विनोद खन्ना नहीं रहे. यह खबर बड़ी अजीब है. एक लम्बे सफर का ऐसा अंत जिसके लिए अभी कोई तैयार नहीं. विनोद खन्ना का जाना केवल एक फ़िल्मी एक्टर के निधन की खबर नहीं बनती, वस्तुतः एक ठेठ भारतीय संवेदनशील मन की कला, संस्कृति, अध्यात्म और राजनीति से गुजरते हुए एक ऐसे पथिक की यात्रा का पड़ाव है जिसका असर भारत के हर मन पर पड़ा है.
निधन भारत की संसद के एक सदस्य का भी है. दरअसल विनोद खन्ना वृहत्तर भारत के सांस्कृतिक सिंबल बन कर कला, फिल्म और राजनीति में बराबर की भागीदारी करते हुए अध्यात्म की चेतन परंपरा को भी जी रहे थे.
देखा जाय तो उनकी उम्र अभी उतनी नहीं थी जो उन्हें इस धरा से विदा की तैयारी कराती बड़े और उनके समकक्ष बहुत से कलाकार अभी बिलकुल स्वस्थ और सक्रिय हैं. पिछले दिनों विनोद जी की कुछ तस्वीरें मीडिया में आयीं तब सभी को बड़ा ही आश्चर्य हुआ था उनको उस दशा में देख कर. 70 साल के विनोद खन्ना काफी समय से बीमार थे और मुंबई के एचएन फाउंडेशन अस्पताल में भर्ती थे.
उन्हें गाल ब्लेडर कैंसर था. उन्होंने सुबह 11 बजे आखिरी सांस ली. पिछले ढाई महीने से विनोद का गिरगांव के एचएन रिलायंस फाउंडेशन एंड रिसर्च सेंटर में इलाज चल रहा था. अप्रैल की शुरुआत में उनकी एक फोटो भी सामने आई थी. इसमें वे बेहद कमजोर नजर आ रहे थे.
उन्होंने करीब 144 फिल्मों में काम किया. हॉस्पिटल की ओर से जारी किए गए ऑफिशियल स्टेटमेंट के मुताबिक, “सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल में भर्ती वेटरन एक्टर और सांसद विनोद खन्ना ने सुबह 11.20 बजे ब्लैडर कार्सिनोमा के चलते अंतिम सांस ली.
जीवन का सफर
विनोद खन्ना का जन्म एक व्यापारिक परिवार में 6 अक्टूबर, 1946 को पेशावर में हुआ था. उनका परिवार अगले साल 1947 में हुए भारत-पाक विभाजन के बाद पेशावर से मुंबई आ गया था. उनके माता-पिता का नाम कमला और किशनचंद खन्ना था. 1960 के बाद की उनकी स्कूली शिक्षा नासिक के एक बोर्डिग स्कूल में हुई वहीं उन्होंने सिद्धेहम कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक किया था.
विनोद खन्ना पांच भाई बहनों में से एक हैं. उनके एक भाई और तीन बहने हैं. आजादी के समय हुए बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से मुंबई आकर बस गया. 1960 के बाद की उनकी स्कूली शिक्षा नासिक के एक बोर्डिग स्कूल में हुई वहीं उन्होने सिद्धेहम कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था. बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई के दौरान विनोद खन्ना ने ‘सोलवां साल’ और ‘मुगल-ए-आज़म’ जैसी फिल्में देखीं और इन फिल्मों ने उन पर गहरा असर छोड़ा.
फ़िल्मी सफर
उन्होंने अपने फ़िल्मी सफर की शुरूआत 1968 में आई फिल्म “मन का मीत” से की जिसमें उन्होने एक खलनायक का अभिनय किया था. कई फिल्मों में उल्लेखनीय सहायक और खलनायक के किरदार निभाने के बाद 1971 में उनकी पहली सोलो हीरो वाली फिल्म हम तुम और वो आई.
कुछ वर्ष के फिल्मी सन्यास, जिसके दौरान वे आचार्य रजनीश के अनुयायी बन गए थे, के बाद उन्होने अपनी दूसरी फिल्मी पारी भी सफलतापूर्वक खेली. एक इंटरव्यू के दौरान, विनोद खन्ना ने कहा था कि उनके समय भी हीरो फिट होते थे परंतु तब बॉडी दिखाने का ट्रेंड नहीं था.
ये हैं यादगार फिल्में
विनोद खन्ना ने ‘मेरे अपने’, ‘कुर्बानी’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रेशमा और शेरा’, ‘हाथ की सफाई’, ‘हेरा फेरी’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, चाँदनी जैसी कई शानदार फिल्में की हैं. विनोद खन्ना का नाम ऐसे एक्टर्स में शुमार था जिन्होंने शुरुआत तो विलेन के किरदार से की थी लेकिन बाद में हीरो बन गए. विनोद खन्ना ने 1971 में सोलो लीड रोल में फिल्म ‘हम तुम और वो’ में काम किया था.
गुरदासपुर से सांसद विनोद खन्ना की फिल्म ‘एक थी रानी ऐसी भी’ छह दिनों पहले रिलीज हुई थी. राजमाता विजयाराजे सिंधिया के जीवन पर बनी फिल्म ‘एक थी रानी ऐसी भी’ फिल्म 21 अप्रैल को देश भर में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में अभिनेत्री एवं मथुरा लोकसभा सीट से भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने विजयाराजे की भूमिका निभाई है. उनके अलावा फिल्म में विनोद खन्ना, सचिन खेडेकर एवं राजेश शृंगारपुरे ने भी अहम किरदार अदा किया था.
राजनीतिक सफर
वर्ष 1997 और 1999 में वे दो बार पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र से भाजपा की ओर से सांसद चुने गए. 2002 में वे संस्कृति और पर्यटन के केन्द्रिय मंत्री भी रहे. सिर्फ 6 माह पश्चात् ही उनको अति महत्वपूर्ण विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बना दिया गया.उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में पर्यटन और विदेश राज्य मंत्री बनाया गया.
खन्ना 2014 का लोकसभा चुनाव भी गुरदासपुर से जीते थे. वह गुरदासपुर से चार बार जीते. खन्ना 2009 का लोकसभा चुनाव हार गये थे. पिछले काफी दिनों से वह अपनी बीमारी के चलते राजनीति में सक्रिय नहीं दिखाई दे रहे थे. पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान भी वह स्वास्थ्य कारणों से प्रचार के लिए नहीं आ पाये थे. पिछले दिनों एक तसवीर वायरल हुई थी जिसमें अस्पताल में भर्ती अभिनेता का स्वास्थ्य काफी गिरा हुआ दिख रहा था और वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ थे. यह बताया जा रहा था कि अभिनेता कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे.
विनोद खन्ना के बारे में कुछ खास बातें:
1. विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर 1946 को पेशावर (ब्रिटिश इंडिया) में हुआ था जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है.
2. विनोद खन्ना के पिता का कपड़ों और केमिकल बनाने का कारोबार था लेकिन विभाजन के बाद इनका पूरा परिवार पेशावर से मुंबई चला आया.
3. पढ़ाई के दौरान ही विनोद खन्ना को ‘सोलवा साल’ और ‘मुगल ए आजम’ जैसी फिल्मों के प्रति काफी प्रेम हो गया था. विनोद खन्ना ने सीडेनहम कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था.
4. विनोद खन्ना ने सुनील दत्त की 1968 की फिल्म ‘मन का मीत’ से फिल्मों में डेब्यू किया था. इस फिल्म में विनोद ने एक विलेन का किरदार निभाया था. उस फिल्म में सुनील दत्त के भाई सोम दत्त मुख्य भूमिका में थे. यह फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई.
5. करियर के शुरुआत में विनोद खन्ना ने ज्यातदार सपोर्टिंग या विलेन वाले रोल किए. इन फिल्मों में ‘पूरब और पश्चिम’, ‘सच्चा झूठा’, ‘आन मिलो सजना’, ‘मस्ताना’, ‘मेरा गाँव मेरा देश’ और ‘एलान’ जैसी फिल्में थी.
6. विनोद खन्ना का नाम ऐसे एक्टर्स में शुमार था जिन्होंने शुरुआत तो विलेन के किरदार से की थी लेकिन बाद में हीरो बन गए. विनोद खन्ना ने 1971 में सोलो लीड रोल में फिल्म ‘हम तुम और वो’ में काम किया था.
7. साल 1980 में विनोद खन्ना ने फिरोज खान की ‘कुर्बानी’ फिल्म में काम किया जो उस साल की सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाली फिल्म बन गयी.
8. विनोद खन्ना ने 137 फिल्मों में काम किया है जिसमें से वह 101 फिल्मों में लीड रोल और 36 फिल्मों में सपोर्टिंग किरदार में नजर आये हैं.
9. साल 1982 में विनोद खन्ना ‘ओशो’ के अनुयायी बन गए और 5 साल तक कोई भी फिल्म नहीं की. फिर 1987 में ‘इन्साफ’ फिल्म से वापसी की. बाद में राजनीति के क्षेत्र में भी विनोद खन्ना ने कदम रखा.
10. विनोद खन्ना की पहली शादी गीतांजलि से 1971 में हुई थी जिनसे अक्षय खन्ना और राहुल खन्ना बेटे हुए. उसके बाद किन्ही कारणों से उनका गीतांजलि से तलाक हो गया. और दोबारा साल 1990 में विनोद खन्ना ने कविता से शादी की और उन दोनों का एक बेटा साक्षी खन्ना और बेटी श्रद्धा खन्ना है.
ओशो की शरण में
जब वो अपने फ़िल्मी करियर के चरम पर थे तब उन्होंने बॉलीवुड को अलविदा कह दिया. जी हां, विनोद खन्ना फ़िल्में छोड़ कर आचार्य रजनीश (ओशो) के शरण में चले गये थे. ये बात तब की है जब उनका नाम बेहद सफल अभिनेताओं में गिना जाता था. लेकिन उस बीच उनकी मां का निधन हो गया जिससे वो काफी दुखी रहने लगे. इस दौरान विनोद खन्ना की मुलाकात ओशो से हुई. ओशो से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर से संन्यास ले लिया और अपनी बीवी को तलाक दे दिया. जिसके बाद वो अमेरिका जाकर ओशो के आश्रम में बस गये. ओशो ने उन्हें स्वामी विनोद भारती नाम दिया था.
पांच साल बाद एक बार फिर उन्होंने रुपहले पर्दे पर शानदार एंट्री की. उन्होंने फिल्म ‘इंसाफ’ से अपनी नयी पारी की शुरुआत की. 1987 में आई इस फिल्म में उनकी एक्ट्रेस डिंपल कपाड़िया थी. फिल्म में एक्ट्रेस डिंपल के साथ उनकी केमेस्ट्री को काफी पसंद किया गया.
कहा जाता है कि अगर विनोद खन्ना आचार्य रजनीश के चक्कर में न पड़ते तो शायद बॉलीवुड का इतिहास कुछ और होता. शायद अमिताभ बच्चन इतनी आसानी से सुपर स्टार नहीं बनते और विनोद खन्ना का करियर उनके आसपास ही होता. ओशो का जादू विनोद खन्ना के सिर चढ़कर बोला लेकिन आखिर क्यों अमिताभ बच्चन उनसे बचे रहे और बॉलीवुड में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते चले गए.
आखिरी बार ‘दिलवाले’में नजर आए…
विनोद खन्ना 2015 में शाहरुख-काजोल स्टारर ‘दिलवाले’ के बाद फिल्मों में नजर नहीं आए. उन्होंने गुरदासपुर में कुछ महीने पहले कहा था कि उन्हें 2010 से कैंसर है. इसी वजह से वे पब्लिक लाइफ से दूर हैं.
उनके परिवार में पहली पत्नी गीतांजलि और बेटे राहुल-अक्षय हैं. दूसरी पत्नी से कविता, बेटा साक्षी और बेटी श्रद्धा है.
बनना चाहते थे इंजीनियर
विनोद साइंस के स्टूडेंट रहे और पढाई के बाद इंजीनियर बनने का सपना देखा करते थे. पिता चाहते थे कि वे कॉमर्स लें और पढ़ाई के बाद घर के बिजनेस से जुड़ें. स्कूलिंग के बाद पिता ने उनका एडमिशन एक कॉमर्स कॉलेज में भी करा दिया था, लेकिन विनोद का पढ़ाई में मन नहीं लगा.
सुनील दत्त के जरिए हुई बॉलीवुड में एंट्री
विनोद की सुनील दत्त से एक पार्टी में मुलाकात हुई थी. उस वक्त सुनील के छोटे भाई सोम दत्त अपने होम प्रोडक्शन में ‘मन का मीत’ बना रहे थे. इसमें सुनील दत्त को अपने भाई के किरदार के लिए किसी नए एक्टर की तलाश थी. विनोद खन्ना की पर्सनैलिटी, ऊंची कद-काठी को देखकर सुनील दत्त ने उन्हें वह रोल ऑफर किया. यह फिल्म 1968 में रिलीज हुई और बॉलीवुड में विनोद की एंट्री हुई.
पिता ने कहा था- फिल्मों में गए तो वे उन्हें गोली मार देंगे
जब विनोद खन्ना ने सुनील दत्त का ऑफर कबूल किया तो उनके पिता नाराज हो गए. उन्होंने विनोद पर बंदूक तान दी और कहा कि यदि वे फिल्मों में गए तो वो उन्हें गोली मार देंगे.
हालांकि, विनोद की मां ने उनके पिता को इसके लिए राजी कर लिया. पिता ने कहा कि अगर विनोद दो साल तक कुछ ना कर पाए तो उन्हें फैमिली बिजनेस ज्वाइन करना होगा.
करियर का टर्निंग प्वाइंट
विनोद के करियर में टर्निंग प्वाइंट 1971 में आया. उसी साल में उन्होंने सुनील दत्त और अमिताभ बच्चन स्टारर ‘रेशमा और शेरा’ की. गुलजार की ‘मेरे अपने’ में उनकी एक्टिंग की तारीफ हुई. इस साल उन्होंने करीब 10 फिल्में कीं.
1973 में गुलजार के डायरेक्शन में बनी ‘अचानक’ से उन्होंने बॉलीवुड में अपने पैर मजबूती से जमा लिए.
कॉलेज में मिला था पहला प्यार
विनोद खन्ना ने एक बार बताया था कि कॉलेज लाइफ में उन्होंने थिएटर में काम करना शुरू किया था. वहां उनकी कई गर्लफ्रेंड्स थीं. यहीं उनकी मुलाकात गीतांजलि से हुई. दोनों ने 1971 में शादी की. विनोद और गीतांजलि के दो बेटे अक्षय और राहुल खन्ना हैं.
एक हफ्ते में साइन की थीं 15 फिल्में
विनोद की पहली फिल्म ‘मन का मीत’ को दर्शकों का मिला-जुला रिस्पॉन्स मिला. लेकिन इसके बाद एक हफ्ते में ही विनोद ने करीब 15 फिल्में साइन कीं.
उन्होंने अपने करियर में 144 फिल्में की हैं. उन्हें खासतौर पर ‘मेरे अपने’, ‘मेरा गांव मेरा देश’, ‘इम्तिहान’, ‘इनकार’, ‘अमर अकबर एंथोनी’, ‘लहू के दो रंग’, ‘दयावान’, ‘अचानक’ और जुर्म के लिए जाना जाता है.
5 साल ओशो के आश्रम में माली थे विनोद
एक वक्त था जब परिवार के लिए विनोद संडे को काम नहीं करते थे. ऐसा करने वाले वे शशि कपूर के बाद दूसरे एक्टर थे. लेकिन बाद में वे ओशो से प्रभावित हो गए. इसके बाद उनकी पर्सनल लाइफ बदल गई.
विनोद हर वीकेंड पुणे में ओशो के आश्रम जाते थे. यहां तक कि उन्होंने अपने कई शूटिंग शेड्यूल भी पुणे में ही रखवाए. शूटिंग के लिए भी वे कुर्ता और माला पहनकर पहुंचने लगे थे. धीरे-धीरे विनोद खन्ना प्रोड्यूसरों को साइनिंग अमाउंट लौटाने लगे. दिसंबर 1975 में विनोद ने फिल्मों से अचानक ब्रेक ले लिया.
दरअसल, ओशो यूएस के ओरैगन शिफ्ट हो गए थे. विनोद भी वहीं चले गए. ओशो के साथ उनके रजनीशपुरम आश्रम में करीब 5 साल गुजारे. वे वहां उनके माली थे. यहीं से विनोद खन्ना की फैमिली लाइफ बिखरने लगी.
गीतांजलि से टूट गया रिश्ता
5 साल तक यूएस में रहे विनोद का परिवार टूट गया था. 1985 में पत्नी गीतांजलि ने उन्हें तलाक देने का फैसला किया. फैमिली बिखरने के बाद 1987 में विनोद ने डिंपल कपाड़िया के साथ फिल्म ‘इंसाफ’ से बॉलीवुड में फिर से एंट्री की. इसके बाद उन्होंने फिरोज खान के साथ ‘दयावान’ में लीड एक्टर का रोल किया.
श्रद्धांजलि
विनोद खन्ना अपने लार्जर देन लाइफ परफॉर्मेंस और ग्रेशियसनेस के लिए याद किए जाएंगे. उनके जैसे कम ही लोग होते हैं… सर आप बहुत याद आएंगे.- अनुपम खेर
फिल्मों और राजनीति में विनोद खन्ना का एक शानदार करियर था. उन्होंने करोड़ों भारतीयों के दिलों में एक विशेष जगह बनाई. विनोद खन्नाजी के निधन के साथ भारत के लोगों ने एक शानदार एक्टर और सेंसेटिव पॉलिटिशियन को खो दिया है. उनकी आत्मा को शांति मिले.- राजनाथ सिंह
विनोद खन्ना वास्तव में ‘मेरे अपने’, एक प्रभावशाली और प्यारे पर्सनैलिटी, बेहद हैंडसम और टैलेंटेड सुपरस्टार अब हमारे बीच नहीं रहे. फिल्मों से लेकर राजनीति तक विनोद और मैं साथ रहे. वे अपने पीछे पूरी एक जनरेशन, कई फैन्स एडमाइरीज, दोस्त और शुभचिंतकों को छोड़ गए हैं. लव यू, मिस यू. उनके लिए मेरी प्रार्थना और उनके परिवार के लिए संवेदना है. हम सभी के लिए बहुत बुरा दिन. भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे. – शत्रुघ्न सिन्हा
विनोद खन्नाजी के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ. वे आखिरी वक्त तक एक अच्छे इंसान और स्टार रहे. उनके परिवार के साथ मेरी संवेदना है.- आशा भोसले
अमर (अमर अकबर एंथोनी में विनोद खन्ना का कैरेक्टर) तुम बहुत याद आओगे.- ऋषि कपूर