2013 के बाद से हर साल में एक-दो बार देश के बड़े न्यूज़ चैंनलों पर एक विशेष प्रोग्राम आ ही जाता है जिसका शीर्षक होता है “देश का मूड क्या है” देश को ही बताया जाता है कि उसका क्या मूड है!
प्राइवेट न्यूज़ चैनलों को ये प्रोग्राम करने का शौक 2011 के अन्ना आन्दोलन के बाद से लगा है उससे पहले किसी को किसी के मूड की नहीं पड़ी थी.
हमने बचपन से ही देश की राजनीति को बहुत फीका देखा है जिसकी छवि ये थी कि सब नेता एक जैसे होते हैं राजनीति का मतलब चुनाव जीतना होता है चुनाव के वादे कभी पूरे नहीं हो सकते देश का कुछ नहीं हो सकता वगैरह.
वजह थी केंद्र में गठबंधन की मज़बूर सरकारें, नीचे से ऊपर तक हर स्तर पर राजनीतिक और प्रशासनिक निकम्मापन, देश सिर्फ चल रहा था पर आगे नहीं बढ़ पा रहा था.
10 साल किसी भी व्यक्ति, समाज और देश के लिए एक बहुत बड़ा समय होता है उसके भविष्य को बनाने और बर्बाद करने के लिए.
2004 से 2014 तक हमने एक ऐसे अंधे युग को बीतते देखा कि जिसमें ना सिर्फ सरकार की मक्कारी थी बल्कि उसके साथ यह बेशर्मी भी थी कि हमारा कौन क्या बिगाड़ लेगा.
केंद्र की कांग्रेस सरकार ने अनगिनत पाप किये. लेकिन उसके दो महापाप ये देश नहीं भूल सकता, जिसने जनता को उद्वेलित किया और परिवर्तन के लिए वो तड़प पैदा की जो आज़ाद हिंदुस्तान में कभी भी नहीं महसूस की गयी थी यहाँ तक कि इमरजेंसी के बाद भी नहीं!
वो दो महापाप थे अंधाधुंध भ्रष्टाचार और दूसरा सेक्युलरिज़्म के नाम पर भारतीय संस्कृति को पाँव तले रौंदना.
संस्कृति को रौंदना क्या होता है?
इसके उदाहरण थे ‘हिन्दू आतंकवाद’ के झूठ को गढ़ना और पूरी ताकत से उस झूठ को प्रचारित करना.
सेक्युलर दिखने की होड़ में तुष्टिकरण की सारी सीमाएँ पार कर देना.
रामसेतु तोड़ने की सरकार को इतनी बेचैनी थी कि उसने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया कि राम एक काल्पनिक पात्र हैं.
प्रधानमंत्री कठपुतली की छवि लिए था. सरकार मैडम चला रही थी.
मुंबई के आज़ाद मैदान में मुसलमानों की उग्र भीड़ ने कोहराम मचाया, पुलिस को पीटा, अमर जवान स्मारक को लात मारकर ध्वस्त करने की तस्वीरें वायरल हुईं लेकिन केंद्र की सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की.
खुद को सेक्युलर कहने वाले क्षेत्रीय दलों के शासन में भी यही अंधायुग चल रहा था.
उत्तर प्रदेश की सपा सरकार हाई कोर्ट में आतंकवादियों की तरफ से केस लड़ रही थी.
न्याय मज़हब देख कर किया जाने लगा था.
पुलिस का खौफ जनता में था, गुंडों में नहीं.
फिर 2011 के बाद से सोशल मीडिया ने देश को ना सिर्फ झकझोरा बल्कि नई पीढ़ी जो पहली बार वोट देने जा रही थी, उसे सच से रूबरू कराया.
लेकिन जो सबसे बड़ा फर्क इस पीढ़ी में था जिसने कांग्रेस को जड़ से उखाड़ फेंका वो था भारतीय संस्कृति से जुड़ाव और इसके मूल में वैदिक संस्कृति के होने का स्वाभिमान.
पहली बार हिन्दू सारी जातियों के बंधन को तोड़कर छद्म सेक्युलर राजनीति को लात मार कर हिन्दू होने के स्वाभिमान के साथ एक होकर खड़ा हुआ.
गलत को गलत और सही को सही कहने की नई परम्परा का शुभारम्भ हुआ.
जनता सवाल पूछने लगी. तर्क के साथ 60 सालों के झूठ और तुष्टिकरण को लेकर गुस्से में भरे देश ने वो ऐतिहासिक न्याय किया कि जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी.
2014 की महा पराजय के बाद जब कांग्रेस ने समीक्षा बैठक की तो मीडिया में खबर आयी कि कांग्रेस ने माना है कि उसकी छवि हिन्दू विरोधी बनने के कारण से उसका सुपड़ा साफ़ हुआ है.
आज से 20 साल पहले भी कोई इस बात पर विश्वास नहीं कर सकता था कि कोई राष्ट्रीय पार्टी इसलिए देश से साफ़ हो सकती है कि उसकी छवि हिन्दू विरोधी होने की बन गयी थी.
जबकि इससे पहले तो हिंदुस्तान में राज करने के लिए हिन्दू को गाली देने वाला सेक्युलरिज़्म अपनाना अनिवार्य होता था.
2014 में नरेंद्र मोदी का 282 सीटों के साथ प्रधानमंत्री बनना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस वक़्त की जवान पीढ़ी को वो सेक्युलरिज़्म का पाखंड कतई स्वीकार नहीं है जिसने 60 सालों तक देश की जनता को अपनी ही संस्कृति और देश के लिए हीन भावना रखना सिखाया.
और ये विरासत सिर्फ हिन्दुओं के गर्व का विषय नहीं है ये हर भारतीय के लिए फक्र की बात है क्योंकि भारत का स्वर्णिम इतिहास सबका इतिहास है भारत की प्राचीन शिल्प कला हो या संगीत हज़ारों वर्षों पहले की यहाँ की विज्ञान की उन्नति हो या महान आध्यात्मिक ज्ञान सम्पदा. ये सब हर भारतवंशी के गर्व के विषय हैं.
उत्तर प्रदेश में उस योगी का मुख्यमंत्री बनना जिसकी तुलना अनपढ़ और कट्टर मुस्लिम गली छाप नेताओं से की जाती थी ये बताता है कि देश का मूड क्या है.
भारत का प्रधानमंत्री 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में दुनिया भर में जगह दिलवाता है और स्वयं राजपथ पर जनता के साथ योग करता दिखता है तो भारत का नौजवान शर्म महसूस नहीं करता बल्कि गर्व का अनुभव करता है.
मोदी आएगा तो मुसलमानों को मारेगा और योगी आएगा तो मुसलमानों की खैर नहीं इस तरह के खोखले झूठ और बे-सर पैर की बातों पर अब कोई विश्वास करने को तैयार नहीं है.
JNU काण्ड, रोहित वेमुला और Intolerance के बाद चुनावों में जनता ने किसे नकारा है वो बताता है कि देश का मूड क्या है.
इस तरफ स्वाभिमानी भारतीय युवा हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस और वामपंथी विचारों के चाटुकार गली छाप पत्रकार और विलुप्ति की कगार पर खड़ी छद्म सेक्युलर जमात है, जिन्हें रोज़ सोशल मीडिया पर ये देश बेनकाब करता है और करारा जवाब देकर उनकी हैसियत दिखा देता है.
यही देश का मूड है.
लोगों को भारतीय होने पर और एक महान विरासत के रूप में और देश की मूल संस्कृति के रूप में हिन्दू होने पर गर्व करना आ गया है.
सच को सच कहना आ गया है.
ये युग परिवर्तन ही देश का असली मूड है.
वन्दे मातरम!