हम गंवार ही बेहतर

फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर ने ट्वीट किया कि विनोद खन्ना के अंतिम संस्कार में नयी पीढ़ी के एक भी कलाकार को न देखकर मन बहुत दुखित है. इसलिये मुझे भी तैयार रहना होगा कि मेरे मरने के बाद कोई मुझे कंधा देने नहीं आयेगा.

मुझे नहीं लगता कि इस ट्वीट का भी नयी पीढ़ी के किसी कलाकार पर कोई असर पड़ेगा. असर तो दूर की बात रही, कोई इसे दस दिन बाद या फिर किसी प्रसिद्ध कलाकार के मरने पर इसे याद भी रख पायेगा.

वैसे स्थिति सिर्फ मुंबई की फिल्मी दुनिया की ही नहीं है. बल्कि हमारे देश में चारों तरफ फैल रही शहरी संस्कृति में पले-बढ़े लगभग हर एक युवा की यही कहानी है. उसे कोई सरोकार नहीं कि उसके रिश्ते या जानने वालों में किसी की मृत्यु हो गयी.

वह तो बीबी, बच्चों के अलावा किसी को अपने परिवार का भी नहीं मानता. फिर यह अंतिम संस्कार और परिवार से संबंधित अन्य आयोजनों में जाना उसे एक बोरिंग वर्क लगता है.

अपने घर या घर के कमरे को ही अपनी दुनिया मानने वाले लोग भला इन बातों का मतलब कैसे समझ सकते हैं कि हमारे गांवों में अब भी लोग किसी के मरने पर बिन बुलाये उसके दरवाजे पर पंहुचकर उसे कंधा देना अपना फर्ज समझते हैं.

कंधा देने के बाद उन सभी घरों में लोग एक समय का भोजन छोड़ देते हैं जो मरने वाले की अंतिम यात्रा में शरीक हुये रहते हैं.

टेलीफोन या अन्य माध्यमों से भी किसी रिस्तेदार के मरने की खबर मिलने के बाद घर में खाना नहीं बनता. जबकि गांव के किसी युवा की आकस्मिक मौत पर पूरे गांव के लोगों के चूल्हे नहीं जलते.

मंदिर के लाउडस्पीकर पर भजन बजना बंद हो जाता है. बगल में किसी के घर कोई अन्य उत्सव भी मनाया जाना सुनिश्चित रहता है तो या तो उसे टाल दिया जाता है या बेहद सादे तरीके से बिना शोरगुल किये निपटाया जाता है.

शाम के पांच बजे विनोद खन्ना का अंतिम संस्कार संपन्न हुआ उसके कुछ ही घंटे बाद प्रियंका चोपड़ा की पार्टी शुरू हो गयी. जिसमें वह सभी चेहरे दिखाई दिये जिन्हें अंतिम संस्कार में आने की फुर्सत नहीं मिली थी. जिनकी फिल्मों के डायलॉग चुराकर जो आज हीरो बने नजर आते हैं उनके अंतिम संस्कार में न पंहुचने पर किसी को भी दुख पंहुच सकता है.

वैसे आज इस बात को ऋषि कपूर ने महसूस किया और ट्वीट किया. शायद अब ऐसी बातों को लोग महसूस करना भी भूल गये हैं, या महसूस करके कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं.

वैसे ऋषि कपूर इस बात से संतोष कर सकते हैं कि उनके मरने के बाद नये लोग भले न उन्हें कंधा देने आये, उनके साथ के कुछ पुराने लोग तो जरुर बचे रहेंगे कंधा देने के लिये. चिंता तो इन नये लोगों को करनी चाहिये कि इन्हें कौन कंधा देने आयेगा?

बहरहाल कोई चिंता करे या न करे, लेकिन इन सब बातों को देखने-सुनने के बाद मन में बस यही भाव आता है कि हम गंवार ही बेहतर हैं.

Comments

comments

LEAVE A REPLY