बाबा रामदेव अपनी दवाइयों में मानव हड्डी मिलाता है ये एक बार कम्युनिस्ट नेत्री वृंदा करात ने कहा था और विदेशी नेतृत्व वाली कांग्रेस ने भी खूब हल्ला मचाया था. रामदेव योगी नहीं व्यापारी है, रामदेव का आंवला रस जाँच में फेल, रामदेव बाजार से खरीद कर प्रोडक्ट बेचता है, रामदेव भाजपा का एजेंट है, ठग है, ढोंगी है, वगैरह वगैरह….
1960-70 में बाजार में वनस्पति घी मतलब “डालडा”, टूथपेस्ट मतलब “कोलगेट”, साबुन मतलब “लाइफबॉय”, वॉशिंग पाउडर मतलब “सर्फ़”, क्रीम मतलब “वैसलीन” और ब्यूटी सोप मतलब “लक्स”, कपडे का साबुन मतलब “सनलाइट”. यहाँ तक कि बोर्नवीटा, पोंड्स, स्क्वेश, टमैटो सॉस, डिब्बाबंद दूध, खुशबूदार तेल, शैम्पू, सब कुछ विदेशी कम्पनियां बनाती और 50-60 करोड़ भारतीयों को जी भरकर लूटती रहती थी.
मैं आप को एक उदहारण देता हूँ जो पहले भी कई बार दे चुका हूँ. 1965 में एक लाइफबॉय साबुन आठ आने यानि पचास पैसे का था. उन दिनों पिताजी पंजाब नॅशनल बैंक में सुपरवाइजर थे और उन्हें 250 रूपए सेलेरी मिलती थी अर्थात उनकी एक माह की तनख्वाह में 500 लाइफबॉय साबुन खरीदे जा सकते थे.
आज उस पद पर नियुक्त व्यक्ति को लगभग 50 से 60 हजार मिलते हैं. मान लो कि साबुन 10 रूपए का है तो 5000 से 6000 साबुन उतने पैसे में आएंगे. यही महत्वपूर्ण बात है कि एक आम हिन्दुस्तानी के कितने प्रतिशत पैसे ये विदेशी कम्पनियां लूटकर ले जाती थीं.
भारत के आम आदमी के हितों से, उनकी शिक्षा से जीवनस्तर से या चिकित्सा से उनका कुछ लेना-देना नहीं था, न है. यूनिलीवर जैसी कम्पनियाँ शुद्ध मुनाफा विदेश लूटकर ले जाती थीं.
हालाँकि बाजार में बड़ी मात्रा में भारतीय प्रोडक्ट लाने और भारतीय कंपनियों का शेयर बढ़ाने का पूरा श्रेय बाबा को नहीं जाता मगर आज देश में पतंजलि का टूथपेस्ट नंबर एक हो गया है तो इसे नकारा नहीं जा सकता.
बाबा रामदेव का पतंजलि आज हर वो घरेलू उपयोग का प्रोडक्ट बना रहा है जिन पर एक ज़माने में केवल विदेशियों का कब्ज़ा था और उनसे सस्ता और बेहतर बना रहा है. उनका ये दावा है कि उनकी कम्पनियां नो प्रॉफिट नो लॉस पर काम करती हैं.
अब आप बताइये कि आप इन ठग विदेशी कंपनियों के साथ हैं या भारत की इकोनॉमी को बढ़ाने वाले भारतीय उद्यमियों के साथ.