कुछ अहम् जानकारी से शुरुआत करते हैं. आप को यह पता होगा कि नमाजों के समय फिक्स होते हैं और आप के यहाँ के समय आप को नेट पर मिल जायेंगे. उस वक़्त नमाज शुरू होगी और तय वक़्त में ख़त्म भी होगी.
[शोर जिहाद : कॉलोनियां खाली कराने वाला अजानास्त्र, भाग-1]
[शोर जिहाद : कितने घर बदलेंगे आप, कितने लोन लेंगे, भाग-2]
आप को यह भी पता होगा कि नमाज के पहले वुजू – वजू की जाती है याने हाथ और पाँव निश्चित पद्धति से धोये जाते हैं जिसके लिए हर मस्जिद में पानी की पर्याप्त व्यवस्था होती है. आप घर से हाथ-पाँव धो कर आये तो मान्य नहीं, वहां हाथ पाँव धोने ही होंगे.
मतलब, आदमी आयेगा, जूते उतारेगा, वजू करेगा और अन्य नमाजियों के बीच उपलब्ध स्थान ग्रहण करेगा. और एक बात ध्यान रखिये, मुसलमान इन सब बातों में रिवाज के पक्के होते हैं, हाथ-पाँव बिलकुल सही तरीके से ही धोये जायेंगे, कोई शॉर्ट कट नहीं.
बाहर से डायरेक्ट आये आदमी को कुछ और भी साफ़ करना जरुरी है तो वो भी व्यवस्था होगी, नमाज के बीच कोई व्यवधान मान्य नहीं होता और ना ही आप को बीच नमाज में प्रेशर आया तो उठना है इसलिए पहले से ही फ्री होना आवश्यक होता है. नमाजी अपने हिसाब से टाइम का गणित बिठाता है क्योंकि नमाज वक़्त पर ही शुरू होती है, किसी के लिए रोका नहीं जाती.
यह सब क्यों बता रहा हूँ समझिये. अज़ान का समय अपनी घडी में मार्क कीजिये, नमाज का समय चार्ट में देखिये. कितनी गैप है दोनों के बीच में? क्या यह सब कार्यक्रम निपटा कर आदमी के पास समय बचता है? जहाँ से भी हो, मस्जिद तक आने का भी समय तो लगेगा ही. क्या वो समय जोड़ा गया है ? आराम से जाएगा, दौड़ता-हांफता नहीं जाएगा. क्या उतना समय होता है?
याने अगर बन्दे नमाज के पक्के हैं तो इन सब चीजों के लिए पर्याप्त समय दे कर ही पहले से मौजूद होंगे. फिर अज़ान किनके लिए इतने कानफाडू जोर से दिया जाता है? या सूरह 9 आयत 120 वाला ही मामला है – काफिरों के दिल दुखाने वाले काम करने से आप के नाम पर एक सुकर्म लिखा जाएगा?
और एक बात. लाउड स्पीकर का दायरा कहाँ तक है? जकात का रजिस्टर देखिये, उस मस्जिद में जो भी नमाज़ पढ़ सकते हैं उनके नाम होंगे, पता भी होगा. कितने लोग लाउड स्पीकर के रेंज के अन्दर हैं?
अगर इस मस्जिद की अज़ान की डेसीबेल लेवल लिमिट से ज्यादा है और जहाँ उसके जकातियों के रहने का दायरा ख़त्म होता है और उसके बाहर भी अज़ान जोर से आप की नींद तोड़ रही है तो आप के साथ शोर जिहाद हो रहा है यह बात पक्की है.
यह नमाज का बुलावा नहीं बल्कि अजानास्त्र है. सूरह 13 आयत 41 के मुताबिक़ आप के चारों ओर से जमीन घटा दी जा रही है और आप समझ नहीं रहे हैं. सायकोलॉजिकल वॉर का एक प्रभावशाली अस्त्र है – अजानास्त्र, जो केवल अपने उपस्थित होते ही आप की प्रॉपर्टी के रेट धडाम से गिराना शुरू कर देता है.
आप को पता है कि पुलिस कम्प्लेंट नहीं लेंगी तो क्या करेंगे? कहाँ तक घर बदलते भागेंगे? संगठित होइए, एक हो कर जवाब दीजिये. बड़ा ही शांतिपूर्ण तरीका है.
सब से पहले उनका धन्यवाद कीजिये कि उन्होंने आप को हिन्दू बनाया है. पूजा के लिए भी सुबह का मुहूर्त श्रेष्ठ होता है तो आप भी पूजा कीजिये. शंखनाद कीजिये. घंटानाद कीजिये. गैलरी या खिड़की में रहकर कीजिये.
सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखने के लिए उन्हें भी आप के धार्मिक स्वतंत्रता की इज्जत रखनी ही होगी. यह पूजा विधि आप का घर बचाने के लिए है इतना पक्का ध्यान रखिये, बाकी जो है सो हैये ही है.
शंखनाद धर्मयुद्धों में होता था, युद्ध से पहले सुसज्ज योद्धा सहर्ष शंखनाद करते थे, यह बस आप के जनरल नॉलेज के लिए बता रहा हूँ.
गांधीजी के नाम पर एक वाक्य खपाया जाता है जो उन्होंने कभी कहा ही नहीं – आँख के बदले आँख फोड़ोगे तो दुनिया अंधी हो जायेगी. वैसे तो गांधीजी अक्लमंद इंसान थे, उन्होंने ऐसा कहा नहीं. यह किसी मूर्ख या वामपंथी धूर्त ने कहा होगा. क्योंकि अगर आप आँख फोड़ोगे तो आप की आँख भी फोड़ी जाने की आप को गारंटी होगी तो आप पहल करेंगे ही नहीं. मतलब आँख के बदले आँख फोड़ी जायेगी तो कोई आँख नहीं फोड़ने वाला.
स्ट्रेटेजी तो यही सही होगी कि आप कोई शिकायत न करें, सीधा सामूहिक शंखनाद आदि शुरू करें. अगर आप शिकायत का रास्ता अपनाते हैं तो वह एक सौदेबाजी का मौका उन्हें दे रहे हैं.
उनकी मांग यही होगी कि हमें आप के ______ (खाली जगह में कुछ भी आ सकता है) – से तकलीफ होती है, उसे बंद करें, फिर सोचेंगे. आप अपना कुछ खो देंगे फिर वे कहेंगे कि हमने सोचेंगे कहा था, हटाने का कोई वादा नहीं किया था.
या फिर यहाँ वे फिरके का खेल खेलेंगे कि आप से बात करने वाला कौन होता है सारे मुस्लिमों की ओर से फैसला लेनेवाला? उसपर कोई डेडली फतवा भी निकल जाएगा. करेगा कोई कुछ नहीं, वह फतवा आप को दिखाने के लिए होता है.
कुल जमा आप खोएंगे ही, पायेंगे कुछ नहीं, इसलिए बेहतर होगा कि शंखनाद-घंटानाद शुरू हो. यह आप का stand होगा आप के घर बचाने के लिए. सभी डट कर खड़े होंगे तो अपने आप सामने वालों को पीछे हठ करनी होगी, वे हमेशा आप के टूटने की ही उम्मीद करते हैं, डटकर सामना करने की नहीं.
इसके साथ साथ ही भीतरघातियों का बंदोबस्त करना होगा. ये वे लोग हैं जिन्हें अज़ान से अधिक तकलीफ शंखनाद से होगी. और ये वही लोग होंगे जो सोशल मीडिया पर रोते पाए जाते हैं कि हिन्दू एक नहीं होते. शत्रुपक्ष के उकसाने पर ये ही लोग पुलिस में शंखनाद बंद करवाने की शिकायत करने जायेंगे, बिरयानी के लिये भाईचारे के गीत गायेंगे.
और जब काटे जायेंगे तो रोयेंगे कि हिन्दू एक नहीं होते इसलिए टिक नहीं पाते. एकता की राह में खुद किस तरह से रोड़ा बने थे, इस पर ये कुछ नहीं कहेंगे, लड़ते-लड़ते आप काटे जायेंगे और ये दूसरी जगह जाकर रोयेंगे कि आप लोग एक नहीं हुए इसलिए मारे गए. जहाँ जायेंगे वहां भी भाईचारे का कोरस गायेंगे, वहां के लोगों की मानसिकता को भी कमजोर करेंगे. ये इंटरनल इन्फेक्शन हैं, यूँ समझ लो गलत समय पर आनेवाला जुलाब.
युद्ध के समय जुलाब आ जाए तो क्या लड़ेंगे आप? पहले ही पेट साफ़ कर लीजिएगा महाराज, क्या नहीं?
इसी हिसाब से शोर के बदले शोर की गारंटी हो तो शांति रहने की संभावना अधिक होती है. वैसे भी वे शांतिप्रिय कहलाते हैं, आप को भी तब शांति रखने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए.