पिंजरे के पंछी रेssssss, तेरा दर्द न जाने कोय…

यह लेख लिखते समय, खुद पर बहुत कंट्रोल कर रहा हूँ कि कहीं गाली न लिख डालूँ. कुछ बातें समझने जैसी हैं.

मुझे कई लोग मिले जिनको गुस्सा है कि सीटें मिलने के बाद भी भाजपा कुछ कर नहीं रही है. गुस्सा मुझे भी है कि भाजपा कुछ कर नहीं पा रही है.

वाम और कांग्रेस ने किस तरह बेड़ियाँ डाल रखी हैं यह एक छोटे से उदाहरण से समझते हैं. धैर्य से पढ़ें.

मुझे कुछ लोगों ने कहा कि अवैध संपत्ति के मामलों की जांच करवा दें, चार पांच शीर्षस्थ लोगों को मिसाल बना दें, बाकी सब लाइन में आ जायेंगे. कांग्रेस तो यही करती थी.

आखिरी लाइन सही है, कांग्रेस तो यही करती थी. समझते हैं कैसे आसानी से कर पाती थी और ये कैसे नहीं कर पाते.

पूरा तंत्र कांग्रेस के हाथ में था, हर शाख पर उसके ही लोग बिठाए हैं, कोई भी मामला हो, अनुमति मिलनी ही थी.

इस वाक्य पर गौर कीजिये – अनुमति मिलनी ही थी.

किसकी अनुमति? तो भईया ऐसन बा कि अगर आप को किसी की जांच करनी है तो उसके ऊपरी की अनुमति की आवश्यकता है. कहने को तो अपनी जगह बहुत ही सही कदम है कि किसी का दुष्टबुद्धि से उत्पीड़न न हो इसलिए यह बहुत सही बात है.

आप को एक वाक्य स्मरण होगा, जिसे मैं अक्सर लिखते रहता हूँ – कागजी अच्छाइयां और जमीनी सच्चाइयाँ – उम्मीद है बाकी समझाना नहीं पडेगा.

ये कहिये कि किसी की जांच कराने के लिए जिसकी अनुमति चाहिए, वहां उसका मौसेरा या फुफेरा भाई बैठा दिया होने की पूरी संभावना है. मिल गई अनुमति आप को!

इस बिरादरी का भ्रातृभाव बहुत होता है और भाई बहनों की संतानों को भी इसी नेटवर्क में सेट करके भ्रातृभाव और शक्ति का संवर्धन किया जाता है ताकि राजनेताओं के सामने भी वे अजेय रह सकें.

सरकार के पास बहुत ताकत है लेकिन सवाल यह है कि क्या वो ताकत सरकार के इरादों के साथ है या खिलाफ?

अपने ही कानूनी बंधनों के विरोध में सरकार तब ही जा सकती है जब आपातकाल घोषित हो. नहीं तो समय लगेगा अपने आदमी भरने में, और उससे भी अधिक ऊर्जा खर्च होगी उन्हें इस सिस्टम से बचाने में. वैसे तो कई रवि असमय अस्त हो ही जाते हैं.

कुल मिलाकर एक नियम पर चलनेवाली सरकार से “स्वच्छ भारत” होगा या नहीं ये अलग सवाल है लेकिन स्वच्छ सिस्टम कम समय में असंभव है. सफाई और सफाया अलग अलग बातें हैं. नियमों के बाहर की बात मुझे नहीं करनी, वो कानूनन अपराध है.

इतनी सारी बातों के कारण, खून खौलता तो है लेकिन फिर भी, in all fairness, मोदी जी या राजनाथ जी की कड़ी निंदा करने को मन नहीं होता. पद शक्ति है तो वही पद उससे भी शक्तिमान एक पिंजरा भी है.

पिंजरे के पंछी रेssssss, तेरा दर्द न जाने कोय… गाना याद है?

ये लेख हालांकि इतना लंबा नहीं, लेकिन समय बहुत लिया लिखने में. गालियाँ फूट रही थी, खुद को रोकना पड़ा, कुछ डिलीट भी करनी पड़ी हैं.

सोचिये, महज़ एक तीन-चार सौ शब्दों की पोस्ट लिखने में इतना खुद को कंट्रोल करना पड़ा है, जो गालियाँ सुनते जा रहे हैं, उनको क्या करना पड़ रहा होगा?

बाकी होइहे सोइ जो राम रचि रखा…

Comments

comments

LEAVE A REPLY