उन दिनों मैं घर पर अकेला था. एक दिन शाम को वो अपने छोटे भाई के साथ, आरएस अग्रवाल की मैथ्स की किताब माँगने मेरे घर आ गई.
अब उससे ऐसे में कभी बात तो की नहीं थी, तो मैंने अपनी घबराहट कम करने के लिए हाल में टीवी चालू कर दिया. उसका भाई WWE देखने में व्यस्त हो गया.
वो भी किताब की बात बोलकर चुपचाप बेड पर एक तरफ़ बैठ गई और मैं अपने कमरे में किताब ढूँढने आ गया.
किताब ढूँढ ही रहा था कि वो भी मेरे कमरे में आ गई. आते ही बोली कि कमरा कितना बेतरतीब और गंदा रखे हो? ये बोलकर वो बिखरी किताबों, पेपर्स और कपड़ों को क़रीने से सजाने लगी.
मेरे एक दो बार मना करने पर भी नहीं मानी. उसके साथ अकेले में फिर मुझे घबराहट होने लगी, तो मैं चाय बनाने का बोलकर किचन में आ गया.
मेरी घबराहट तब और बढ़ गई जब वो थोड़ी देर बाद किचन में भी आ गई. आते ही फिर शिकायत… कि किचन कितना गंदा रखे हो… बर्तन तो लग रहा है कि एक हफ़्ते से साफ़ ही नहीं हुए.
पता नहीं क्यों, अब मुझे उसकी शिकायतें अच्छी लगने लगीं थीं. खैर यहाँ भी उसने साफ़ सफ़ाई चालू कर दिया. लगभग आधे घंटे बाद किचन भी मेरे कमरे जैसा ही चकाचक हो गया.
फिर वो हाथ में मैथ्स वाली किताब और मैं चाय लेकर बाहर निकले. हाल में साथ में चाय पी… उसके भाई से पढ़ाई लिखाई कि बातें हुई और उसके जाने का समय हो गया.
मुझे जीवन में पहली बार लगा कि काश!!! ये समय ठहर जाय या ज़ोर से तूफ़ान आ जाय… पर ऐसा कुछ हुआ नहीं… वो चली गई.
दिल में भारीपन लिए मैं वापस हाल में आया तो चौंक पड़ा… आर.एस. अग्रवाल की वो किताब वहीं पड़ी थी, जहाँ वो बैठी थी.
मेरी धड़कने फिर एक बार तेज़ हो गईं… एक अजीब सी गनगनाहट पेट से उठकर सीने तक आने लगी.
ऐसा होता भी क्यों नहीं? ये किताब तो उसके पास भी थी. मुझे याद आया कि मैनें ख़ुद उसे ये किताब ख़रीदते देखा था.
फिर उसे मेरे घर आने का क्या मतलब?
मैनें जानबूझ कर इसका मतलब नहीं निकाला. कुछ बातें बिना मतलब के ही ठीक रहतीं हैं. है ना?
और हाँ, मैने उसके साफ किए बर्तन और सजाई गई किताबों को तब तक हाथ नहीं लगाया, जब तक मेरे घर वाले वापस ना आ गए. जिस-जिस चीज़ को उसने हाथ लगाया था, उनको बस दूर से ही देखता रहता था. बिलकुल वैसे ही, जैसे उसको.