता है. यह काम भी साधारण अप्रशिक्षित आया बाईयों द्वारा किया जाता है. इसके कारण इन्फेक्शन, टिटेनस जैसी खतरनाक हालत हो जाती है. अनेको बीमारियों से घिर कर इन कन्याओं की मौत तक हो जाती है. संयुक्त राय्ट्र संघ ने 2010 में निर्णय करके सभी देशों से अपील की है कि इस प्रथा को पूरी दुनिया में बन्द कर दिया जाए.
अमेरिका जैसे देशों में कन्याओं का खतना करना पूरी तरह से प्रतिबन्धित है. इस अपराध में अपराधी को पांच साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है. आज अमेरिका के 28 राज्यों में फीमेल जेनिटल म्युटिलेसन पूरी तरह क्रिमिनल आफेन्स घोषित कर दिया गया है. फिर भी धर्म के नाम पर और परम्पराओं के खातिर धर्म के अन्धे लोग अपनी फूल सी कलियों पर यह राक्षसी कुकृत्य चुपके चुपके कर रहे हैं. डाक्टर फकरूद्दीन इतने सालों में न जाने कितनी कन्याओं को चोरी छुपे खतना कर चुके होंगे.
विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार अकेले सन 2016 में दुनिया के सिर्फ तीस मुस्लिम बहुल्य देशों में 20 करोड़ से अधिक महिलाएं जबरन इस खतनाकरण की शिकार हो चुकी हैं. इनमें 27 अफ्रीकी देश भी शामिल हैं. भारत में भी चोरी छुपे गुप्त तरीके से “खतना-करण ” की प्रथा चालू है.
इस संबन्ध में हिन्दुस्तान टाईम्स के लेखक हरिन्दर बावेजा के लेख ने इस रहस्य को उजागर करने की कोशिश की थी. 2 अगस्त 2016 के मेल ऑनलाइन अंक में प्रकाशित समाचार से ज्ञात हुआ है कि अब दबे स्वर भारत में भी कन्याओं को खतना करने से रोकने की आवाज उठने लगी है. पर मुस्लिम वोटों की भूखी सरकारों में अभी तक इतनी बुद्धि नहीं आ सकी है कि दूसरे विकसित देशों की तर्ज पर हमारे देश में भी “फीमेल जेनीटल म्युटिलेसन “को ‘कानूनी अपराध’ घोषित कर सके.
‘एफ जी एम ‘ अर्थात फीमेल जेनीटल म्युटिलेसन या “खतना” प्रथा के समर्थकों का दुबी जुवान कहना है कि खतना करने से शादी के पहिले लडकी को किसी से यौन संबन्ध बनाने की इच्छा नहीं होती. जानकारों का यह भी कहना है कि खतना करने के नाम पर कुछ लोग तो चोरी छुपे र्स्त्री योनी को टॉके लगाकर पूरी तरह सींकर बन्द तक कर देते हैं. सिर्फ पेशाब जाने लायक एक छेद भर छोड़ देते हैं. यह सब बह इस लिये भी करते हैं जिससे कि लडकी का कौमार्य अछूता बना रहे. यह सब एक इतना घिनौंना और घटिया कारण है कि इसकी जितनी भी निन्दा की जाए कम है. फर अफसोस आज तक किसी धर्म घुरू, या धर्म के ठेकेदार और किसी भी पार्टी के नेता ने इस घिनौनी प्रथा को अपराध की श्रेणी में रखने की आवाज तक नहीं उठाई है.
क्या मानव अधिकार की रक्षा करने वाले जिम्मेदार लोग, या सरकार के तेजतर्राट नुमाइन्दे अथवा देश की सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधिपति स्वंय संज्ञान लेकर इस राक्षसी हीन हरकत तथा पूरी तरह से अमानवीय राक्षसी ” कन्या खतना प्रथा ” को बन्द करने की पहल करेंगे ?