तमिलनाडु किसानों का आंदोलन या राजनीतिक षडयंत्र

हम भारतीय भावनात्मक बहुत कमज़ोर होते हैं, हमसे किसी के भी आँखों में आँसू देखे नही जाते. रोते हुए इंसान को देखकर हम यह भी नहीं जानना चाहते कि वह इंसान वास्तव में दुखी है या इन घड़ियाली आँसुओं के पीछे कोई बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा है.

ऐसे ही आँसुओं का महाबवंडर तमिलनाडु के किसानों के रूप में पिछले दिनों दिल्ली के जंतर मंतर पर आ गया था, जिसे समझाने की कोशिश ही नहीं हुई कि वास्तव में ये दुःख के आंसू हैं या कोई षड़यंत्र!

आजकल हमारे देश में किसान और जवान दो ऐसे ब्रह्मास्त्र बन चुके हैं कि इन दो के नाम पर कुछ भी कर लो आपको सहानुभूति तो मिलेगी ही साथ में हर तरह के नाजायज और जायज़ का फर्क भी मिट जायेगा.

2014 के लोकसभा चुनावों में बँगाल और तमिलनाडु ऐसे दो बड़े राज्य थे जिनमें मोदी लहर का बहुत ज़्यादा प्रभाव दिखायी नहीं दिया लेक़िन अम्मा जयललिता के जेल जाने के बाद तमिलनाडु क़ी राजनीति में नया भूचाल आया जिसमें अम्मा और करूणानिधि दोनों की पार्टियों में एक बिखराव हुआ.

बाक़ी अम्मा के देहांत के बाद तो तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टियाँ एकदम बिखर गयीं, शशिकला और पनीरसेल्वम दोनों के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ने तमिलनाडु क़ो गर्त में ले जाने का काम किया, वहीं तमिलनाडु पर पूर्व मुख्यमंत्री करूणानिधि की पार्टी का प्रभाव भी बहुत कम हो चुका था.

तब क्षेत्रीय पार्टियों को अपनी साख बचाने और मोदीजी के वर्चस्व को तमिलनाडु में कम करने के लिए एक षड्यंत्र के रूप में किसानों का उपयोग कर मासूम जनता को भ्रमित किया जाना लाज़मी था.

लेकिन अब यहाँ मुद्दा किसानों के आंदोलन का नहीं रहा, अब मुद्दा उस आन्दोलन के पीछे छुपे हुए षड़यंत्र का है क्योंकि इन किसानों को लगभग 40 दिन हो गए आंदोलन करते हुए जिसमें केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों जैसे कृषिमंत्री राधा मोहन सिंह और नितिन गडकरी ने इन किसानों से मुलाकात की और इन्हें आश्वासन भी दिया लेकिन ये किसान नहीं मानें.

इस आंदोलन में षडयंत्र की गुंजाइश इसलिये भी है क्योंकि यहाँ सारे आंदोलनकारी चाहे महिला हो या पुरुष, एक ही ड्रेस कोड में हैं, जैसे किसी सँस्था के वर्कर किसी हड़ताल पर आये हों, किसानों का आंदोलन एक ही ड्रेस कोड में ऐसा पहले कभी नही हुआ. जो किसान एक-एक दाने को मोहताज़ हों वो एक ही ड्रेसकोड में आंदोलन कर रहे हैं.

जबकि किसानों के कर्ज़े माफी का सच कुछ इस तरह था कि जयललिता ने भी हर नेता की तरह विधान सभा चुनावों में किसानों के क़र्ज़ माफ़ी का वादा किया था और सरकार बनने के बाद इस पर कुछ काम भी किया.

ग्रामीण बैंक और स्टेट कॉर्पोरेटिव बैंकों के कर्ज़े माफ भी किये जा चुके हैं और सूखा ग्रस्त इलाकों के लिए केन्द्र सरकार राज्य सरकार को लगभग 1700 करोड़ रुपये भी दे चुकी है.

अब राज्य सरकार इसका किस तरह उपयोग या दुरुपयोग कर रही है इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. यह भी सर्व विदित है कि कोई भी केंद्र सरकार राज्य सरकार के कर्ज़ माफी वाले मामलों में ज़्यादा हस्तक्षेप नहीं करती है.

अब इन क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों का बिखराव, वहीँ तमिलनाडु में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बढ़ता वर्चस्व और तमिलनाडु फ़िल्म जगत के कहे जाने वाले भगवान रजनीकांत की पिछले कुछ समय में मोदी के साथ कई मीटिंग होना और बीजेपी के साथ नजदीकियां, विपक्षी दलों को कहाँ गवारा होने वाली थी.

इसलिए ख़ुद तमिलनाडु सरकार ने दिल्ली में बैठे हुए वामपंथी षड्यंत्रकारियों के सानिध्य में किसानों को आंदोलन के लिए प्रेरित किया और जिसमें किसानों को मुद्दा कर्ज़ माफी के साथ-साथ तमिलनाडु और कर्णाटक का अहम मुद्दा जो सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है “कावेरी वाटर मैनेजमेंट” को उछाला.

अब चूँकि आने वाले वर्षों में कर्णाटक में चुनाव है और काँग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जी के गत वर्षों के कार्य क़ो देखकर कर्नाटक में बीजेपी को सरकार में आने के लगभग शत प्रतिशत चान्स हैं.

वहीँ तमिलनाडु में रजनीकांत का बीजेपी में शामिल होना लगभग तय हो चुका है और आने वाले समय में इसकी औपचारिक तौर पर घोषणा भी हो सकती है, और यदि रजनीकांत बीजेपी में आते हैं तो तमिलनाडु में भी बीजेपी मुख्य पार्टी बनकर उभरेगी.

यह समीकरण तमिलनाडु में अन्य राज्यों की तरह ही क्षेत्रीय पार्टियों के ताबूत की अंतिम कील साबित हो सकती है, तब मोदीजी को रोकने और बीजेपी की छवि को बिगाड़ने के लिए ऐसा कोई मुद्दा उठाना लाज़मी था.

चूँकि हम भारतीय भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर हैं, इसलिए मीडिया और वामी प्रचारकों के द्वारा “किसानों के आंदोलन” के नाम पर केंद्र सरकार के प्रति घृणात्मक रवैये को अपनाकर दोनों राज्योँ की जनता के मन में केंद्र सरकार के प्रति जहर भरा जाना कोई बड़ी बात नही है.

इसमें क्षेत्रीय पार्टियों के साथ साथ काँग्रेस और इन आंदोलनकारियों के खानपान से लेकर सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी वहन करने वाले वामपंथी षड्यंत्रकारी भी जिम्मेदार हैं.

अब भावनात्मक कमज़ोर लोग इन आँसुओं के पीछे छिपी हुई मंशा को न पहचानते हुए सारी जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डाल देंगे तथा तमिलनाडु एवं कर्नाटक में क्षेत्रीय षड्यंत्रकारी और काँग्रेसियों को सफ़ल बनाने में सारी दम लगा देँगे.

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