9 जनवरी 2017 को न्यूयार्क से रायटर न्यूज ऐजन्सी के संवाददाता जोनाथन स्टेमपेल ने जानकारी दी कि भारत में बॉर्नवीटा और Cadbury चॉकलेट बनाने वाली कम्पनी ने, भारत में नेताओं और अफसरों को रिश्वत देकर लायसेन्स हथियाये थे.
फिर षड़यन्त्रपूर्वक टेक्स चोरी के अपराध के लिये कम्पनी ने तेरह मिलीयन डालर अर्थात लगभग नो सौ करोड़ रुपयों का जुर्माना अमेरिकी सरकार को देकर, विदेशों में कार्यरत अमरीकी कम्पनियों के भ्रष्ट आचरण निवारण कानून के अन्तर्गत उसके विरूद्ध चल रहे कानूनी मुकदमें से मुक्ति हासिल कर ली.
घटना कुछ इस तरह की है कि सन 2005 में हिमाचल प्रदेश के बड्ड़ी तेहसील के ग्राम संधोली में केडवरी (इन्डिया) कम्पनी ने चॉकलेट और बॉर्नवीटा बनाने के लिए अपनी एक नई फेक्टरी बनाई जिसकी मूल कम्पनी केडबरी अमेरिका में है.
सन 2010 में इस फेक्टरी में उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए कम्पनी ने एक संगमरमर के व्यापारी दीपक चन्देल की सेवाएं रिश्वत खोरी के लिए दलाल के रूप में ली. चन्देल दलाल की हिमाचलप्रदेश के सभी उच्च पदों पर आसीन अफसरों और नेताओं से गहरी सांठगाँठ थी.
दीपक चन्देल को केडवरी कम्पनी द्वारा बिना किसी एग्रीमेन्ट के तीन किश्तों में 90 हजार 666 डालर लगभग 60 लाख रूपयों का भुगतान किया गया. अनुमान है कि दीपक ने कम्पनी से लाखों रूपये लेकर सम्बंधित अफसरों को और नेताओं को बाँट कर सब नियम कानूनों के विरूद्ध चॉकलेट, जेम्स और बॉर्नवीटा बनाने का लायसेन्स लेकर Cadbury कम्पनी को दिया.
उसने अफसरों को रिश्वत देकर और नेताओं से सांठगाँठ करके सन् 2020 तक अर्थात अगले दस सालों के लिए इन्कम टेक्स तथा उत्पादन कर से पूरी तरह मुक्ति पाने का आदेश प्राप्त कर लिया.
जब भी किसी बड़ी विदेशी कम्पनी से कोई बड़ा लफड़ा हो जाता है, तो कानूनी कार्यवाही से बचने के लिए वह कम्पनी किसी दूसरी कम्पनी को बेच दी जाती है. जैसा कि भोपाल की गैस त्रासदी में हुआ था यूनियन कार्बाईड़ कम्पनी के कारखाने से मिक गैस लीक होजाने के कारण तीन हजार पांच सौ लोग तड़प तड़प कर मर गए.
कम्पनी के मालिक ने अर्जुनसिंह को रिश्वत खिलाकर स्वंय को मुख्य मंत्री के सरकारी विमान से भोपाल से भगाने की जुगाड़ करके अमेरिका में जाकर युनियन कार्बाईड़ कम्पनी को “ढोव इन्टरनेशनल” नामक कम्पनी को बेंच दिया.
दरअसल कम्पनी को बेचने का महज एक नाटक था, कानूनी सजा से बचने के लिए एण्डरसन ने कागज पर ही खरीद फरोक्त करके फौजदारी मुकदमे से बचने का नाटक कर लिया. बाद में घोषणा कर दी कि एण्डरसन तो मर गया. क्योंकि भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने उसे “भगोड़ा” घोषित कर दिया था. फ्लोरिडा अमेरिका में आज तक उसकी कब्र को किसी ने नहीं देखा. पता नहीं कि एण्डरसन सच में मर गया या अभी भी जिन्दा है. कोई इस रहस्य की सचाई को नहीं जानता है.
जैसे ही अमेरिका की सिक्युरिटी और एक्सचेन्ज कमीशन ने केडबरी कम्पनी के आॉडिट में पाया कि Cadbury कम्पनी ने हिमाचल प्रदेश में एक दलाल के मार्फत रिश्वत देकर लायसेन्स हासिल करके और अगले दस सालों तक के लिए एक्साइज ड्यूटी फ्री कराने का आदेश ले लिया.
इतना ही नहीं अमेरिका के संघीय जांच कमीशन ने पाया कि Cadbury कम्पनी ने उसकी भारत में मौजूद दूसरी कम्पनियों में बने माल को हिमाचल प्रदेश की कम्पनी में बना हुआ बताकर, क्रमश: 200 और 580 करोड़ रूपयों, के उत्पाद शुल्क की चोरी की है. जबकि जिस समय हिमाचल की फेक्टरी में चॉकलेट बनाना बताया गया था उस समय हिमाचल की फेक्टरी पूरी तरह बनी भी नहीं थी.
अमेरिका में मल्टी नेशनल कम्पनियों पर सख्त नियंत्रण रखा जाता है. वहां पर फॉरन करप्ट प्रेक्टिसेज एक्ट के तहत विदेशों में कार्यरत कम्पनियां अगर कोई भ्रष्टाचार या आपराधिक कार्य करती हैं तो, इस कानून के तहत टेक्स चोरी के बराबर पैसा और जुर्माना लगाकर “आऊट आफ कोर्ट” समझौता करके मामला रफा दफा करके जांच फाईल बन्द कर दी जाती है.
इसका अर्थ यह हुआ कि परोक्ष रूप से विदेशों में कार्यरत कम्पनियों को कानूनी छूट दी गई है कि विदेशों में जाकर जितनी भी लूट मार करना हो, रिश्वत देकर दूसरे देश के लोगों को सरकार को चाहे जितना चूना लगाना हो, लगा आओ. बस जितनी उल्टी सीधी कमाई की है उसका एक हिस्सा वहां की सरकार में जमा कर दो, फिर सब खून माफ.
यह सब ठीक उसी प्रकार लग रहा है जैसे गुंडों का गिरोह अलग अलग स्थानों में चोरी करता है, जेब काटता है और बेईमानी की कमाई का एक हिस्सा इलाके के डॉन को दे देता है, फिर सब कुछ ठीक ठाक चलता रहेगा.
Cadbury कम्पनी ने रिश्वत देकर गलत तरीके से 10 साल तक एक्साईज माफ कराई. इन्कम टेक्स से छूट ली और फिर जब बड़्डी की फेक्टरी बनी ही नहीं थी फिर भी उसके नाम पर दूसरी फेक्टरियों में बने माल पर चॉकलेट बॉर्नवीटा, जेम्स का उत्पादन करके भारत के सरकारी खजाने से लगभग 780 करोड़ रुपयों की टेक्स चोरी की.
इसकी जब जानकारी सूचना के अधिकार के तहत केन्द्रीय सतर्कता आयोग से भारत के ही आर टी आई कार्यकर्ता आस्विनी कुमार ने माँगी, तो उन्हें यह कह कर जानकारी देने से मना कर दिया गया कि “इससे Cadbury कम्पनी के विरूद्ध अमेरिका में चल रही जांच प्रभावित होगी”.
हालांकि डायरेक्टर जनरल आफ सेन्ट्रल एक्साईज इन्टेलिजेन्स को Cadbury कम्पनी द्वारा वित्तीय वर्ष 2009-10 से लेकर वित्तीय वर्ष 2012-13 के दौरान लगभग 200 करोड़ रूपयों की टेक्स चोरी और रिकार्ड़ हेराफेरी के दो मामले सामने आए हैं. यह जानकारी एस एस पलानिमानिक्रम के लिखित प्रश्न के उत्तर में लोक सभा में दी गई.
यह समाचार 23 नवम्बर 2012 के समाचार पत्रों मे प्रकाशित हुआ. इतना ही नहीं पी टी आई की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 23 फरवरी 2016 की रिपोर्ट में यह जानकारी भी दी गई कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सी वी सी ) की रिपोर्ट के हिसाब से कम्पनी ने बाद के वर्षों में भी 580 करोड़ रूपयों के टेक्स की चोरी की है.
अमेरिका के सिक्युरिटी एंव एक्सचेन्ज कमीशन ने टेक्स चोरी और भ्रष्ट तरीकों को अपनाने के पुख्ता सबूत जैसे ही अपने ऑडिट में पाये, तो तुरन्त ही केडबरी कम्पनी ने युनियन कारबाईड़ की तरह अपने को “Mondelez” नाम की कम्पनी को बेच दिया.
हालांकि Mondelez और Cadbury कम्पनी के मालिक वही है सिर्फ कानूनी मुसीबत से बचने के लिए कागज पर नाम बदलकर सजा से बचने का तरीका अपना लिया गया है. 30 जनवरी 2017 को बिजनेस स्ट्न्डर्ड में प्रकाशित जानकारी के अनुसार Mondelez कम्पनी का वर्तमान मे टर्न ओवर 7500 करोड़ रूपए सालाना का भारत में है. चॉकलेट मार्केट पर इसका 65% कब्जा है. आज यह कम्पनी भारत में 60 हजार टन चॉकलेट बना रही है, इसका सकल व्यवसाय 30 अरब डालर प्रतिवर्ष का हो गया है.
दीपक चन्देल द्वारा रिश्वतखोरी और टेक्स चोरी के अपराध सिद्ध होते ही अमेरिका में यह मामला स्पेशल सिक्युरिटी इन्वेस्टीगेशन ग्रुप द्वारा सेक ( सिक्युरिटी एण्ड़ एक्सचेन्ज कमीशन), अमेरिका के डिपार्टमेन्ट आॉफ जस्टिस के सामने लाया गया. तुरन्त ही केडबरी कम्पनी ने अपना चोला बदलकर, धोखाधड़ी और टेक्स चोरी करनेवाली अमेरिकन केडबरी कम्पनी से “Mondelez International” के नए नाम से ” आऊट आफ कोर्ट ” समझौता कर लिया.
अन्त में 9 जनवरी 2017 को प्रकाशित अमेरिकन समाचार ऐजन्सी ‘रायटर’ के संवाद दाता ‘जोनाथन स्टेमपेल’ ने पुख्ता जानकारी दी कि Mondelez कम्पनी ने 13 मिलीयन डालर अर्थात 884 करोड़ रूपयों का जुर्माना भरकर मामला रफा दफा करके न तो यह स्वीकार किया है कि उसने कोई घपला किया है और ना ही इस आरोप का खण्डन किया है कि उसने रिश्वत बाँट कर लायसेन्स और टेक्स बचत के लिये अगले दस सालों के लिये रियायत हासिल की है. ना ही केडबरी यानि मोन्डेलेज ने इस बात को नकारा है कि दूसरी फेक्टरी के उत्पादन को बड्ड़ी फेक्टरी में बताकर उसने टेक्स की चोरी करके खुलम्म-खुल्ला धोखाधड़ी की है.