आपके पकने के लिए कुछ योजनाओं का कच्चा होना ज़रूरी होता है…
अब आप इसे असफलता कह कर निराश हो जाओ, दुःख कह कर दुखी हो जाओ, नियति कह कर भाग्य को कोसने लग जाओ…
या साक्षी भाव से सही समय की प्रतीक्षा करो…
क्योंकि जब दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य तुम्हारे सामने अनावृत हो रहा होगा, तुम चाहकर भी जीवन की सबसे बड़ी समस्या के पीछे भी पूरी तरह छुप नहीं पा रहे होगे….
यही वो समय होता है जब सूरज की सबसे कोमल किरण के फूटते ही रात की रहस्यमयी भयानता समय की सबसे छोटी इकाई में भी समा नहीं पाती, और आप अँधेरे की विलुप्ति के इस अनुभव को किसी शब्द में उतारने को व्याकुल नहीं होते, ना ही उसे जल्दी से जी लेने की जल्दी में… वो तो जीवनातीत क्षण होता है…
क्योंकि अदृश्य दुनिया के रहस्य दृश्य दुनिया में प्रमाणित नहीं किये जा सकते… वो तो पहले से ही प्रमाणित होते हैं, बस आँख झपकने की प्रक्रिया के बीच बीते हुए समय में जीने वाले हम, आँख खुलने के पहले ही हार मान जाते हैं…
और ये हार मान लेना ज़रूरी भी होता है, क्योंकि जीतने के भाव में वो बात कहाँ, योजनाएं तो तभी कच्ची कहलाएंगी जब आप हार जाओगे…
क्योंकि सारी असफलताएं, सारे दुःख, सारी पीड़ा, सारी विरह वेदनाएं, सारे टूटे हुए दिल, सारी नफरतें, सारी ईर्ष्याएँ, सारी कुंठाएं, जीवन की सारी नकारात्मकताएं तुमको सोने की थाली में परोसकर दी जा रही है…
ताकि इस नकारात्मकता के प्रहार के कारण नाभि से उठ रही ऊर्जा का उर्ध्वगमन हो सके….