सोनू निगम की अजान गाथा पर आने वाली प्रतिक्रियाओं को पढ़ना मजेदार रहा. वैसे इसमें नया कुछ नहीं था. वही पुराना किस्सा, जिसमें यह देखना एक बार फिर दिलचस्प था कि इस के विरोध में भी हमेशा की तरह अधिकांश हिन्दू थे.
यह देख कर मुझे अत्यंत खुशी हुई और गर्व भी हुआ कि हमारा हिन्दू समाज कितना जागरूक है और साथ ही स्वतंत्र भी. शायद तभी हम अपनी कमियों को समय रहते ठीक करते रहे हैं.
यहाँ भी खुल कर लिखा गया, जैसे कि नवरात्रि, गणेश उत्सव, जागरण और अन्य त्योहारों में लाउडस्पीकर का शोर. जिसका विरोध कई जगह कई बार बहुत हद तक उचित भी है. मगर लगता है विरोध करने वाले यह देखना भूल गए कि इसकी बात सोनू निगम ने भी की है.
शायद अति उत्साह में वे बिना पढ़े उन पर पिल पड़े. लेकिन यह विरोध करने वालों की अज्ञानता को दर्शाता है और यह बतलाता है कि वो दीवार पर लिखा भी ठीक से नहीं पढ़ पाते इसलिए अक्सर देश दुनिया की ज़मीनी सच्चाई नहीं समझ पाते.
इन लोगों की सेक्युलरता तो आजकल वैसे ही संदेह के घेरे में हैं मगर मैं गायकी पर दिए गए इनके कमेंट से तो बिलकुल इत्तफाक़ नहीं रखता और यह मानता हूँ कि सोनू निगम एक नैसर्गिक गायक हैं, माँ सरस्वती की विशेष कृपा है उन पर.
बहरहाल जिस किसी को भी हिन्दू त्यौहार के लाउडस्पीकर के शोर से आपत्ति है वो इसका विरोध खुले आम कर सकते हैं और पुलिस में शिकायत भी दर्ज करा सकते हैं. उस पर कानून अनुसार कार्यवाही भी होगी.
लेकिन इन अति उत्साही लोगों से एक बात जरूर पूछना चाहूंगा कि जागरण आदि के कारण लाउडस्पीकर का शोर क्या रोज, 365 दिन, पांच वक्त होता है? नहीं.
और क्या यह ऐसी किसी बस्ती में हो सकता है जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हों? असंभव है. लेकिन इससे उलट ऐसी अनेक जगह मिल जाएगी जहां शायद ही कोई मुसलमान रहता हो, मगर वहां भी सुबह-सुबह अजान पूरे जोर से सुनायी जाती है. क्या कोई इसका विरोध कर सकता है? नहीं.
और अगर शिकायत दर्ज हो भी गई तो कोई कार्यवाही नहीं होगी, यह दावे से कह सकता हूँ. ऐसा क्यों?
चलिए एक अंतिम तथ्य, जिसमें अनेक सवालों के जवाब छिपे हैं, वो यह है कि जिस तरह से मंदिर में लाउडस्पीकर को लेकर आप सब हिन्दुओं ने विरोध किया, क्या किसी एक मुसलमान को अजान में लाउडस्पीकर के उपयोग का विरोध करते देखा है?
जवाब में इधर-उधर मत उलझाइये, और सीधे इसी घटनाक्रम पर आइये. यहाँ भी जिस तरह से सोनू निगम का विरोध करते अनेक हिन्दू मिल गए, क्या कोई मुसलमान सोनू निगम का समर्थन करते मिला?
एक दो अपवाद में भी मिल जाये तो बताना ज़रूर, हम आप बड़े सेक्युलर एक बार फिर बन जाएंगे. अब यह मत कहने लग पड़ना कि इन सब बातों से माहौल खराब मत करे. ये बड़ा पुराना तर्क हो गया है क्योंकि सिर्फ इस एक धर्म की बात करते ही खतरा क्यों बढ़ जाता है, जबकि इस देश मे अनेक अल्पसंख्यक रहते हैं उनके साथ चाहे जो बात कर लो कभी कोई खतरा उत्पन्न नहीं होता.
अंत में उपरोक्त अति उत्साही हिन्दुओं को एक सुझाव. चलिए देश में सभी धर्म स्थलों पर लाउडस्पीकर को बैन करने की मुहिम शुरू की जाए (विशेष कार्यक्रम के लिए अनुमति ली जा सकती है).
बताइये कितने मुस्लिमों को आप लोग जोड़ पाएंगे? उत्तर के साथ अपनी आँखे खोल कर रखिये और अगर फिर भी समझ नहीं आता तो यह जान लें कि कश्मीर की तरह ही कई क्षेत्र देश में ऐसे बन रहे है जहाँ मंदिर के घंटी की आवाज़ तो दूर की बात है किसी हिन्दू को भी बर्दाश्त नहीं किया जाता. ऐसा क्यों है?
अगर इसका कोई समाधान आप लोगों को मिल जाए तो हम सब को बताना ज़रूर क्योंकि दुनिया 1400 साल से इसके जवाब की तलाश में हैं.
और हाँ एक बात और, सोनू निगम को इस ट्वीट से फायदा तो क्या होगा मगर बॉलीवुड के गाने मिलना जरूर बंद हो जाएंगे, क्योंकि पिछले एक-दो दशक से बॉलीवुड सिर्फ अजान से जागता है उसे भी मंदिर की घंटियों की आवाज से आप की तरह तकलीफ हो चली है.
हवा हवाई फ़िल्मी जिंदगी जीने वालों, परदे के पीछे की कहानी भी जान लिया करो, जहां बात निकलेगी तो फिर बिना लाउडस्पीकर के भी दूर तलक जाएगी.