जरा याद कीजिये कितने सालों से आप शोर जिहाद के तहत अजानास्त्र के शिकार हो रहे हैं. याद कीजिये कैसे अचानक अवैध झुग्गी किसी अच्छे रेसिडेंशियल एरिया में उग आती है.
[शोर जिहाद : कॉलोनियां खाली कराने वाला अजानास्त्र, भाग-1]
याद कीजिये कैसे अचानक उस पर झंडों की हरियाली फूट निकलती है, और कहीं से बकराना शुरू हो जाता है. याद कीजिये कि झुग्गियां तो ग्राउंड लेवल की ही थी लेकिन ऊपर मुंह किये भोम्पुओं से अजानास्त्र बाजू की कॉलोनी के फ्लैट्स में दागे जा रहे थे.
शायद ही किसी ने सोचा होगा पुलिस से कम्प्लेंट करने का, पता होता है क्या जवाब मिलेगा. पुलिस को दंगे का डर, नेताओं को वोट का मोह.
शराफत का नकाब ओढ़कर अपनी कायरता को छुपाते रहे सब, पर किसी ने सोचा नहीं कि बालकनियों में खड़े हो कर शंख बजाना शुरू करें, पूजा का भी यही मुहूर्त है कह तो सकते ही हैं.
उसके बाद घंटा भी बजाएं, फिर शंखनाद से ही पूजा समाप्त करें. थोड़ा साम्प्रदायिक सौहार्द्र भाईजान लोग भी दिखायेंगे ही. न दिखायें तो समान भाषा में ही बात करने की हिम्मत रखिये, संवाद तभी शांतिपूर्ण होता है.
खैर, यह तो हुआ नहीं होगा लेकिन याद होगा कि आप खुद को असहाय, घिरे हुए मानना शुरू किये हों. फिर कहीं आप के घर की औरतों की छेड़खानी हुई हो और आप की असहायता में बढ़त ही हुई हो.
फिर आप ने घर बेच कर जाने का मन बनाया होगा तब पाया होगा कि बाकी रहे लोन से भी कम भाव मिल रहा है और खरीदने वाला कौन होगा यह भी पता है.
कुछ ही महीनों में आपकी ली हुई मौके की जगह काबिज़ हो गयी. ट्राफिक की सुविधा देखकर ली हुई जगह, ट्राफिक ब्लॉक के लिए भी काम आयेगी यह ज्ञान जरा लेट ही हुआ, क्या करे, नहीं? बिना खड्ग बिना ढाल की ये आवाज़ी हिंसा क्या काम कर जाती है, समझे आप ?
वैसे धर्मयुद्ध में शंख ही बजाये जाते थे, बस फर्क इतना होता था कि बजाने वाले योद्धा होते थे और युद्ध के लिए सुसज्ज होते थे. अब जरा ये बताएं, कितने घर बदलेंगे आप, कितने लोन लेंगे?
शंख उससे सस्ते आते हैं. तस्मादुत्तिष्ठ : !!