तमिलनाडु से आये कुछ लोग किसान के क़र्ज़ माफ़ी को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. आम तौर पर जब भी कोई आंदोलन होता है तो मैं उस आन्दोलन को लेकर चौकन्ना हो जाता हूँ, उसके बारे में पता करता हूँ फिर प्रतिक्रिया देता हूँ.
दिल्ली में तमिलनाडु से आये इस आंदोलन को भी देखा, सुना और जानकारी एकत्र की. हर किसी की तरह किसान के नाम पर तुरंत आक्रोशित होकर छाती कूटन समारोह में शामिल नहीं होता हूँ. अपने कुछ मित्रों को बहुत दुःख हो रहा है और उन्होंने कुछ लिखा झल्लाते हुए तो हमने भी सोचा कि आज इस पर हम भी लिख ही दें.
इस देश में किसान और जवान अब दो ऐसे शस्त्र बन चुके हैं कि इन दो नाम पर कुछ भी कर लो, कह लो सहानुभूति भी मिलेगी और हर तरह के नाजायज और जायज़ का फर्क मिट जाता है.
मैं स्वयं किसान का पुत्र हूँ – कई वर्षों से शहर में रहता हूँ, भारत भ्रमण करता हूँ और विदेश जाता हूँ. मैं अपने गाँव भी जाता हूँ और वहां काम करता हूँ. मैने खेतों में काम किया है, ट्रेक्टर नहीं होने वाले समय जब बैलों से खेत जोता जाता था, हेंगा पट्टा से लेवलिंग होता था, कुएं से रात रात भर ढेंकुल चला के खेत सींचा जाता था, फावड़े से कोने बनाये जाते थे. सर पर रख के गोबर का खाद फेंका जाता था खेत में.
मैंने ये सब किया है, गाय-भैंस भी चराई है और गांव के प्राइमरी पाठशाला में पढ़ाई करते हुए देश के उच्च प्रतिष्ठित प्रतिष्ठानों में उच्च शिक्षा ली है… ऐसे गाँव से हूँ जहाँ लगभग हर घर का एक व्यक्ति सेना, अपने चाचा BSF में (अभी कश्मीर से ट्रांसफर होकर कच्छ में पोस्टिंग), CRPF, नेवी, कस्टम और पुलिस में हैं. इसलिए सुरक्षा बलों के कार्य स्थल की सुविधाओं और कठिनाइयों से भी भली भाँती परिचित हूँ.
ये बताने का एक ही कारण है कि अगली आने वाली लेख की लाइनें कई लोगों को शूल की तरह चुभ सकती हैं….
माफ़ कीजियेगा मित्रों हर समय डाटा और इनफार्मेशन में डूबे रहने के बाद भी आप इस मामले में गच्चा खा गए. ये जो तमिलनाडु से किसान आये हैं उनका मुखिया है अय्याकन्नू जो कि त्रिचिरापल्ली का रहने वाला है. ये पहले भारतीय किसान संघ से जुड़ा था और इनका नाम मद्रास उच्च न्यायालय में प्रोफेशनल प्रोटेस्टर के रूप में रजिस्टर्ड है.
अभी ये इस समय एक NGO से जुड़ा है. इस NGO ने इस पूरे मामले को प्रायोजित किया है. इस समय जो दिल्ली के जंतर मंतर पर बैठे हैं वो सब किसान नहीं हैं. उनमे कई वकील, डॉक्टर और NGO कर्मी शामिल हैं.
इस पूरे प्रदर्शन का ताना बाना तंजावुर में बुना गया जहाँ पूरे नाटक का 15 दिन रिहर्सल करके उसको प्रोफेशनल लोगों द्वारा संचालित होने लायक बनाया गया. इस प्रदर्शन के नाटक का सञ्चालन तंजावूर और बैंगलोर से हो रहा है.
इन्होने PMO के सामने नग्न प्रदर्शन किया. इन्होने वहां पर एक दूसरे का जनाज़ा निकालने का नाटक भी दिखाया. ये रोज रोज वहां नुक्कड़ नाटक करते हैं. इन्होने अपने शरीर पर चूहे – सांप और बिच्छू रख कर प्रदर्शन किया.
प्रदर्शन के तरीके में NGO का तरीका दीखता है. कितने किसान अपने शरीर पर सांप लिटाते हैं? … ये वही कर सकता है जो इसका प्रोफेशनल हो, कोई आम गन्ना, चावल व सब्ज़ी उगाने वाला किसान कभी नहीं करेगा. …. ये सब जंतर मंतर पर एक प्रायोजित जुटान है …
क़र्ज़ माफ़ी का सच
जयललिता ने विधान सभा चुनावों में किसानों के क़र्ज़ माफ़ी का वादा किया था. सरकार बनने पर कुछ इस पर काम किया जिससे किसानों के स्टेट कोआपरेटिव बैंक और ग्रामीण बैंक से लिए सारे कर्ज़े माफ़ किये जा चुके हैं. रह गया था राष्ट्रीय बैंक से लिए क़र्ज़ जिसके लिए तमिलाडु सरकार ने केंद्र से मदद मांगी.
तमिलनाडु सरकार को केंद्र ने 2014 – 15 में 90 करोड़, 15 – 16 में 220 करोड़ रुपये और 16 – 17 में 510 करोड़ का फण्ड अलग से माइक्रो इरीगेशन के लिए दिया. इस रकम को तमिलनाडु सरकार ने खर्च ही नहीं किया. जबकि सूखा राहत के लिए भी केंद्र लगभग 1700 करोड़ रुपये दे चुकी है.
केंद्र ने ये भी कहा कि किसानों के क़र्ज़ माफ़ी का वादा तमिलनाडु सरकार का है और इसमें केंद्र हस्तक्षेप नहीं करेगा, राज्यों को मिलने वाले फण्ड से वो खुद मैनेज करे और अपना फण्ड बनाए. केन्द्र ने कहा कि ऐसा करने से हर राज्य से ये परंपरा चल निकलेगी और ये ठीक नहीं है, इस तरह के अपने वादे राज्य खुद निबटाए.
इस सब मामले में केंद्र ने स्पष्ट रूप से अपना स्थान और जरूरत भर का मदद पहुंचा ही दिया. तमिलनाडु में अम्मा – शशिकला – पन्नीरसेल्वम नौटंकी लगभग एक वर्ष से चल रही है ऐसे में वहाँ पर सत्ता की छीनाझपटी ही चल रही है.
असल किसान या अन्य आम जनता को मदद ही नहीं पहुँच रही. फिर भी पिछले दिनों दिल्ली में कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी इन किसानों से मिलकर इनको राज्य से बात करके समाधान निकालने का आश्वासन दे चुके है और वापस अपने यहाँ जाने की गुजारिश कर चुके हैं.
आंदोलन का सच, Bangalore कनेक्शन
ये आंदोलन दिखावे के लिए क़र्ज़ माफ़ी का चल रहा है. असल में जो वहां इकठ्ठा हुए हैं वो कुछ और ही मांग कर रहे हैं जिसमे पहला है “कावेरी वाटर मैनेजमेंट बोर्ड” का गठन करना और दूसरा है MS Swaminathan committee report को लागू करना. “कावेरी वाटर मैनेजमेंट बोर्ड” का गठन पूरी तरह से राजनैतिक मामला है …. क्योंकि “कावेरी” – शब्द के साथ कोई भी कुछ भी करे या कहे तो कर्णाटक और तमिलनाडु दोनों में हुड़दंग मचना और जलना निश्चित है.
अगर केंद्र इसको छूती है तो आने वाले कर्णाटक चुनाव में इस मांग के जरिये कावेरी नाम का जिन्न भाजपा के गर्दन पर चढाने का प्लान है ये .. कोई दूसरा औचित्य ही नहीं .. क्योंकि दोनों ओर की जनता और नेता इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले तक को मानने को तैयार नहीं. MS Swaminathan committee रिपोर्ट लागू करने की मांग पहली मांग को प्रासंगिकता देने का प्रयास है.
MS Swaminathan committee report
गौर करें तो इस रिपोर्ट में वही सब है जो अभी के केंद्र सरकार के दस्तावेज़ों में पाया जाता है. आते ही मोदी सरकार ने ग्रामीण जमीन अधिग्रहण कानून लाया था जिसका सबने भारी विरोध किया, जो मीडिया तब तक इसको लेकर चिल्लाती रही जब तक कि वो आर्डिनेंस वापस नहीं ले लिया गया.
इस MS Swaminathan समिति की रिपोर्ट में गाँवों में सड़क, बिजली, पानी, नदियों को जोड़ना, खेतों के नज़दीक मंडियां बनाना, फ़ूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग पार्क बनाना, किसान क्रेडिट कार्ड को और मजबूत करना, स्कूल – कॉलेज खोलना, न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना, बीमा योजना आदि शामिल है.
नेता एक तरफ ये सब चाहते हैं, मीडिया इनके हालत पर रिपोर्ट पर रिपोर्ट और बहस पर बहस चलाती है, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए खाद्य उद्योग लगाने के लिए, कृषि उत्पाद के ढुलाई के लिए सड़क बनाने, गाँव में स्कूल कॉलेज, हस्पताल बनाने के लिए जमीन अधिग्रहण के होते ही नेता और मीडिया फिर से भड़काना शुरू कर देते हैं.
अंत में मेरा मत
लोकतंत्र के नाम पर जरूरत से ज्यादा असीम ताकत देना और अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ भी ऊलजलूल और बकवास की रिपोर्टिंग पेश करने की आज़ादी ही फिलहाल देश में हो रही इन घटिया बदमाशियों की सूत्रधार है और उत्तरदायी भी है… लोकतान्त्रिक आज़ादी के नाम पर ब्लैकमेल करना किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं करना चाहिए.