दिल्ली म्यूनिसपल कॉरपोरेशन में हुए चुनावों के परिणामों का यदि ठंडे दिमाग से विश्लेषण किया जाय तो यह परिणाम कोई आश्चर्यजनक नहीं है. पंजाब और गोवा के परिणामों को देखते हुए, आम आदमी पार्टी की दिल्ली में हार होने की आशा पहले से ही बड़ी बलवती हो चुकी थी.
26 मार्च को आये परिणामों में जहां ‘आप’ आशानुसार, अपनी दुर्गति को प्राप्त हो गयी है, वहीं यह परिणाम और उसके कारणों ने भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास भी करा दिया है.
दिल्ली का यह म्यूनिसपल चुनाव कहने को तो स्थानीय निकायों का चुनाव था लेकिन वास्तव में देखा जाय यह दिल्ली राज्य, जो कि एक म्यूनिसपल निगम का परिष्कृत अपग्रेड वर्शन है, उसी का ही चुनाव था.
2015 में 70 में 67 सीट जीतने वाली ‘आप’, महज़ 2 वर्षो में जिस बुरी तरह हारी है, उससे यह अंदाजा बिल्कुल नही लगाना चाहिए कि यह राष्ट्रवादी विचारधारा की शहरी नक्सलियों पर वैचारिक जीत है.
यह सिर्फ शहरी नक्सलियों के राजनैतिक प्रधान अरविंद केजरीवाल की हार है और यही हार केजरीवाल की राजनैतिक रूप से हत्या होने का कारण भी बनने जा रही है.
मुझे लगता है कि शहरी नक्सलियों का गिरोह, अपनी विचारधारा के राजनैतिक पतन का ठीकरा, केजरीवाल के सर पर फोड़ेगी और एक हारे हुए सेनापति को अपने से अलग करके सिसोदिया के नेतृत्व में सभी छिटके हुए टप्पेबाज़ों का फिर से जमावड़ा करेगी.
इस चुनाव का सबसे विचारणीय पक्ष यह है कि एमसीडी पर पिछले 10 वर्षो से काबिज़ बीजेपी, जो अपने सभासदों के निकम्मेपन और भ्रष्टाचारों से कलुषित थी, वह पहले से ज्यादा मजबूत हो कर, फिर से जीत गयी है.
यदि तटस्थ हो कर विचार किया जाय तो बीजेपी को इन चुनावों में जीतने का कोई हक नहीं था लेकिन फिर भी केजरीवाल और शहरी नक्सलियों के गिरोहबाजों की अराजकता, बीजेपी के सभासदों के निकम्मेपन और भ्रष्टाचार पर भारी पड़ी है.
बीजेपी की इस जीत में जहां खुद केजरीवाल की नकरात्मकता का योगदान था, वहीं सभी पुराने सभासदों को बदल देने के फैसले ने भी जनता को, इनके पुराने पापों को भुलाने में मदद दी है.
बीजेपी द्वारा निवर्तमान सभासदों को बदलने के फैसले से मुझे यह प्रबल संभावना दिख रही है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में, वर्तमान सांसदों की छुट्टी होगी और नए चेहरे बीजेपी के प्रत्याक्षी होंगे.
वैसे यदि हम मोदी जी के गुजरात के अनुभव को याद करे तो हम पाएंगे कि वह हमेशा से बड़ी संख्या में पुराने विधायको को हटाते रहे है.
इस म्यूनिसपल कॉर्पोरशन दिल्ली के चुनाव में बीजेपी की जीत का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि अब विपक्ष के पास महागठबंधन करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है.
विपक्ष बीजेपी से तो लड़ सकता है लेकिन मोदी जी से लड़ने के लिए असमर्थ व दिशाहीन है. उनके पास तमाम विरोधाभास को लिये हुये, एक साथ एक मंच पर आने के अलावा अब कोई भी विकल्प नही बचा है.
मुझे लगता है कि यह जितनी जल्दी होगा उतनी ही जल्दी हमे भारतीय राजनीति में, अस्तित्वों के लुप्त होने के बीच, एक नई धारा दिखेगी जो भारत को, विचारधारा की कसौटी पर, आगे आने वाले समय में हमेशा के लिये बदल देगी.
हां यहां एक बात अवश्य है कि इन सबके बीच, अपने समर्थकों में से एक वर्ग से मोदी जी की दूरी बढ़ती रहेगी और शायद इसमें दोष, न मोदी जी का है और न ही उनसे मोह भंगित उनके समर्थकों का है.
दरअसल, मोदी जी जहां 10 वर्ष की समयसारणी लिए हुये, अपनी परिकल्पना के भारत के लिए काम कर रहे है, वहीं उनके आलोचक हुए समर्थकों के पास देने के लिए न समय है और न ही लोकतांत्रिक परिधि में इसकी कोई कार्य योजना है.
अंत में मैं यही कहूंगा कि एक बात हम लोगो को अच्छी तरह समझ लेना चाहिये कि मोदी जी से गलतियां भी होंगी और उनको असफलताएं भी हाथ लगेंगी लेकिन परिणाम वही होगा, जिसकी परिकल्पना मोदी जी ने कर रक्खी है.