ज्यादा भटकिये मत, शत्रु से युद्ध किया जाता है, तर्क नहीं

सत्य की खोज में भटकना पड़ता ही है, पर लक्ष्य को पाने में भटकना अच्छे लक्षण नहीं हैं. या तो जाना कहाँ है यह नहीं पता, या रास्ता नहीं मालूम.

कभी अज़ान पर भटक कर मामले को लाउडस्पीकर पर ले आते हैं, कभी राम मंदिर पर मंदिर-मस्जिद दोनों बनाने की बात करने लगते हैं, कभी कश्मीर में जिहादियों पर पैलेट गन और प्लास्टिक और रबर की गोलियों की बात करने लगते हैं, कभी तीन तलाक पर बहस छेड़ कर खुश हो लेते हैं.

सिर्फ हम आप ही नहीं, मोदी-योगी तक, हमारे धर्मात्मा-गुरु-सन्यासी तक भटके भटके लगते हैं.

हम पता नहीं क्यों, तीन तलाक़ को लेकर इतने उत्साहित होते हैं. अरे तीन तलाक़ हो या पांच तलाक… यह मुल्ले मुल्ली के बीच का मामला है… आप क्यों डांस कर रहे हो? क्यों समझा रहे हो उन्हें कॉमन सिविल कोड के फायदे?

अगर लागू करना है तो चार डंडे मारो पुट्ठे पर और लागू करो. मान मनौवल किस लिए? देश मे देश का कानून पुचकार कर लागू किया जाता है?

सलीम ने सलमा को कितनी बार बोलकर तलाक़ दिया, मेहर में कितने पैसे दिए या नहीं दिए, सलमा करीम से हलाला हुई या फहीम से… इससे हमें क्या लेना देना. क्या पीछे पड़े हो, किसे समझा रहे हो भाई…

सुअर को कीचड़ में लोटना होगा तो आपसे पूछ कर लोटेगा? जिन मोहतरमा को आप इस्लाम के नुकसान गिना रहे हैं वो क़ुरान छोड़ कर हनुमान चालीसा पढ़ने लगेंगी आपके कहने से?

मस्ज़िद पर लाउडस्पीकर आपको सिर्फ ध्वनि प्रदूषण दिखाई देता है? आपकी छाती पर चढ़ कर जिहादियों का मूंग दलना नहीं दिखाई देता? बिना मंदिर की आरती की बात किये मस्जिद से लाउड स्पीकर उतारने की बात नहीं कर सकते? अपने देश में रह रहे हैं या किसी की मेहरबानी पर?

अभी तक इस बहस में उलझे हैं कि कश्मीर में पत्थरबाज दंगाइयों जिहादियों पर पैलेट गन चलाएं या रबर की गोलियां. सोच रहे हैं कि विदेशी पैसे पर पलने वाले, देश को तोड़ने का एजेंडा चलाने वाले मीडिया के दलालों को कितनी आज़ादी देने से लोकतंत्र की मर्यादा रहेगी?

इतनी भटकन क्यों है? इतनी दुविधाएं कहाँ से लाते हैं हम?

राजनीतिक हितों के मुद्दे कोई चांदनी चौक टाइप बार्गेनिंग से हल नहीं होते… भाई, 100 नहीं पुसाता… 50 में मान जाओ… बोहनी का टाइम है… यह नहीं चलता…

यहां गणित सरल है… अगर आप मजबूत हुए तो आपकी बात मानी जायेगी, कमजोर हुए तो मुंह की खानी पड़ेगी. आपका शत्रु आपकी बात इसलिए नहीं मान लेगा कि आपने बड़ी अच्छी एक बात कह दी…

यहां सिर्फ शक्ति ही एक तर्क है. और जिस दिन वह शक्तिशाली हो गया, उस दिन ऐसा नहीं है कि वह आपके तर्कों से निरुत्तर होकर हथियार डाल देगा.

इसलिए अपनी तर्क शक्ति को सोच समझ कर खर्चिए… सारी तर्कबुद्धि सिर्फ यह समझने में लगाइये कि हमारे हित क्या हैं, लक्ष्य क्या हैं, उन्हें पाने का रास्ता क्या है और मार्ग में चुनौतियां क्या हैं… मित्र कौन है और शत्रु कौन है…

ज्यादा भटकिये मत, शत्रु से युद्ध किया जाता है, तर्क नहीं…

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