आजकल जब कश्मीर और धारा-370 फिर से देश में चर्चा के केंद्र में है तो ऐसे में कुछ लोग इसके लिये बाबा साहेब अम्बेडकर को कोसने में लग गये हैं कि ये 370 का अभिशाप उनकी ही देन है.
बाबासाहेब को लांछित करते हुये पोस्ट लिखे जा रहे हैं, दुर्भाग्य ये कि ऐसा उनके द्वारा किया जा रहा है जो खुद को हिंदूवादी कहतें हैं. इसलिये आज धारा 370 की पृष्ठभूमि और पूज्य बाबा साहेब की भूमिका को ठीक से समझनी आवश्यक है.
जब संविधान निर्माण हो रहा था तब जिन कुछ प्रश्नों पर विचार किया जाना था उसमें एक ये भी था कि यह देश एक कानून से संचालित हो या अलग-अलग सिविल कानूनों से?
तब बाबा साहेब ने खुल कर कहा था कि देश एक रहे, अखंड रहे इसके लिये आवश्यक है कि देश के अंदर एक ही सिविल कोड हो, अगर देश में अंदर एक कानून रहा तो देश के अंदर अलगाववादी मानसिकता पनपने की संभावना अत्यंत कम हो जायेगी.
जाहिर है बाबा साहेब के यही विचार उस कश्मीर के लिये भी थे जिसे उस वक़्त के एक बड़े नेता अपनी व्यक्तिगत जागीर समझते थे. शेख अब्दुल्ला और उस बड़े नेता की मुहब्बत के बारे में सबको पता है.
शेख अब्दुल्लाह नेहरु के पास गये और धारा 370 के रूप में अपनी अलगाववादी मांगे रखी. नेहरु ने कांग्रेस के उस समय के हर बड़े नेता को इस पर चर्चा के बुलाया और सबने एक झटके में इसे ख़ारिज कर दिया.
अब नेहरु के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो इसे संविधान में डालने की बात बाबा साहेब से कहते तो उन्होंने शेख अब्दुल्ल्ला से कहा कि आप बाबा साहेब के पास औरंगाबाद चले जाइये और उनको मना लीजिये तो आपका काम बन जायेगा.
शेख अब्दुल्ला बाबा साहेब के पास गये और उनसे अपनी मांगे रखी. उनकी मांग सुनते ही बाबा साहेब आगबबूला हो गये और अब्दुल्लाह से कहा, वाह शेख, आप कश्मीरियों को खिलाये हम, पिलाये हम, पाले-पोसे हम, किसी आपदा में मदद करने आगे आये हम और आप चाहते हैं कि उसी कश्मीर पर हमारा कोई हक़ न हो, वहां हमारे विधान न चले, वहां के भूभाग पर हमारा कोई अधिकार न हो? इस मूर्खतापूर्ण प्रस्ताव को मैं कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता.
और इतना कहकर गुस्से में बाबा साहेब अपने कक्ष से निकल गये. बाबा साहेब के मना करने के बाद नेहरु, पटेल और उनके साथियों ने जबरन दबाब डालकर इसे संविधान में स्थान दिया और आज तक देश इस अभिशाप को झेल रहा है.
बाबा साहेब का एहसान यही ख़त्म नहीं होता. जब ये धारा संविधान में थोपी गई तो बाबा साहेब कुछ नहीं पाये पर एक काम उन्होंने ऐसा कर दिया जिसके लिए देश उनका हमेशा आभारी रहेगा.
आप में से कई लोगों को यह मालूम नहीं होगा पर संविधान की ये अकेली ऐसी धारा है जिस पर पूज्य बाबा साहेब के हस्ताक्षर नहीं है और जो अस्थायी है यानि टेम्पररी है.
अगर कभी हटाना पड़े तो इसमें कोई अधिक मुश्किल नहीं होगी क्योंकि यह टेम्पररी धारा है. इसे टेम्पररी धारा बनाया बाबा साहेब ने ताकि देश की गद्दी पर जब कोई राष्ट्रवादी बैठेगा तो इसे एक झटके में ख़त्म कर देगा.
आज जिस एक भारत श्रेष्ठ भारत की बाद नरेंद्र मोदी करते हैं वो बाबा साहेब का स्वप्न था. इस देश में एक निशान, एक विधान ये नारा भले ही श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने दिया हो पर इसका स्वपन बाबा साहब का था.
अपने प्रधानमंत्री का विरोध करते हुए इस विभाजनकारी धारा का विरोध करना कोई आसन काम नहीं था और फिर स्वप्न द्रष्टा ऐसे कि इसे अस्थाई रखकर इसके अंत का रास्ता भी सुझाकर गये हैं.
बाबा साहेब के भारत और हिन्दू धर्म के लिये जितने एहसान है उसका बदला पूरी हिन्दू जाति मिलकर हजारों सालों में भी नहीं चुका सकती. सामजिक समरसता, राष्ट्रीय एकात्मता तथा अखंड और अक्षुण्ण भारत के ऐसे प्रहरी की चरणधूलि माथे से लगा लीजिये ताकि उनके खिलाफ आपके द्वारा उगले गये विष के पाप का कुछ तो परिमार्जन हो.