एक तरफ भारत सरकार ‘घर-घर शौचालय’ होने के अभियान में जुटी हैं, दूसरी तरफ भारतीय रेल (ट्रेन) पर शौचालयों की संख्या सबसे कम है.
सामान्यतः एसी और स्लीपर क्लास के आरक्षित बोगी में यात्रियों की संख्या सीट के हिसाब से 72 होती है, ऐसा जनरल बोगी में भी होती है.
ऐसे प्रत्येक बोगी में दोनों तरफ दो-दो मिल चार शौचालय होते हैं. एसी और स्लीपर क्लास की बोगी में 18 यात्री पर एक शौचालय है, जो एक घर या परिवार के लिहाज से भी अत्यल्प है, वहीं आजकल के भीड़ को देखते हुए जनरल बोगी में यात्रियों की संख्या सीट की संख्या से 5 गुनी से अधिक होती है, यानी 400 यात्रियों की भीड़ तो एक जनरल बोगी में अवश्य रहती है.
अब बताइये, प्रति 100 ट्रेन-यात्रियों पर मात्र एक शौचालय का पड़ना, कहीं से भी न तो मानविकी लिए है, न ही यह भारत सरकार के अभियान के सफलता का परिचायक ही है.
ऐसे में ट्रेन के शौचालय का गंदा होना लाजिमी है तथा इन शौचालयों में भारतीय ढंग के कमोड नहीं होने से, तेज रफ़्तार के कड़े नल और उनमें दो-चार स्टेशन बाद ही जल ख़त्म हो जाने से, फिर एतदर्थ पानी के डिब्बे और साबुन-जैसे कुछ भी नहीं रहने से इनकी गन्दगी और बढ़ जाती है.
आशा है टिकट लेकर यात्रा करने वालों के लिए रेल मंत्रालय ट्रेन पर शौचालय की संख्या बढ़ाने पर अवश्य विचार करेंगे.