बहार-प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मेथड-एक्टिंग के लिए ऑस्कर मिलना चाहिए. चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर उन्होंने अभिनय को इतनी गंभीरता से ले लिया है कि वह दूसरा गांधी बनने का मुगालता पाल बैठे हैं.
शराबबंदी की अपनी सनक में पूरे राज्य के प्रशासन को जंगलराज-2 बना देने वाले नीतीश के एक साल में 45 हज़ार गिरफ्तारियां हुईं, उस तुगलकी कानून के तहत. फिर भी, पूरे राज्य के हरेक ज़िले में शराब की होम डिलीवरी हो रही है.
अभी हाल में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी जाना हुआ. वहां भी उत्तरी इलाके में आंशिक शराबबंदी है. वहां किराने की दुकान और जूते-चप्पलों की दुकान में शराब मिलती है. लगता है, छह महीने में बहार-प्रदेश में भी यह सुविधा उपलब्ध होगी.
अब नीतीश की पिनक में दहेजबंदी जुड़ गया है. लगता है, आज के पहले पूरे बिहार में जैसे दहेज लेना कानूनी था. अखबारी और टीवी की दुनिया के उनके भांड़ इसको भी समाजसुधार का एक अग्रगामी कदम बता चुके हैं.
मोदी के विरोध में विपक्षियों की तथाकथित एकता भी नीतीश के कदम और तेजी से बहकाएगी, पर वह यह भूल जाते हैं कि वह एक प्रशासक हैं और गांधी किसी पद पर नहीं थे.
गांधी वाली न तो उनमें शुचिता है, न साहस और न ही नैतिकता का वह दायरा. गांधी ने सारी बातों की शुरुआत अपने घर, अपने आंगन से की, आज़ादी के बाद कांग्रेस को भंग करने की बात भी कही.
नीतीश क्या कर रहे हैं? घोषित अपराधी लालू यादव की गोद में बैठे हैं, बड़े भतीजे तेजप्रताप की मिट्टी इस गरीब राज्य के निवासियों के जरिए 90 लाख में बेच रहे हैं और जंगलराज-2 का आगाज़ कर रहे हैं.
स्कूलों से किताब गायब हैं (पिछले पूरे सत्र किताबें नहीं पहुंची), भागलपुर के तिलका-मांझी विश्वविद्यालय में परीक्षाएं केवल इसलिए टल गयीं कि विश्वविद्यालय प्रशासन प्रश्नपत्र छापना भूल गया…
बिजली गायब है, उद्योग धंधे हैं ही नहीं, अपराध चौतरफा बढ़ा है और नीतीश अपनी सनक और पिनक में राज्य को अंधकार से गहन अंधकार की ओर धकेले चले जा रहे हैं.