युद्धं देहि : समूल नाश, निर्वंश करने तक उच्छेदन

इस देश में हमें कई झूठ बचपन से पढ़ाए जाते हैं. इनमें पहला झूठ गंगा-जमनी तहज़ीब का है. कोई भी विकसित देश अपने इतिहास से खुद को बावस्ता रखता है, पर अहमकों का देश हिंदुस्तान अपने इतिहास पर मिट्टी इसलिए पोत देता है कि मोहम्मडन की भावनाएं आहत न हों.

खैर, यह अवांतर प्रसंग है, इस पर अलग से चर्चा. झूठ नंबर दो यह है कि नक्सली तो दरअसल गांव के रूठे लोग हैं, जिन्होंने शासन के शोषण से तंग आकर हथियार उठा लिए हैं.

नक्सली अगर कुछ भी हैं, तो Cold-blooded हत्यारे हैं. माओवादी कुछ भी हैं, तो बलात्कारी, शोषक और हत्यारे हैं. माओवादियों को किसी भी तरह का समर्थन देनेवाले यूनिवर्सिटी या शहरों के छिपे हुए मास्टर-प्रोफेसर या कजरी जैसे एनजीओआइट, ये दरअसल एक नंबर के बेहया और दोगले हैं.

आज एमसीडी की जीत में नाचनेवाले दरअसल, बहुत क्यूट और मोदी बाबा के दुश्मन नंबर एक हैं. अरे राष्ट्रवादी शेर-चीतों, लकड़बग्घों, पीएम पद की गरिमा को तुम क्यों कम कर रहे हो? कजरी एंड गैंग तो यही चाहता ही है. अब नगरपालिका चुनाव को मोदी से जोड़कर तुम क्या चाह रहे हो, तुम ही जानो…

अत्याचार हुए हैं, ज़मीनें हड़पी गयी हैं, लेकिन माओवादियों-नक्सलियों ने उनसे ज्यादा अत्याचार आदिवासियों-ग्रामीणों पर किया है.

राज्य के खिलाफ युद्ध है यह. उपाय केवल एक ही है- समूल नाश, निर्वंश करने तक उच्छेदन.

माओवादी चाहे स्कूल, कॉलेज, चैनल, शहर, गांव कहीं भी हों- उन्हें निकालो और खत्म कर दो.

कुश को उखाड़ने से बात नहीं बनेगी, उसकी जड़ में मट्ठा डालना ही होगा.
नक्सलियों ने युद्ध मांगा है, तो युद्ध दो.

युद्धं देहि.

1 के बदले कम से कम 100….

बाकी पॉलिटिक्स-फॉलिटिक्स चलती रहेगी…..

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