लोक व्यवहार : अहमियत चाहिए तो अहमियत देना भी सीखिए

2014 में मैं एक प्रतिष्ठित फाइनेंस कम्पनी में काम करता था. उस दिन मुझे एक नए कस्टमर को एक कमर्शियल गाड़ी फाइनेंस करने के लिए उसके घर जाना था. उसे टाटा की xenon मालवाहक गाड़ी लेनी थी.

कस्टमर ने मुझे दोपहर का समय दिया था ताकि मैं उससे मिलकर उसे फाइनेंस की पूरी प्रक्रिया और ब्याज दर समझा दूँ. मैंने फाइनेंस से जुड़े सारे पेपर लिए और कस्टमर के यहाँ पहुच गया. वो उस समय अपनी दूकान में ही था.

मैं जैसे ही वहां पहुंचा तो देखा कि एक दूसरी कम्पनी का फिनान्सर वहां पहले से बैठा है और कस्टमर से एग्रीमेंट साइन करा रहा है. असल में ये दूसरी कम्पनी का बन्दा पिछली कम्पनी में मेरा सहकर्मी था. हम दोनों साथ में काम करते थे लेकिन मैंने कम्पनी बदल दी सो अब ये मेरा प्रतिद्वंदी है.

खैर कस्टमर के यहाँ जब पंहुचा तो कस्टमर ने दूसरी फाइनेंस कम्पनी में अपनी फाइल दे दी थी. अब चूंकि मैं उन दोनों के बीच पहुँच गया था तो औपचारिकता में एक दूसरे का हालचाल लिया. मेरे पूर्व कलीग ने मेरा हालचाल लिया और जल्दी-जल्दी फाइल अपने बैग में डाली और तुरंत वहां से निकल लिया. अब वहां बचे सिर्फ मैं और वो गाड़ी लेने वाला कस्टमर.

अब मेरे पास उस कस्टमर को वापस अपनी कम्पनी से फाइनेंस कराने के सिर्फ दो रास्ते थे. या तो मैं तुरंत कस्टमर पर दबाव डालता कि, सर आपने पहले मुझसे बात की थी सो आप मुझसे ही फाइनेंस करवाइए और आपको कराना ही होगा.

दूसरा रास्ता ये भी था कि मैं उसे ये भी कह सकता था कि आपने जिस कम्पनी में फाइल दी है, मैं उसमें काम कर चुका हूँ. वो बहुत लेट लतीफ़ सर्विस देती है. आपका लोन बीच में ही लटक जाएगा और जिस लड़के को आपने फाइल दी है वो बेकार और कामचोर है क्योंकि मैं उसके साथ काम कर चुका हूँ.

कुल मिलाकर ये सारे हथकंडे होते है कस्टमर को अपने पक्ष में करने के लिए लेकिन अगर मैं इनमें से कोई भी नुस्खा आजमाता तो कस्टमर के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता?

पहली बात तो ये होती कि कस्टमर मुझे एक नकारात्मक स्वाभाव का इंसान समझता, जो पीठ पीछे अपने प्रतिद्वंदी की बुराई करता है. दूसरा प्रभाव ये पड़ता कि मै एक ऐसे इंसान के रूप में उसके सामने आता जो अपने पिछली कम्पनी की बुराई करता है. ऐसे लोगों को मार्केट में गिरी हुई नज़र से देखा जाता है.

एक और रास्ता हो सकता था कि मैं उसके सामने गिड़गिड़ाने लगता और विशुद्ध सेल्स वाली भाषा में बोलता कि भईया, फाइनेंस करवा लो नहीं तो मेरी नौकरी चली जाएगी. लेकिन ये वाक्य मेरे आत्मसम्मान को छिन्न भिन्न कर देता.

यकीन मानिये मैंने इनमे से कोई भी रास्ता नहीं चुना और सेल्स के सामान्य से नियम “मैं कुछ बेचने नहीं आया बल्कि दिखाने आया हूँ” पर काम किया.

मैंने सबसे पहले अपने उस कस्टमर को सर के बजाये भईया कह कर शुरुवात की. भईया मुंबई में भले ही एक अपमानजनक शब्द हो लेकिन हमारे पूर्वांचल में ये संबंधों को जोड़ने में कड़ी का काम करता है.

कस्टमर ने मुझसे कहा कि विराट जी, इस बार दूसरी कम्पनी से लोन मैंने करा लिया है लेकिन अगली बार आपसे ही करवाऊंगा.

मैंने निश्चिंत भाव और शालीनता के साथ जवाब दिया कि छोडिये भईया, फाइनेंस की बात. जो बीत गयी सो बात गयी. अरे आपको जिससे अच्छा लगा आपने लोन करवा लिया. जरुरी थोड़े है कि हर बार काम से ही मिला जाए. आज आपसे मिलने की इच्छा हुई तो चले आये.

इसके बाद कस्टमर मुझसे खुल गया. तुरंत बाहर चाय वाले को आवाज दी कि एक चाय लेकर आओ. इसके बाद मैंने उसके धंधे के बारे में पूछना शुरू किया…. कैसे ये सीमेंट की डिस्ट्रीब्यूटरशिप आपको मिली?.. कैसे आप काम करते है? सप्लाई कहाँ और कैसे करते हैं …..???

मैंने देखा और गौर किया कि कस्टमर मेरे सवालों को उत्सुकता के साथ सुन रहा है… यानी मैंने उसकी मन पसंद बात पूछी. इसके बाद वो खुद बताने लगा कि उसने अपना ये धंधा कितनी मुसीबतों को झेलते हुए शुरू किया था.

उसकी बातों से ऐसा लग रहा था जैसे उसके संघर्ष में उसके परिवार वाले भी उसके साथ नहीं थे. मैंने उसके जलते पर हाथ रखते हुए पूछा कि भईया क्या परिवार में किसी ने साथ नहीं दिया?…

इसके बाद तो वो फूट पड़ा… किसी ने साथ नहीं दिया भईया, सब हमने खुद किया है… आपको पता नहीं कितनी मुसीबत हमने झेली है…

इसके बाद करीब डेढ़ घंटे हम दोनों की बातें होती रहीं… इस दौरान मैंने एक बार भी उससे फाइनेंस की बात नहीं की… इन डेढ़ घंटों में मुझे ये बात बात समझ में आई कि वो इंसान जो मेरा कस्टमर था उससे सभी लोग सिर्फ अपने काम की बात करते हैं… लेकिन उसके काम की तारीफ कोई नहीं करता….

मैंने उसे बताया कि मैं उसके मैनेजमेंट और तरक्की के इस सफ़र से बेहद प्रभावित हूँ. मैंने उसे ये भी बताया कि मैं भी एक बिजनेस शुरू करना चाहता हूँ और अगर भविष्य में आपसे सलाह मशवरा की जरुरत पड़ी तो जरुर आऊंगा…

कस्टमर अपनी उपलब्धि और मेहनत की तारीफ सुन कर उत्साहित प्रतीत हो रहा था… याद रखिये तारीफ़ और चापलूसी में अंतर होता है… हमेशा सच्ची तारीफ करें… इसके बाद मैं उस बात पर आया जिसके लिए मैंने इतना समय उसके यहाँ दिया था…

मैंने उसे बताया कि आप जिस कम्पनी से फाइनेंस करा रहे हैं वो बहुत अच्छी कम्पनी है… लेकिन मेरी कम्पनी आपको बहुत सारी सुविधा दे रही है… अगर आप चाहें तो मैं आपको अपनी स्कीम के बारे में बता सकता हूँ.

वो मान गया… मैंने महज़ 10 मिनट में उसे अपनी कम्पनी की सारी स्कीम समझा दी… वो मेरी स्कीम से प्रभावित था. मैंने उसे सामने वाली कम्पनी की बुराइयां बताने के बजाये अपनी कपंनी की सुविधाए गिनाई. इसके बाद मैंने उससे विदा ली और ऑफिस आ गया.

करीब 2 दिनों बाद उसका यानी कस्टमर का फोन आया और उसने मुझसे कहा कि विराट जी मुझे लगता है कि आपकी कमपनी से लोन करवाने में मुझे लाभ होगा. मैंने उस कम्पनी से अपने पेपर वापस मांगवा लिए है. आप कल आकर मेरा लोन फाइनल कर दीजिए.

अगले दिन मैंने जाकर उस कस्टमर का लोन कर दिया और मेरे टारगेट में 5 लाख और एड हो गए.

अब मुद्दे पर आते हैं… मुझे ये डील नहीं मिली थी, दूसरी कम्पनी को मिली थी… मैं चाहता तो दूसरी कम्पनी की बुराई कर के भी कस्टमर से अपनी बात मनवाने की कोशिश कर सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया.

सेल्स के नियम और लोक व्यवहार को समझिये… आप जब भी अपना उत्पाद बेचने की बात करेंगे लोग आपसे चिढेंगे और दूर होंगे… लोगों को बताइए कि आप अपना प्रोडक्ट बेचने नहीं बल्कि दिखाने आये हैं… आपको अच्छा लगे तो ठीक नहीं तो मना कर दीजियेगा…

जब तक आप लोगों को अहमियत नहीं देंगे उन्हें नहीं सुनेंगे, तब तक लोग भी आपको अहमियत नहीं देंगे. मैंने अपने कस्टमर के काम, उसके अनुभव और उसके संघर्ष की तारीफ की… इसमें चापलूसी का भाव नहीं होना चाहिए.

जब मैंने उससे कहा कि आपसे मैं जरुर राय लूँगा जब खुद का बिजनेस शुरू करूँगा… तब मैंने उसकी आँखों में चमक देखी… इसका मतलब मैंने उसके व्यक्तित्व और अनुभव को पूरा सम्मान दिया.

जब मैंने उसकी सक्सेस स्टोरी सुननी चाही तो उसने विस्तार से अपने शून्य से शिखर तक पहुँचने की पूरी कहानी बतायी. इससे ये मुझे लगा कि कोई भी उससे उसके संघर्ष के बारे में नहीं पूछता… लेकिन मैंने इसके बारे में उससे पूछ कर अपने लिए उसके मन में अपनी जगह बना ली और हाथ से चली जाने वाली डील भी वापस मेरे हाथ में आ गयी.

मैंने सेल्स और लोक व्यवहार की ये गूढ़ बातें अमेरिकी लेखक डेल कार्नेगी की लिखी पुस्तक HOW TO WIN FRIENDS AND INFLUNCE PEOPLE से सीखी. ये पुस्तक पहली बार तीस के दशक में दुनिया के सामने आई थी और अब तक इसकी करीब 1 करोड़ से ज्यादा प्रतियाँ बिक चुकी हैं.

लोगों से कैसे पेश आएं… अपनी बातें कैसे बिना झगड़े के मनवाए… डेल कार्नेगी ने सरल और जीवंत उदाहरण के जरिये दुनिया को समझाया है.

मैंने पहली बार इस पुस्तक के बारे में लाल कृष्ण आडवानी की आत्मकथा MY COUNTRY MY LIFE में पढ़ा. आडवानी जी ने बताया कि कैसे इस पुस्तक ने मेरी जिन्दगी बदल दी.

हर सामाजिक इंसान और पब्लिक रिलेशन में रहने और काम करने वाले को मैं इस पुस्तक को पढ़ने की राय दूंगा… हिंदी में ये ‘लोक व्यवहार’ के नाम से प्रसिद्ध है.

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