16 दिसम्बर 2012- दिल्ली मे उस रात निर्भया पर जिस आरोपी ने सबसे अधिक जुल्म ढाये थे उस नाबालिग आरोपी का नाम मो.अफरोज था… इसी नाबालिग आरोपी ने पीड़ित लड़की को आवाज देकर बस मे बुलाया था और बाद मे अपने पांच साथियो को अपराध करने के लिये उकसाया… संघर्ष के दौरान लोहे की जंग लगी रॉड से उसपर हमला किया और उसकी आंते फाड़ दी… गहन चिकित्सा के बाद सिंगापुर मे इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गयी….
अपराध करते समय उसकी आयु 17 वर्ष और 6 माह थी… अत: उसे बाल सुधारगृह मे रखा गया जहां से 3 साल बाद उसे 10 हजार रूपये और एक सिलाई मशीन देकर छोड़ दिया गया… किंतु समाज की कड़ी प्रतिक्रिया और गुस्से के कारण उसकी रिहाई टाल दी गयी… उसको सुधारगृह मे सुधारने की प्रक्रिया आज भी चल रही है…!!!
18 मई 2009- श्रीलंका मे जारी सेना और लिट्टे के बीच युद्ध के दौरान एक बारह साल का लड़का श्रीलंका सेना के हाथ लग गया… सेना को शंका हुई कि यह लिट्टे प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण का बेटा है… पर वे पूरी तरह आश्वस्त नही थे… अत: उसे रेत से भरे बेग के बंकर मे रखा गया… जहां उसे बिस्किट और नाश्ता दिया गया…
पर जैसे ही यह पता चला कि वह प्रभाकरण का बेटा बालचद्रंन है उसे पास से पांच गोली मारकर खत्म कर दिया गया… बालचद्रंन पूरी तरह निर्दोष था… उसका इस युद्ध से कोई लेना देना नही था… शायद उसे युद्ध का मतलब भी न पता हो…
पर जब दुश्मन को जड़ से मिटाने की बात आती है तो इस तरह के क्रूर निर्णय युद्ध के दौरान लेने पड़ते है… यद्यपि यह पूरी तरह अमानवीय घटना थी… और इसका किसी भी तरह से समर्थन नहीं किया जा सकता… किंतु श्रीलंका सेना ने युद्ध मे निर्णायक बढ़त बनाने के लिये इस घटना को अंजाम दिया… सारी दुनिया, संयुक्त राष्ट्र, भारत के तमिल, डीएमके, एआईडीएमके विरोध करते रहे… पर श्रीलंका की सेना नहीं रुकी…
लिट्टे का पूरी तरह खात्मा करने के बाद ही उसने अपना अभियान रोका… श्रीलंका आज पूरी तरह लिट्टे से मुक्त हो चुका है…
युद्ध के दौरान श्रीलंका सेना ने शत्रु के लिये एक शब्द का ही इस्तेमाल किया… “लिट्टे के आतंकवादी”….. और आतंकवादियों से कैसे निपटा जाता है वैसे ही निपटा गया…
अब भारत सरकार और उसके नीति नियंताओं के अपने शत्रुओं को लेकर चयन किये गये शब्दो को देखिये….
#कश्मीर_मे_भटके_हुऐ_नौजवान
#बस्तर_में_मासूम_शोषित_आदिवासी
#जेएनयू_मे_विचार_अभिव्यक्ति_की_आजादी
#पाकिस्तान_मोस्ट_फेवर्ड_नेशन
निर्भया कांड का आरोपी और उसको कानून द्वारा दिया गया दंड(?) या सुधरने का मौका प्रतीक है कि भारत अपने शत्रुओ से कैसे निपटता है…
भटके हुऐ नौजवान/मासूम आदिवासी/विचार अभिव्यक्तिकी आजादी/मोस्ट फेवर्ड नेशन…. इन भारी भरकम शब्दों का उपयोग बताता है कि भारत सरकार अपने शत्रुओं को लेकर कितनी भ्रमित है…
उसके पास न तो अपने शत्रुओं को लेकर उसकी कोई ठोस रणनीति है न ही कोई योजना… जो देश या सरकार अपने शत्रु को शत्रु तक खुलकर न कह पा रही हो… वह उन पर क्या कार्यवाई करेगी…
सख्त और ठोस कार्यवाई की जगह हम राष्ट्रविरोधियो, आतंकियो, नक्सलियों को हम अफरोज की तरह सुधारने मे लगे है… जब तक भारत सरकार और हम इन नरपिशाचों को अफरोज की तरह सुधारने की कोशिश करेगें… तब तक देश के नागरिकों को सुकमा जैसे हत्याकांड और कश्मीर मे सैनिको के पिटने, लात घूंसे खाने जैसी घटनाओ को देखने और झेलने के लिये हमेशा तैयार/अभ्यस्त रहना चाहिये…
ये नरपिशाच सुधारगृह से नहीं सुधरने वाले… युद्ध के मैदान मे इनका समूल वध और सफाया ही इस समस्या को खत्म करने का एकमात्र उपाय है… अफरोज वाली मानसिकता से बाहर निकलिये… हथियार उठाइये… टूट पड़िये शत्रु पर… खत्म कर दीजिये…. पर हमारी सरकार शायद ‘अफरोज’ वाली मानसिकता से बाहर निकालना ही नही चाहती….!!!
#बुद्ध_नहीं_युद्ध_से
इस तरह के मसले सुलझते है
एक बौद्ध राष्ट्र श्रीलंका ने इस बात की शिक्षा पूरी दुनिया को दी है…