दो किताबों को एक साथ पढ़ना, वो भी नायक प्रधान किताबों को, स्प्लिट पर्सनालिटी को आमंत्रित करने जैसा होता है….
लेकिन कभी कभी दो दुनिया को एक साथ जीकर देखना भी बड़ा रोमांचक होता है, बिलकुल वैसे ही जैसे एक साथ दो लोगों को मोहब्बत करना, प्यार ज़िंदगी में एक ही बार होता है के नियम को ताक पर रखकर……
चरित्र की परिभाषा लिखते हुए कभी किसी किताब में ये नहीं लिखा गया कि चरित्रवान व्यक्ति वही होता है जो एक बार में एक झूठा प्यार कर सकता है, लेकिन एक बार में दो लोगों से सच्चा प्यार नहीं….
एक को दिन के घोर उजालों में दूजे को रात के घनघोर अंधेरों में मिलना….. और मिलकर यह तय करना किसकी मोहब्बत में ज़्यादा कशिश है… आह!
दिग्विजय वह सुसभ्य संस्कारी नायक है जिसके लिए बहुत आसानी से घर, समाज से सहमति मिल जाती है, जिसको दिन के तपते सूरज के साथ मिलोगे तब भी उसका ताप जलाएगा नहीं, ऊर्जा को बढ़ाएगा …………..
और घर समाज दुनिया से छुप कर, सारे नियम कायदे से परे रात के घनघोर अँधेरे में जिसे नायिका मिलने जाती है वो है शेखर………. जीवंत का नितांत सच लेकिन जीवन के विपरीत ध्रुव पर खड़ा……..
एक फिलोसोफी…. दूजा साइकोलॉजी………… एक ओर वेद उपनिषद् के जटिल जंगल … दूसरी ओर मानव स्वभाव की भूल भुलैया………
और मैं, अवकाश से अवसाद और अवसाद से आकाश में डूबती उभरती उत्सुकता, लोलुपता, जुगुप्सा और जिज्ञासा भी मैं ही…
– गुरुदत्त की पुस्तक – दिग्विजय और अज्ञेय की पुस्तक शेखर एक जीवनी…. दोनों को एक साथ पढ़ने का दुस्साहस….. और पुस्तक अभी ख़त्म नहीं हुई………. मतलब इश्क अभी जारी है……..