राजदीप सरदेसाई, आप को गाय से इतनी मोहब्बत है, आज पता चला. आज आप का पूरा लेख ही गाय.. गाय.. गाय कर रहा है. खैर, आपने गोवा में बीफ चिली फ्राय खाने का लुफ्त उठाया, आपके लेख से पता चला.
और आप चूंकि इसे भारत में दूसरी जगह नहीं खा पा रहे, इस बात को मुद्दा बना कर आप ने अल्पसंख्यक मुस्लिम, कैथोलिक, उत्तर-पूर्व, दक्षिण सबको कवर करते हुए भाजपा को निशाने पर लिया. और उनकी राजनीति पर उपहास उड़ाने की एक बार फिर कोशिश की.
भाजपा से आपके कैसे संबंध हैं यह आप दोनों जाने. मगर आप के पूरे लेख में कही भी हिन्दू की जनभावना को छूने की आपने कोशिश नहीं की. जबकि वो भी इस देश के नागरिक हैं. वैसे हिन्दू समाज आप से अपेक्षा भी नहीं करता. मगर आप को जवाब देने का हक़ तो आप उससे नहीं छीन सकते.
वैसे यह आप का पुराना तरीका है और रोग वही है जो अन्य अधिकांश पत्रकारों में आम मिल जाता है. लेकिन आप लोगों के तर्क और तथ्य कितने कमजोर होते हैं, आज मैं उसका जवाब मात्र एक उदाहरण से देना चाहूंगा.
अपने लेख के लिए आज आपने गांधी नाम का इस्तेमाल किया. अब उनका नाम ले ही लिया है तो आप को यह पता ही होगा कि उनके गृहराज्य गुजरात में शराब बंदी 1960 से है.
जब महाराष्ट्र से अलग करके गुजरात को नया राज्य बनाया गया था. कौन थे उस समय देश के सबसे बड़े नेता? आप के आदर्श नेहरू. और पूरे देश में कौन सी पार्टी थी सत्ता में? आप की पसंदीदा कांग्रेस. तब कौन सी विचारधारा प्रभावशाली थी? गांधीवाद. क्या शराब बंदी तब पूरे देश में थी? इस अकेले सवाल में है आप के पूरे लेख के खोखलेपन और दोगलेपन का जवाब.
आप मुंबई में रात के खाने में शराब के पैग का लुफ्त उठा सकते हैं मगर अगले दिन अहमदाबाद में आकर ऐसा नहीं कर सकते. और इस तरह से आप कई बार आते-जाते रहे होंगे. मगर आप ने कभी इस पर लेख नहीं लिखा. इससे आपके हिडन एजेंडा का भी खुलासा होता है जिसे विस्तार में लिखने की अब आवश्यकता नहीं.
भारत कैसा होना चाहिए यह देश की जनता तय करेगी. मगर हमें नहीं चाहिए ऐसा पत्रकार जो अपना खाना खुद के स्वाद और संतोष के लिए ना खाते हुए दूसरे को चिढ़ा-चिढ़ा कर कर खाने के लिए खाता हो.
दुनिया में शायद यही एक देवभूमि और पावन देश है जो ऐसे पत्रकार(?) को भी अपने आँचल में रहने-खाने पीने-जीने के साथ-साथ कुछ भी लिखने-बोलने और रचने की पूरी स्वतंत्रता देता है.