युद्ध और गृहयुद्ध की विभीषिका सहे बिना कश्मीर क्या, भारत भी सुरक्षित नहीं

पिछले हफ्ते भर से भारत ने जो देखा है वह कुछ अनोखा नहीं है और जो उसमें अनोखा है वह यह कि कश्मीर की घाटी से, जानबूझ कर प्रसारित वीडियो से आगे होने वाली घटनाओं के तारतम्य और उस घटना पर अपेक्षित प्रतिक्रिया बहुत कुछ नीतिगत और पूर्वनिर्धारित है.

भारत के साथ विश्व ने देखा है कि जहाँ कश्मीर की घाटी में कश्मीरी मुस्लिम लड़के भारतीय सेना पर पत्थर के साथ हाथ-पैर छोड़ते है, भारतीय सेक्युलर प्रजाति मौन है वहीं शेष भारत उग्र है.

जब भारतीय सेना, इज़राइल की तर्ज़ पर उन्हीं लड़कों को गाड़ी की बोनट पर बैठा कर, गश्त पर निकलती है, तब जहाँ भारतीय सेक्युलर अशांत हो जाता है वही शेष भारत आह्लादित हो जाता है.

फारुख अब्दुल्ला जब भारतीय सेना के गिरेबान में हाथ डालने की हिमाकत करने वाले कश्मीरी मुस्लिम लौंडो की हरकत का समर्थन यह कह कर देता है कि यह लौंडे अपने राष्ट्र के लिए कर रहे है तब सारा सेक्युलर समाज अपनी आँखों पर अभिव्यक्ति की आज़ादी की गांधारी पट्टी बाँध लेता है लेकिन जब पैलट गन से वंचित और अकालिक लाशें बिछने के अंदेशे से घिरी भारतीय सेना के बंधे हाथ, इन कश्मीरी लौंडो की लाठियों से खुमारी उतारते है, तो सेक्युलर समाज गांधारी पट्टी उतार कर रौद्र हो जाता है.

दो टके का फ़िल्मी भाड़ ऐज़ाज़, मोदी और योगी जी के लिए अमर्यादित बात कहता है तो यही सेक्युलर समाज अपने कानों को बंद कर लेता है और जब सोनू निगम, मस्जिदों से दिन-रात लाउडस्पीकर से अज़ान को, गैर मुस्लिमों को ज़बरदस्ती कान में घुसेड़ने के दस्तूर का विरोध करता है तो सारे सेक्युलर समाज के कान में पिघला मोम चला जाता है, कान भी खुल जाते है और ज़बान भी खुल जाती है.

यह सब अभी और होगा. अभी और वीडियो आएंगे और अभी शेष भारत और सेक्युलर समाज के बीच दरार बढ़ेगी. इस वर्ष सेक्युलर समाज जहाँ और अनर्गल और असहनशील होता जायेगा, वही इस सबका खामियाज़ा राष्ट्रवादियों की आहत भावनाओं और भारतीय मुस्लिम समुदाय को भुगतना होगा.

वही परोक्ष रूप से, पूरे कश्मीर की घाटी को सिर्फ 4 जिलों में समेट दिया जाएगा. कश्मीर की घाटी के इस हिस्से में जो भी होगा वह भारत की सरकार, अन्तरराष्ट्रीय व्यवाहरिकता को देख कर, अपनी समयसारणी में बदलाव लाते हुए करेगी.

आज के अंतराष्ट्रीय परिदृश्य को देखते हुए मेरा आंकलन है इस वर्ष का ग्रीष्म काल कश्मीरी अलगाववादियों के लिए आखिरी खुशनुमा मौसम होगा क्यूंकि भारतीय सरकार इस वर्ष के अंत में पड़ने वाली बर्फ का गिरने का इंतज़ार करेगी जब यह इलाका चारों तरफ से कट जाता है.

हाँ मैं जानता हूँ कि लोग, सरकार से कश्मीर में इससे जल्दी और ज्यादा की अपेक्षा करते है लेकिन ऐसा होगा नहीं. उसका कारण यह है कि कश्मीर मुद्दे पर अब तक हिन्दू की सिर्फ व्याख्यान, विरोध और विवशता के अलावा कोई भी कोई भी भूमिका नही रही है.

कश्मीर की घाटी के इस्लामीकरण और वहां से हिंदुओं के पलायन रोकने में भारत के हिन्दू की कभी भी कोई भी भूमिका नहीं रही है. वह कल भी सरकार के भरोसे हिन्दू बना रहना चाहते थे और आज भी सरकार के ही भरोसे हिन्दू रहना चाहते हैं.

आप फिर पूछ सकते है कि फिर इस मोदी जी की सरकार और पिछली सरकारों में अंतर क्या है? पहले के कश्मीर और आज के कश्मीर में अंतर क्या है?

अंतर है और बहुत बड़ा अंतर है. आज सरकार ने, सेक्युलर प्रजाति को छोड़ कर, शेष भारत की मानसिकता में यह स्वीकार करा लिया है कि कश्मीर की घाटी से बिना उसके इस्लामीकरण को हटाए कश्मीरियों का कोई समाधान नहीं हो सकता है.

शेष भारत को इसके लिए भी सहमत कराते जा रहे है कि बिना रक्तपात और युद्ध के कश्मीर भारत मे पूरी तरह समाहित नहीं हो सकता है. शेष भारत को यह भी समझाते जा रहे है कि धारा 370 के हटने के बाद भी कश्मीर की धरती पर बिना गृहयुद्ध हुए, उसका पूर्ण परिपालन नहीं हो सकता है.

एक बात यहां समझ लीजियेगा कि युद्ध तो सरकार जनता के सहयोग से लड़ लेती है लेकिन गृहयुद्ध बिना जनता के शामिल हुए नहीं लड़ा जा सकता है और शेष भारत की, विशेषकर हिन्दू की यही कमज़ोरी है कि वह दूसरे के भरोसे युद्ध चाहता है लेकिन अपनी प्रतिभागिता से वंचित रहना चाहता है.

कश्मीर से हिन्दू भागा भी इसी लिए था क्योंकि उसको खुद की सुरक्षा से ज्यादा दूसरे द्वारा सुरक्षा दिए जाने पर भरोसा था.

आख़िर में, इस सरकार का अन्य सरकारों से सबसे बड़ा अंतर यह है कि उसने भले ही कम संख्या में, लेकिन भारत के एक वर्ग को जरूर तैयार कर दिया है जो युद्ध और गृह युद्ध की विभीषका को सहने को तैयार है क्योंकि बिना उसके कश्मीर क्या, भारत भी सुरक्षित नहीं है.

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